LUCKNOW: राजधानी में ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण की कवायद में कई ऐसे जगहों से पर्दा उठ रहा है, जो इतिहास के पन्नों और किस्सों तक सिमटीं थीं। जिनका जिक्र इतिहास और पुराने किस्सों में मिलता है। पुरानी और ऐतिहासिक महत्व की इमारतों के रेनोवेशन और संरक्षण के काम के दौरान पता चला है कि शहर के नीचे गुफाओं और सुरंगों का इंद्रजाल फैला हुआ है। 17वीं शताब्दी से लेकर 19 वीं शताब्दी तक लखनऊ ने विकास की कई सीढि़यां पार कीं। क्राउड मार्टिन, आसिफुद्दौला, नवाब शहादत अली खान, नसीरुद्दीन हैदर ने जितने भी निर्माण करवाये, उन्हें एक-दूसरे से जोड़ने के लिए अंडरग्राउंड रास्तों का इस्तेमाल किया। इन गुफाओं और टनल की खासियत ये थी कि ये सब नदी के किनारे आकर खुलती थीं। लेकिन, अंग्रेजों के शासन में इनका इस्तेमाल सीवरेज की तरह किया जाने लगा। और, धीरे-धीरे पहले ये बंद हुईं और फिर गायब। हालिया, कवायद में एक बार फिर इनका अस्तित्व सामने आ रहा है। कई ऐसी इमारते हैं, जहां गुफाओं और सुरंगों के सुबूत मिले हैं।

इमारत - इमामबाड़ा

बनवाया- नवाब आसिफुददौला

सन् 1775

इतिहासकार बताते हैं कि इमामबाड़े के नीचे कई ऐसे टनल हैं, जो गोमती नदी के किनारे के अलावा सीतापुर रोड तक निकलते हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि इसके नीचे खजाना छिपा है, जिसकी सुरक्षा के लिए भूलभूलैया का निर्माण किया गया था।

गुलिस्ता ए इरम

नसीरुददीन हैदर

सन् 1837

जानकारों के मुताबिक इसका निर्माण नवाब नसीरुद्दीन ने करवाया था। ये भी मत है कि इसी जगह पर उसकी हत्या की गई थी। मौजूदा समय में इस इमारत का सौंदर्यीकरण हो रहा है, जहां पर निचले तल में एक जगह ऐसी सुरंग है, जो आगे जाकर बंद हो गई है। ऐसा माना जा रहा है कि अगर इसकी खुदाई कराई जाये तो ये फरहत वक्श कोठी में जाकर मिलेगी।

ललित कला अकादमी लाल बारादरी

निर्माण- नवाब शहादत अली खां

सन् 1799

मौजूदा समय में जो ललित कला अकादमी है उसके नीचे जो अब लाइब्रेरी बन गई है। यहां पर एक नीचे जाता हुआ रास्ता है, जिसको अब बंद कर दिया है। फरहत बक्श कोठी से निकलने वाली गुफा ललित कला अकादमी लाल बारादरी से होते हुए गुलिस्ता ए इरम तक मिलती है।

फरहत बक्श कोठी

निर्माण - क्लाउड मार्टिन

सन्- 1771 से लेकर 1791 के बीच

फरहत बक्श कोठी सबसे पहले मार्टिन विला के नाम से जानी जाती थी बाद में इसको आसिफुद्दौला ने खरीद लिया था। नवाब शहादत अली खां अपनी बीमारी के समय यहीं आकर रहने लगे थे, जिसके बाद उन्होंने इसका नाम बदलकर फरहत बक्श कोठी कर दिया। ये कोठी पूरी तरह से यूरोपियन स्टाइल में बनी हुई है। जानकारों के मुताबिक उस समय गर्मी से बचने के लिए टनल को बनाया गया था, जिसमें नदी का पानी सीधे टनल में आता था।

डालीगंज रेलवे स्टेशन पर निकली गुफा

दो दिन पूर्व डालीगंज रेलवे स्टेशन पर निर्माण कार्य चल रहा था जिसमें लोगों को खुदाई के दौरान एक नीचे जाती गुफा दिखी। जिसके बाद कार्य को रोक दिया गया। जानकारों ने बताया कि ये गुफा गोमती में जाकर मिलती है। जिसका निर्माण नसीरुददीन हैदर ने सन् 1832 से लेकर 1837 के बीच करवाया था। गुफा का रास्ता तिलक हॉस्टल के पास स्थित बादशाह नसीरुद्दीन हैदर के महल से निकलकर गोमती नदी तक आता है, जिसके कारण इतिहासकारों का मानना है कि इस गुफा का इस्तेमाल लोगों के आवागमन और पानी के इस्तेमाल के लिए किया जाता था। जानकारों का अनुमान है कि ये गुफा लगभग तीन किलोमीटर लंबी है।

दुश्मनों से बचने के लिए बनाई गई थी गुफा-इतिहासकार

इतिहासकार योगेश प्रवीन बताते हैं कि शहर की ज्यादातर ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण एक ही वंशज के लोगों ने करवाया है, जिसके कारण इसमें सामानता देखने को मिलती है। शहर में ऐसी बहुत सी गुफाएं है, जिनका निर्माण नवाबों की बेगम को परदा प्रथा के चलते किया गया। साथ ही इसका निर्माण बाहरी दुश्मनों के आक्रमण से बचने के लिए भी होता था। वरिष्ठ टूरिस्ट गाइड नवेद ने बताया कि फरहत बक्श कोठी में मैने दो नाव देखी थीं, जिससे ये साबित होता है कि गुफाओं के अंदर तक नदी का पानी जाता था। पूरा शहर एक दूसरे से गुफाओं जरिये कनेक्ट है। बीबियापुर कोठी से मूसाबाग तक गुफाओं के जरिये जाने का रास्ता था।