चूल्हा कैसे जलेगा?

गुलमर्ग सिनेमा के पास छोटी सी दुकान लगाने वाले करीम बताते हैं कि वैसे तो कुछ भी हो जाए मैं हमेशा से ही दुकान खोलता हूं। अब तो ऐसे माहौल की आदत पड़ गई है। अगर एक दिन भी दुकान न खोलूं तो घर चूल्हा कैसे जलेगा? परिवार भी तो पालना है। हमारे लिए तो रोज कुआं खोदना और रोज पानी पीने जैसा है। इतनी पुलिस और बैरीकेडिंग के लोगों में खौफ पैदा होने के अलावा और क्या होगा? गुरुवार रात से अब तक पूरी सड़क पर सन्नाटा है। ऐसे में व्यापार कैसे हो सकता है?

दुकान खोलकर भी क्या करें?

जिशान टिंबर के ऑनर अपनी बंद दुकान में आगे बैठकर कोल्ड ड्रिंक पीते हुए कहते हैं मैं तो इन हालातों को ऑब्जर्व कर रहा हूं। कल शाम से एक भी ग्राहक नहीं आया है। ग्राहक तो दूर जो भीड़ इस रोड पर दिखाई देती है वो तक नहीं दिखाई दे रही है। ऐसे में दुकान खोलने का क्या फायदा। वैसे भी कोई दंगा नहीं चाहता। किसी के पास भी इतना वक्त ही नहीं है कि फालतू में लडऩे लगे। गरीब आदमी तो बिल्कुल भी नहीं।

इस तरह नहीं हो सकता व्यापार

हापुड़ रोड पर परचून की दुकान चलाने वाले इंतजार कहते हैं कि पिछले दस दिनों से व्यापार पूरी तरह से ठप पड़ा है। देहात में कुछ हो जाए या फिर मुजफ्फरनगर में, सबसे पहले हापुड़ रोड प्रभावित होता है। पुलिस, पीएसी और बीएसएफ के जवान तैनात हो जाते हैं। मुजफ्फरनगर में दंगे के चलते सोमवार को लगने वाली पैंठ भी नहीं लगी। दो दिन में माहौल थोड़ा ठीक हुआ था। तो गुरुवार की घटना के बाद फिर से तनाव हो गया। मैंने भी कल शाम से अभी दुकान खोली है। लेकिन कोई ग्राहक ही नहीं है। ऐसे में कैसे व्यापार हो सकता है।

कफ्र्यू ही समझिये जनाब

डरते-डरते दुकान खोलने वाले इम्लीयान मस्जिद के पास यूनाइटेड ग्लास के मालिक मो। रिजवान कहते हैं कि गुरुवार 6 बजे तक मुझे पता ही नहीं था कि सुभाष नगर में कोई घटना भी हुई है। मुझे कल फोन आया कि सिटी में कफ्र्यू लग गया है तो मैंने कहा कि तो फिर मैं भी कफ्र्यू में ही हूं। भाई साहब लोग तो वारदात करके चले जाते हैं। भुगतना हम जैसे लोगों पड़ता है। अब हापुड़ रोड पर तीन जगहों पर बैरीकेडिंग हो रखी है। चप्पे-चप्पे पर पीएसी, बीएसएफ के जवान लगे हुए हैं तो इसे कफ्र्यू ही समझें।

15 मिनट में घर से फोन

पराग मेडिकल स्टोर के मालिक चंद्र भूषण शर्मा ने कहा कि घर में सब मना कर रहे थे कि दुकान खोलने की क्या जरुरत है। फिर भी मैंने ये सोचकर दुकान खोली कि अगर पूरे शहर के मेडिकल स्टोर के मालिक यही सोचकर दुकान न खोलें तो मरीजों को दवा कैसे मिलेगी? फिर हर 15 मिनट में खैरीयत पूछने के लिए फोन आ रहा है। जब सुबह दुकान खोली थी तो थोड़ा डर तो लग रहा था, क्योंकि पूरे रोड पर सन्नाटा था। जब आधा पौना घंटे के बाद एक दो दुकानें खुली तो थोड़ा डर कम हुआ।

भूल गए थे दंगा क्या होता है?

पुलिस और प्रशासन ने बैरीकेडिंग सिर्फ हापुड़ रोड पर ही नहीं की थी। रोड से सटने वाले मार्केट के रास्ते भी बंद कर दिए गए। इनमें से आजाद मार्केट और भगत सिंह मार्केट प्रमुख हैं। भगत सिंह मार्केट की बात करें तो वहां 450 दुकानें हैं। जहां आधी हिंदू और आधी मुस्लिम की दुकानें हैं। मार्केट के महामंत्री कैलाश अग्रवाल कहते हैं मार्केट के दुकानदार तो भूल ही गए थे कि संप्रदायिक दंगा होता क्या है? 1987 के दंगे के बाद से कोई नहीं चाहता कि किसी तरह का माहौल बिगड़े फिर भी कुछ लोग माहौल बिगाडऩे से बाज नहीं आते। हम लोगों से अपील करते हैं कि सिटी की फिजा को बिल्कुल भी न बिगाड़ें।

लोग मदहोश न हों

केएमसी हॉस्पिटल के मालिक सुनील गुप्ता का कहना है कि गुरुवार की घटना सामाजिक और कानून व्यवस्था की कमजोरी का परिणाम है। क्या हमें अपने बच्चों को सामाजिक सामंजस्य और इंसानी मोहब्बत का पाठ नहीं पढ़ाना चाहिए? मैं शहर की जनता से अपील करता हूं कि सांप्रदायिकता की आग में इतने मदहोश न हों कि अगले ही पल कभी साथ रहना भी दुश्वार हो जाए।