India is one of the most sensitive countries

प्रो। आरपी यादव ने बताया कि नेचुरल डिजास्टर्स के लिए इंडिया विश्व के सर्वाधिक सेंसिटिव देशों में शामिल है। डेमोक्रेसी के नाम पर आज जगह-जगह सुरंग और सड़कें खोदना आम बात है, उसके लिए डाइनामाइट आदि का यूज हो रहा है। इससे पहाड़ कमजोर हो रहे हैं। रही सही कसर पिघलते हुए ग्लेशियर पूरी कर रहे हैं। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन 'इसरोÓ के अनुसार देश में इस समय लगभग 15 हजार ग्लेशियर्स हैं। उन्होंने कहा कि डिजास्टर बताकर नहीं आते। 16 जून को उत्तराखंड में जो हुआ वह सिर्फ एक राज्य की प्रॉब्लम नहीं है। अगर वह राज्य यूपी से अलग नहीं होता तो आज जो समस्या वहां की गवर्नमेंट फेस कर रही है वह यूपी गवर्नमेंट फेस कर रही होती।

We are unsafe too

कोई भी राज्य इतनी बड़े डिजास्टर से अकेला नहीं निपट सकता। प्रो। यादव ने बताया कि देश का 55 परसेंट हिस्सा सेस्मिक जोन 3 और 4 में आता है जिसमें गोरखपुर भी शामिल है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम कितने सेफ हैं। उन्होंने कहा कि अगर स्थितियों को कंट्रोल नहीं किया गया तो एक दिन ऐसा आएगा जब पहले बाढ़ आएगी और फिर सूखा पड़ेगा। प्रो। यादव के अनुसार डिजास्टर मैनेजमेंट समस्या आने से पहले तैयारी करना है न कि समस्या आने के बाद, जबकि हमारे यहां समस्या आने के बाद उससे निपटने का सोचा जाता है। यही कारण है कि डिजास्टर आने पर भारी मात्रा में जान माल का नुकसान होता है। उन्होंने स्टेट लेवल और नेशनल लेवल की डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटीज को मजबूत करने की जरूरत बताई।

कॉलेजों में हो डिजास्टर मैनेजमेंट की पढ़ाई

विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय ने इस मौके पर कहा कि उत्तराखंड डिजास्टर के बाद साइंटिस्ट्स, साधु संत, एक आम आदमी हर कोई अपनी-अपनी बात कह रहा है। लेकिन सच यही है कि नेचुरल रिसोर्सेज का दोहन करने से ऐसा हुआ है। उन्होंने बताया कि नासा ने डिजास्टर आने से 2-3 दिन पहले ही चेतावनी दी थी। मौसम विभाग ने भी भारी बरसात की संभावना जताते हुए आगाह किया था लेकिन उन बातों पर ध्यान नहीं दिया गया। अगर उन बातों पर ध्यान देते हुए श्रद्धालुओं को वहां जाने से रोक दिया जाता तो शायद इतनी बड़ी संख्या में जानें नहीं जाती, लोग अपनों से नहीं बिछड़ते। उन्होंने इन टॉपिक्स पर रिसर्च और कॉलेजों में डिजास्टर मैनेजमेंट की पढ़ाई को बढ़ावा देने की नीड बताई।

आने वाली समस्या का इशारा है ये

वीसी प्रो। पीसी त्रिवेदी ने बताया कि 2005 में उत्तराखंड में मात्र 400 के आसपास गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन हुआ था जबकि 2012 में वहां 40 हजार गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन हुआ। मात्र 7 साल में रोड पर आने वाली गाड़ियों की संख्या में यह बहुत बड़ी वृद्धि है। उन्होंने कहा कि डिजास्टर को आने के लिए वीजा या पासपोर्ट नहीं चाहिए। इस घटना ने भविष्य में आने वाली उस समस्या का साक्षात्कार कराया है जिसके बारे में साइंटिस्ट्स पहले से चिंता जता रहे हैं। उन्होंने बताया कि 26 फरवरी को उत्तराखंड गवर्नमेंट ने गंगा किनारे के सभी इल्लीगल कन्स्ट्रक्शन हटाने को कहा था। वह लोग तो ऐसा नहीं कर पाए लेकिन गंगा, जमुना, मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों ने खुद ही उन कन्स्ट्रक्शन्स को हटा दिया।

200 ग्लेशियर्स हैं खतरनाक

वीसी ने बताया कि उत्तराखंड, जम्मू एंड कश्मीर और हिमालय के आसपास के एरियाज में लगभग 8 हजार ग्लेशियर्स हिल रहे हैं जिनमें से 200 बहुत ही खतरनाक हैं। स्थितियों को अभी से कंट्रोल करना जरूरी है। हम टूरिज्म को बढ़ावा देकर सिर्फ पैसे कमाने और डेवलपमेंट की सोच रहे हैं जो खतरनाक हो सकता है। उन्होंने कहा कि मसूरी और नैनीताल में ऐसे इक्विपमेंट्स लगने के लिए कई सालों से आए हुए हैं जिनसे कब कितने एमएम बरसात होगी इसका पता पहले से चल सकता है। लेकिन उनको लगाने के लिए जमीन नहीं मिल पा रही। वीसी ने कहा कि हमारे यहां चीजें महंगी हैं पर जानें सस्ती। प्रोग्राम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन डीएसडब्लू डॉ। रजनीकांत पांडेय ने किया। इस मौके पर यूनिवर्सिटी के डीन्स, एचओडी, टीचर्स, एम्प्लॉइज, स्टूडेंट्स और सिटी के अन्य लोग मौजूद रहे।