बेगूसराय के पीयूष कुमार और इला कुमारी का यह जलवा इंटरमीडिएट रिजल्ट में सबसे खास लम्हा रहा। ऐसा फस्र्ट टाइम हुआ, जब टॉप थ्री पोजीशन के दो स्थानों पर किसी भाई-बहन ने जगह बनाई। दोनों भाई-बहन के लिए यह एग्जामिनेशन दूसरे अन्य स्टूडेंट्स से अलग था, क्योंकि उनका कांप्टीशन दूसरे तीन लाख स्टूडेंट्स से तो था ही, अपने घर में भी था। दाऊदनगर कॉलेज के प्रिंसिपल प्रो गणेश महतो के दोनों बच्चों ने पूरे बिहार में पहले और तीसरे स्थान पर कब्जा किया है। दोनों के रिजल्ट ने ना सिर्फ घरवालों की खुशी को टॉप पर पहुंचाया, बल्कि टॉप लिस्ट में अपने स्कूल और डिस्ट्रिक्ट का नाम भी ला दिया।

इससे बड़ी खुशी और क्या होगी?

पीयूष और इला दोनों जुड़वा भाई-बहन ने जो कमाल किया, उसकी उम्मीद घर में किसी को नहीं थी। पिता प्रो महतो कहते हैं कि दोनों पढऩे में अच्छे थे, लेकिन स्टेट टॉपर बन जाएंगे, कभी नहीं सोचा था। उन्होंने बताया कि बिहार बोर्ड की मार्किंग सिस्टम दूसरे अन्य बोड्र्स के मुकाबले थोड़ी कंजर्वेटिव होती है, इसलिए रिजल्ट का प्री-असेसमेंट मुश्किल होता है। हालांकि इतना विश्वास था कि दोनों के माक्र्स डिस्टिंक्शन से कहीं उपर रहेंगे। उन्होंने कहा कि मैं बहुत खुश हूं, क्योंकि यह किसी भी पिता के लिए सबसे बड़ी खुशियों में से एक है।

अब जंग आईएएस और डॉक्टर बनने की

एक ही घर से एक ही साल दो स्टेट टॉपर्स निकले, तो उस घर के फ्यूचर के बारे में कई कयास लगने शुरू हो जाते हैं। पीयूष और इला भी अपने कॅरियर को लेकर फोकस्ड हैं। पिता भले ही टीचर हों, लेकिन पीयूष आईएएस ऑफिसर बनना चाहता है, जबकि इला को डॉक्टर बनना है। दोनों के कॅरियर के रास्ते अलग हैं, पर इसके प्रति उनके पिता प्रो महतो होपफुल हैं। उन्होंने बताया कि कॅरियर सेलेक्शन दोनों के अपने इंटरेस्ट का है, इसमें किसी पर कोई जोर नहीं है।

कांप्टीशन से ज्यादा सपोर्ट

पीयूष और इला दोनों ही पढऩे में अच्छे थे। दोनों ही अपनी सक्सेस का क्रेडिट अपने पिता को देते हैं, क्योंकि उन्होंने हमेशा ही सपोर्ट किया। दोनों की पढ़ाई साथ चल रही थी, तो दोनों में माक्र्स को लेकर ऊपर-नीचे होना आम बात थी। स्कूल के यूनिट टेस्ट में दोनों के माक्र्स वैरी करते रहते थे। कभी पीयूष को अधिक माक्र्स मिले, तो कभी इला ने बाजी मारी। दोनों के इस कांप्टीशन के बारे में उनके पिता प्रो महतो का कहना है कि दोनों एक ही क्लास में थे, तो माक्र्स कम-ज्यादा आना ही था, पर दोनों में कांप्टीशन जैसा कुछ नहीं था। दोनों हमेशा एक-दूसरे की कमियों को दूर करने में रहते हैं। कांप्टीशन है भी, तो हेल्दी. 

मैथ्स तो पापा ने ही सिखाया

इंटरमीडिएट में 92 परसेंट माक्र्स के साथ स्टेट टॉपर रहा पीयूष दसवीं में सीबीएसई बोर्ड का स्टूडेंट था। इसमें उसकी रैंकिंग सिर्फ 8.8 सीजीपीए ही पहुंच सकी थी, पर इंटरमीडिएट में उसने यह कसर दूर कर ली। रिजल्ट के बाद पीयूष ने बताया कि मैं मेहनत से कभी नहीं घबराता, क्योंकि पापा ने हमेशा मेहनत करने की सीख दी। पापा मैथ्स के प्रोफेसर रहे हैं और बचपन से हमें उन्होंने ही मैथ्स पढ़ाया है। इस कारण मैथ्स की तैयारी पहले ही हो चुकी थी। अपनी बहन के साथ कांप्टीशन के बारे में पीयूष का कहना है कि कांप्टीशन तो जरूरी है। अगर घर में ही कांपटीटर हो, तो मेहनत की लगन कई गुना बढ़ जाती है।

इस बार कुछ करना था

अपने भाई की तरह ही सीबीएसई से 10वीं करने वाली इला के लिए इंटरमीडिएट एक चैलेंज की तरह था। इला बताती है कि पिछले कुछ सालों में मैंने कई एग्जामिनेशन के रिजल्ट में लड़कियों को टॉपर बनते देखा था, तो मेरी भी इच्छा थी कि मैं भी टॉप करूं। 10वीं में ऐसा ना हो सका और भाई से काफी कम नंबर आए। 12वीं में कुछ अच्छा करने की उम्मीद थी और संयोगवश ऐसा हो भी गया। स्टेट में तीसरी पोजीशन मिली, जो मेरे लिए टॉपर से कम नहीं है। इला ने बताया कि यह बात अलग है कि भाई ने इस एग्जामिनेशन में भी बाजी मार ली, लेकिन मैं भी ज्यादा पीछे नहीं हूं।