संयुक्त राष्ट्र में गत बुधवार को एक विशेष कार्यक्रम में भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी गई.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा, "उस समय ब्रितानी साम्राज्य का हिस्सा रहे भारत के 10 लाख से ज़्यादा सैनिक युद्ध में शामिल हुए थे, जिनमें से 60 हज़ार से ज़्यादा मारे गए थे. कई बार ऐसा होता है कि इतिहास में इस तरह के बहुत बड़े बलिदान को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है."

बान की मून ने प्रथम विश्व युद्ध में मरने वालों को कभी न भूलने की हिदायत करते हुए एक भारतीय गढ़वाली सैनिक के अपने परिवार को लिखे एक पत्र के कुछ अंश पढ़े.

वर्ष 1915 में लिखे गए इस ख़त में भारतीय सैनिक ने लिखा था, "गोलियां और तोप के गोले बर्फ़बारी की तरह गिरते हैं. कीचड़ में लोग कमर तक धंसे हुए होते हैं. हम लोगों और दुशमनों के बीच 50 फर्लांग की ही दूरी होती है... और जंग के दौरान मरने वालों की संख्या गिनी नहीं जा सकती."

बान की मून ने कहा कि इतिहास के बदतरीन सबकों से पूरी तरह सीख लेना अभी तक बाकी है.

महात्मा गांधी का पत्र

सौ साल बाद मिला भारतीय सैनिकों को सम्मान

कार्यक्रम के दौरान बान की मून ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष जॉन ऐश के साथ एक पुस्तक 'इंडियन वॉर मेमोरियलस ऑफ़ द फ़र्स्ट वर्ल्ड वॉर' का विमोचन भी किया.

सौ साल बाद मिला भारतीय सैनिकों को सम्मान

इसमें दुनिया भर में प्रथम विश्व युद्ध में मारे गए भारतीय सैनिकों के स्मारक के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है.

एक सौ तेरह पन्नों की इस पुस्तक का संपादन संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत अशोक मुखर्जी ने किया है.

इस मौके पर भारतीय राजदूत ने कहा, "प्रथम विश्व युद्ध के उन भारतीय सैनिकों के बलिदान को याद करके हमें आने वाली नस्लों को युद्ध से बचाना चाहिए."

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