-3 जुलाई वर्ष 2009 को हुआ था रणवीर का फर्जी एनकाउंटर

-लाडपुर के जंगल में पुलिस ने किया था एनकाउंटर का दावा

-कुल 18 पुलिसकर्मी पाए गए कथित एनकाउंटर में दोषी

-17 पर साजिश, हत्या का दोष, एक पर साक्ष्य छिपाने की पुष्टि

-सोमवार को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट सुना सकती है सजा

DEHRADUN : सीबीआई कोर्ट ने एमबीए के छात्र रणवीर सिंह चौधरी के फर्जी एनकाउंटर केस में उत्तराखंड के 17 पुलिसकर्मियों को साजिश व हत्या का दोषी ठहराया है। वहीं एक पर सबूत नष्ट करने का आरोप सिद्ध हुआ। सीबीआई ने 18 पुलिसकर्मियों को फर्जी मुठभेड़ का आरोपी बनाया था। इसमें एक इंस्पेक्टर, पांच सब इंस्पेक्टर और 12 कांस्टेबल शामिल थे। इस चर्चित मामले की जांच लंबे समय तक दून में ही चलती रही। इसके बाद रणवीर के पिता ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई। जिसके बाद केस सुनवाई के लिए दिल्ली ट्रांसफर कर दिया गया। वर्ष 2009 जुलाई माह में हुए इस कथित एनकाउंटर को लेकर राज्य पुलिस की छवि भी काफी धूमिल हुई।

क्या था एनकाउंटर का सच

3 जुलाई वर्ष 2009 के दिन देश का रेलवे बजट आया था और राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल दून व मसूरी के दौरे पर आने वाली थी। इस दौरान कंट्रोल रूम में सूचना फ्लैश हुई कि बाइक सवार तीन बदमाशों ने चौकी इंचार्ज आराघर जीडी भट्ट पर हमला करते हुए उनकी सर्विस रिवाल्वर लूट ली है। खाकी पर हुए हमले के बाद कई थाना की पुलिस ने एसओजी के साथ मिलकर बदमाशों की तलाश शुरू कर दी। दोपहर बाद पुलिस ने दावा किया कि, एक बदमाश को रायपुर थाना एरिया के रिंग रोड स्थित लाडपुर के जंगल में मार गिराया गया। पुलिस अपने दावे पर टिकी रही, लेकिन मामला जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया पुलिस के दावों की हवा भी निकलने लगी।

ऐसे हुई शिनाख्त

एक बदमाश के एनकाउंटर की खबर मिलने के बाद पुलिस ऑफिसर्स और मीडिया का भारी जमावड़ा लग गया। तत्कालीन आईडी गढ़वाल एमए गणपति ने भी मौका मुआयना किया। कथित एनकाउंटर के काफी देर बाद तक मृतक की पहचान नहीं हो सकी। करीब एक घंटे बाद मौके पर पहुंचे एक सर्किल ऑफिसर ने मृतक की जेब से एक आईडी कार्ड प्राप्त किया। जिसके आधार पर उसकी शिनाख्त रणवीर सिंह चौधरी के तौर पर की गई। इसमें उसका पता गाजियाबाद , इंदिरापुरम दर्शाया गया था। बाद में पता लगा वह मूल रूप से जनपद बागपत के खेगड़ा के करीब नरोजपुर एमा का रहने वाला था। शिनाख्त होने के साथ ही इस कथित एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों की उल्टी गिनती भी शुरू हो गई थी। दिल्ली स्थित कोर्ट ने सभी पुलिसकर्मियों को दोषी करार देते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया है।

