RANCHI : इस देश में क्रिकेट का ग्लैमर किसी से छिपा नहीं है। क्रिकेटर बनने की ख्वाहिश तो यूथ रखते ही हैं, पर कुछ ऐसे भी शख्स हैं, जो बतौर अंपायर अपना भविष्य तलाश रहे हैं। खास बात है कि अब अंपायर बनने के लिए महिलाएं भी दिलचस्पी दिखा रही हैं। झारखंड स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन के तत्वावधान में जेएससीए इंटरनेशनल स्टेडियम में बुधवार से शुरू हुए अंपायर्स वर्कशॉप में स्टेट पैनल के 53 अंपायर्स पार्टिसिपेट कर रहे हैं। इन अंपायर्स में तीन वूमेन अंपायर्स भी शामिल हैं, जो अपनी अंपायरिंग को और परफेक्ट बनाने के लिए वर्कशॉप में आई हैं। यह वर्कशॉप तीन दिनों तक चलेगा।

अंपायर्स की चल रही क्लास

जेएससीए के प्रेसिडेंट अमिताभ चौधरी ने बुधवार को जेएससीए इंटरनेशनल स्टेडियम धुर्वा में ईस्ट जोन अंपायर्स वर्कशॉप का इनॉगरेशन किया। इस वर्कशॉप में झारखंड के 47, वेस्ट बंगाल के तीन, त्रिपुरा के दो और असम के एक अंपायर भाग ले रहे हैं। स्टेट पैनल के इन सभी अंपायर्स को बेंगलुरू से आए एस तारापोर और पुणे के विनित कुलकर्णी अंपायरिंग की टेक्निक बता रहे हैं।

महिला अंपायर्स भी मौजूद

अंपायर्स वर्कशॉप की खासियत है कि इसमें तीन वूमेन अंपायर्स भी पार्टिसिपेट कर रही हैं। ये तीनों का पहले से ही क्रिकेट से नाता रहा है। खास बात है कि ये तीनों वूमेन अंपायर्स का नाता झारखंड से है। इनमें पुष्पांजलि और मोमिता जमशेदपुर से बिलांग करती हैं तो मनीषा लोधा रांची की रहनेवाली हैं। इनका कहना है कि इन्होंने क्रिकेट के क्रेज को देखते हुए बतौर प्रोफेशन अंपायरिंग के फील्ड में कदम रखने का फैसला किया।

क्रिकेट के लिए छोड़ दी नौकरी

झारखंड स्टेट ग‌र्ल्स क्रिकेट टीम की मेंबर रह चुकीं मोमिता चक्रवती आज अंपायरिंग को प्रोफेशन बनाने में जुटी हैं। मोमिता लेवल ए की कोच भी हैं और अब अंपायर बनने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी हैं। फिलहाल वह स्टेट लेवल की अंपायर हैं। दरअसल क्रिकेट खेलने के बाद मोमिता को इस खेल के क्रेज ने अंपायर बनने के लिए विवश कर दिया। मोमिता 2010 से अंपायरिंग कर रही हैं। इस बीच उन्होंने स्टेट पैनल के लिए हुए एग्जाम को फ‌र्स्ट क्लास से पास किया। मोमिता बताती हैं कि उन्हें क्रिकेट खेलने व अंपायर बनने से न तो घरवालों ने रोका और न ही शादी के बाद पति ने। पति सौविक हमेशा प्रोत्साहित करते रहे। पापा अनिल चक्रवर्ती और मम्मी का हमेशा साथ मिला, हालांकि, शुरू में इसके लिए थोड़ा स्ट्रगल करना पड़ा। अंपायरिंग में आने के बाद बैंक में नौकरी मिली। ऐसे में सुबह 9 से शाम 5 बडे तक बैंक में रहने की वजह से क्रिकेट में ध्यान नहीं दे पाती थी। ऐसे में जॉब को ही छोड़ दिया। फिलहाल कोलकाता में रहती हूं। ग‌र्ल्स से यही कहना है कि क्रिकेटर बने लेकिन अंपायरिंग से भी नाता जोड़ें।

अंपायरिंग के लिए ग‌र्ल्स आए आगे

जमशेदपुर की पुष्पांजली 2010 से ही स्टेट लेवल पर अंपायरिंग कर रही हैं। पुष्पांजलि स्टेट लेवल की क्रिकेटर भी रह चुकी हैं। इतना ही नहीं, वह लेवल बी की क्रिकेट कोच भी हैं। पुष्पांजलि बताती हैं कि पिता पीसी मोहंती टिस्को में काम करते थे। पढ़ाई के साथ मेरी क्रिकेट भी चलती रही। क्रिकेट से इतना लगाव है कि खेल छोड़ने के बाद अंपायरिंग को प्रोफेशन बना लिया। वैसे आज अंपायरिंग के फील्ड में महिलाओं की संख्या काफी कम है। मुझे अब हमेशा ब्वॉयज के ए डिवीजन, बी डिवीजन और सुपर डिवीजन मैचेज की अंपायरिंग करनी पड़ती है अब तो आदत सी हो गई है। मेरे विचार से ग‌र्ल्स को भी अंपायरिंग के लिए आगे आना चाहिए।

क्रिकेट के क्रेज ने बनाया अंपायर

रांची की मनीषा झारखंड के लिए क्रिकेट खेल चुकी हैं। इसके बाद 2010 से वह लगातार अंपायरिंग करती आ रही हैं। मनीषा बताती हैं कि पापा तो इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन मां सुमित्रा ने हम चार भाई-बहनों को अच्छे से पढ़ाया। क्रिकेट में अगर मैंने मुकाम हासिल की है तो उसमें मम्मी का बहुत बड़ा सपोर्ट रहा है। क्रिकेट खेलते-खेलते मैंने बीकॉम किया। फिलहाल सीए की आर्टिकलशीप के साथ अंपायरिंग भी कर रही हूं। इतना ही नहीं एक्यूप्रेशर व किरो थेरेपी की भी जानकारी है। वैसे इन सबसे अलग हटकर क्रिकेट से सबसे ज्यादा लगाव है। यही वजह है कि अंपायरिंग के वर्कशॉप में शामिल होने आई हूं।