मुनाफा पहले, जिंदगी बाद में

संजय नगर, पीलीभीत बाईपास और जवाहर मार्केट में सीएनजी किट के सबसे ज्यादा कारोबारी हैं। बिना रजिस्ट्रेशन के वर्क कर रहे ये कारोबारी मुनाफा कमाने के चक्कर में जिंदगी से खेल रहे हैं। आगरा, मेरठ और दिल्ली में बनी घटिया किस्म की एलपीजी और सीएनजी किट अनट्रेंड मैकेनिक किसी व्हीकल में लगा देते हैं। अक्सर इन जगहों पर बनने वाली किट में सिक्योरिटी स्टैंडर्ड का ध्यान एकदम नहीं रखा जाता है। फ्यूल के रूप में यूज होने वाली सीएनजी हाइली फ्लेमेबल होती है और आग लगने के दौरान ये किसी विस्फोटक की तरह भी बन सकती है। कार एक्सीडेंट के दौरान या फिर नार्मली भी शार्ट सर्किट के चलते ये हादसा बड़ी अनहोनी करा सकता है।

Duplicate की कीमत अधिक

डुप्लीकेसी का पता नहीं चल पाने की स्थिति में अनऑथोराइज्ड शॉप ओनर कस्टमर से मनमाना पैसा वसूल रहे हैं, डुप्लीकेट किट को ओरिजनल बताकर कस्टमर को बेच दिया जाता है जबकि इन कारोबारियों के यहां सीएनजी व एलपीजी की ओरिजनल किट नदारद ही रहती है। पीलीभीत बाईपास स्थित जनरल मोटर सेंटर के ओनर मनोज का कहना है कि सीएनजी की ओरिजनल किट 22,000 से 25,000 में आ जाती है जबकि एलपीजी किट 12,000 रुपए में आती है। मगर जानकारी के अभाव में डुप्लीकेट किट को ही कस्टमर को अधिक दाम में बेच दिया जाता है।

अनट्रेंड मैकेनिक

इन शॉप्स पर काम करने वाले वर्कर भी अनट्रेंड होते हैं। इन्हें ट्रेंड मैकेनिक्स की अपेक्षा कम पेमेंट करना पड़ता है। तो कम पैसे के चक्कर में ही ओनर ऐसे अनट्रेंड लोगों को इस काम के लिए प्रिफर करते हैं। इस कारण भी इन किट्स की सही फिटिंग पर बिल्कुल भरोसा नहीं किया जा सकता है। जबकि नियमों के मुताबिक ट्रांसपोर्ट कमीशन की ओर से जांच के बाद ही इन   किट्स सेंटर पर अनुभवी और ट्रेंड मैकेनिक रखे जाने चाहिए।

असली नकली की पहचान

-ओरिजनल किट में पूरा बॉक्स एक क्वालिटी का होता है। किट का छोटे से लेकर बड़ा पार्ट भी एक ही कंपनी का होता है। जबकि डुप्लीकेट किट के पाट्र्स अलग-अलग कंपनियों के होते हैं।

-ओरिजनल रिड्यूजर व व्रेपराइजर पर ब्लू कलर की एक चिट लगी होती है, जबकि नकली रिड्यूजर व्रेपराइजर पर लगी चिट का कलर हल्का होता है।

-डुप्लीकेट और ओरिजनल किट की फिनिशिंग में भी काफी अंतर होता है।

-डुप्लीकेट किट में खांचे नहीं होते हैं, जबकि ओरिजनल किट में खांचे बने होते हैं।

-ओरिजनल किट की टंकी सीएनजी में 12,13 और 14 केजी की होती है। डुप्लीकेट में ऐसा कोई स्टैंडर्ड नहीं होता है।

-कार के लिए एलपीजी में 60 लीटर की टंकी को अप्रूवल दिया गया है जबकि डुप्लीकेट किट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

'एआरटीओ और आरआई की ओर से जांच की जाती है। जांच के दौरान अक्सर वायरिंग में ही गड़बड़ी पायी जाती है। वाहन में जो भी किट लगायी जाती है, उसकी वायरिंग अच्छी होनी चाहिए। वायरिंग सही ना होने पर आग लगने का खतरा बना रहता है। इसलिए लोगों को सही जगह से और प्रॉपर ढंग से ही किट लगवानी चाहिए। '

आरके वर्मा, एआरटीओ, एडमिनिस्ट्रेशन

'कुछ लोगों की वजह से हम लोगों का नाम बदनाम हो रहा है। डुप्लीकेट किट लगाने वालों पर रोक लगनी चाहिए। सिटी में ऐसे कई लोग है जो डुप्लीकेसी का काम कर रहे हैं। ओरिजनल और डुप्लीकेट किट में कोई खास अंतर नहीं होने के वजह से कस्टमर उसके डिफरेंट को आसानी से पहचान नहीं पाता है। जिसका फायदा इल्लीगल शॉप ओनर उठा रहे हैं.'

मनोज, जनरल मोटर सेंटर