ये पुलिस कर्मी पाए गए दोषी

संतोष कुमार जायसवाल(इंस्पेक्टर) साजिश, हत्या

नितीन चौहान (एसओजी प्रभारी) साजिश , हत्या

जीडी भट्ट (सब इंस्पेक्टर) साजिश, हत्या

नीरज यादव (सब इंस्पेक्टर) साजिश, हत्या

चंद्रमोहन सिंह रावत (सब इंस्पेक्टर) साजिश, हत्या

राजेश बिष्ट (सब इंस्पेक्टर) साजिश, हत्या

अजित सिंह (कांस्टेबल) साजिश, हत्या

सतबीर सिंह (कांस्टेबल) साजिश, हत्या

नागेंद्र राठी (कांस्टेबल) साजिश, हत्या

सुनिल सैनी (कांस्टेबल) साजिश, हत्या

चंद्रपाल (कांस्टेबल) साजिश, हत्या

सौरभ नौटियाल (कांस्टेबल) साजिश, हत्या

विकास चंद्र बलूनी (कांस्टेबल) साजिश, हत्या

संजय कुमार (कांस्टेबल) साजिश, हत्या

मनोज रावत (कांस्टेबल) साजिश, हत्या

इंद्रभान सिंह (कांस्टेबल) साजिश , हत्या

मोहन सिंह राणा (ड्राइवर ) साजिश , हत्या

जसपाल सिंह गुंसाई (हेड आपरेटर) साक्ष्य छिपाना

जीत कर भी हारा हुआ हूं

-आई-नेक्स्ट से बातचीत में रणवीर के पिता ने बयां किया दर्द

-बेटे को न्याय दिलाने के लिए सबकुछ लगा दिया दांव पर

DEHRADUN : एक पिता के लिए जवान बेटे का शव अपने कंधे पर उठाना सबसे दुखद कहा जाता है। तमाम दुख-दर्द को सीने में समेटे रणवीर के पिता रविंद्र सिंह ने इंसाफ के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में सुनवाई शुरू होने के पहले दिन से लेकर आरोपी पुलिस कर्मियों पर दोष सिद्ध होने तक वह रोज कोर्ट जाते रहे। शुक्रवार को जब तीस हजारी कोर्ट के जज जेपीएस मलिक ने दोष सिद्ध किया तो उनकी आंखें एक बार फिर से भर आई। चेहरे पर बेटे की हत्या के आरोपियों को सजा की दहलीज तक पहुंचाने का भाव आ गया। आई-नेक्स्ट से टेलीफोन पर बात करने पर उन्होंने कहा, केस भले ही जीत गया हूं, लेकिन मैं तो जीत कर भी हारा हुआ हूं।

हर सुनवाई पर रहे कोर्ट मे मौजूद

अपने दम पर बेटे के कथित एनकाउंटर की लड़ाई लड़ने वाले बागपत, नरोजपुर एमा निवासी रविंद्र सिंह चौधरी ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। केस को दून से दिल्ली ट्रांसफर कराने के साथ जांच सीबीआई से कराने के लिए भी इस शख्स ने पूरा जोर लगाया। बाद में केस की सुनवाई जब तीस हजारी के सीबीआई कोर्ट में शुरू हुई तो सोमवार से लेकर शनिवार तक वे हर दिन कोर्ट में मौजूद रहे। उन्होंने कहा बेटे के हत्या के आरोपियों को सामने देखकर अपनी भावनाओं पर काबू रख पाना मुश्किल था, लेकिन न्याय की जंग में मैंने ये सब सहा।

छोड़ दिया पुराना घर

एमबीए के स्टूडेंट रणवीर को घर के सभी सदस्य बेहद प्यार करते थे। यही वजह थी कि, चौधरी परिवार ने गाजियाबाद के इंदिरापुरम का अपना किराए का वह मकान छोड़ दिया, जहां वे रहा करते थे। लड़ाई लंबी थी इसलिए गांव की कुछ पैतृक संपति को बेच कर गाजियाबाद के ही शालिमार इलाके में एक मकान ले लिया। हर सुनवाई पर वे खुद मौजूद रहे इसलिए उन्होंने बागपत तक जाना छोड़ दिया। जहां पहले कभी वे अक्सर जाते रहते थे। आरोपियों पर दोष सिद्ध होने के लिए उन्होंने मीडिया का दिल से आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि, उनकी लड़ाई अकेले संभव नहीं थी। उन्हें न्याय दिलाने में मीडिया का काफी बड़ा योगदान है।