ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि 28 जून की रात को छत्तीसगढ़ में हुए कथित मुठभेड़ों में मारे गए ज्यादातर लोग आम आदिवासी थे माओवादी नहीं, जबकि राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह और सीआरपीएफ ने इन दावों को सिरे से खारिज किया है। बासागुडा के ग्रामीणों का कहना है कि सुरक्षा बलों की तरफ से की गई कार्रवाई में मारे गए ज्यादातर लोग इलाके के आम निवासी है।

कोट्टागुडा की ही निवासी और दसवीं कक्षा की छात्रा काका सारिका ने बीबीसी को बताया, ''सरकेगुडा-कोट्टागुडा में बैठक हो रही थी जिसमें मै मौजूद थी। वहां खेतीबाड़ी करने वाले आदिवासी लोग खेतों में बुआई से पहले पारंपरिक त्योहार मनाए जाने के लिए दिन निश्चित कर रहे थे, तभी चारों तरफ से सुरक्षा बलों के जवानों ने हमें घेर लिया और गोलीबारी शुरू कर दी.''

सारिका ने कहा, ''मैं वहां से भागी और इसी बीच सीआरपीएफ के एक जवान ने मुझे बचाने के लिए मुझे जमीन पर लेटा दिया। कुछ देर तक वहां रहीं, इस बीच सुरक्षा बल के एक अन्य जवान ने मेरे साथ बदतमीजी करने की कोशिश की। वहां कई लोग घायल पड़े थे, लेकिन उनकी मदद करने की बजाय सीआरपीएफ के जवान घायलों के साथ दुर्व्यवहार कर रहे थे.''

सरकेगुडा पंचायत के सरपंच मरकान लक्ष्मण ने कहा, ''एक भी नक्सली वहां मौजूद नहीं था। वहां बैठक होनी है ये पहले से तय था, खेतिहरों के बीच किसानी के लिए जमीन के पट्टे बांटे जाने थे। कुछ वर्ष पहले जब सलवा जुडुम लागू हुआ तब हम सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच पिसते रहे और गांव छोड़ दिया, दो साल बाद वापस आए तो यहां फिर वहीं आलम है.''

ग्रामीणों ने सुरक्षा बलों पर उनके साथ मारपीट करने के भी आरोप लगाए है, हालांकि सुरक्षा अधिकारी इन सभी आरोपों का खंडन कर रहे हैं। सीआरपीएफ के महानिरीक्षक ज़ुल्फिकार ने बताया, "मारे गए लोगों की पहचान के लिए जांच की जा रही है। इस मामले में एक एफआईआर भी दर्ज की गई है."

'निर्दोष' मारे गए

सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश ने सुरक्षा बलों की तरफ से की गई कार्रवाई की निंदा करते हुए कहा है कि इस मुठभेड़ में निर्दोष आदिवासियों की हत्या की गई है। बीबीसी के साथ बातचीत में अग्निवेश ने कहा, ''ये जानबूझ कर की गई कार्रवाई है, आदिवासियों को आतंकित करने के लिए.''

उन्होंने कहा, ''भारत के गृह मंत्री और सीआरपीएफ के लोग बहुत दिनों से कोशिश में थे कि कुछ ऐसा काम करे जिसपर दावा किया जा सके कि उन्होंने माओवादियों के खिलाफ बहुत बड़ा काम किया है। माओवादी तो नहीं मिले लेकिन बैठक कर रहे गरीब आदिवासियों को सीआरपीएफ के जवानों ने घेरकर मार दिया। विशेष जांच दल गठित करके इस मामले की गहन जांच की जानी चाहिए.''

उधर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने सुरक्षा बलों की कार्रवाई का बचाव किया है और कहा है कि अगर निर्दोष लोग मारे गए हैं तो इसके लिए माओवादी ही जिम्मेदार हैं, क्योंकि वो आम लोगों को रक्षा कवच के तौर पर इस्तेमाल कर रहे है।

उन्होंने कहा, ''तीन अलग-अलग जगहों पर मुठभेड़ हुए जिसमें हार्डकोर नक्सली भी मारे गए है। अगर उन मुठभेड़ों में निर्दोष ग्रामीण मारे गए है तो इसके लिए भी नक्सली जिम्मेदार है, वो आदिवासियों का इस्तेमाल एक ढाल की तरह कर रहे हैं। इस मामले का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए और अगर गृह मंत्री ने मुठभेड़ के बारे में बयान जारी किया है तो वो तथ्यों के आधार पर ही होगा.''

मुठभेड़

केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह ने भी रमन सिंह का समर्थन करते हुए कहा कि मुठभेड़ में सीआरपीएफ जवानों का घायल होने ये साबित करने के लिए काफी है कि माओवादी उन पर गोलियां चला रहे थे। उन्होंने मुठभेड़ पर केन्द्र की तरफ से जांच कराए जाने की संभावना से भी इनकार किया है। मुठभेड़ में एक महिला के मारे जाने के मामले पर सफाई देते हुए केंद्रीय गृह सचिव ने कहा कि इलाके में माओवादियों के महिला दल भी सक्रिय हैं।

सरकारी दावों से असंतुष्ट दिख रहे वामपंथी दल सीपीआईएम ने भी इस मामले में जांच किए जाने की मांग की है। वहीं कथित मुठभेड़ पर कांग्रेस की तरफ से मामले पर जांच के लिए गठित की गई समिति ने पीटीआई के अनुसार कहा है कि मुठभेड़ जिन जगहों पर हुए वहां के मुआयने के बाद लगता है कि मुठभेड़ 'फर्जी' थी। समिति ने मामले की जांच सीबीआई से कराए जाने की मांग की है।

समाचार पीटीआई के अनुसार राज्य कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल ने कहा, ''12 सदस्यीय समिति ने अभी अपनी रिपोर्ट सौंपी नहीं है, लेकिन प्रांरंभिक जांच से अंदाजा लगाया जा रहा है कि ये मुठभेड़ फर्जी थी.'' शुक्रवार को हुए मुठभेड़ में छत्तीसगढ़ के सुकमा-बीजापुर इलाके में 19 लोग मारे गए थे।

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