किसी के पास नहीं फुर्सत
चुनाव लडऩे के फैसले के बाद पॉलिटिकल लीडर्स तो खुश हैं, लेकिन जेल में बंद अंडर ट्रायल कैदियों के बारे में सोचने की फुर्सत किसी के पास नहीं है। ट्रायल कैदियों के पास वोट देने का अधिकार नहीं है। इसे लेकर न तो सेंट्रल गवर्नमेंट ने, न पार्लियामेंट ने और न ही स्टेट गवर्नमेंट ने ही कोई पहल की है।


Convicted लोग नहीं लड़ सकेंगे चुनाव
कनविक्टेड पोलिटिकल लीडर्स के इलेक्शन लडऩे को लेकर अपने दिए गए आदेश को सेंट्रल गवर्नमेंट की रीविजन पीटिशन के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने जारी रखा और पीटिशन को कैंसिल कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दो साल या ज्यादा की सजा होते ही एमपी व एमएलए की मेंबरशीप छिने जाने का आदेश बरकरार रहेगा।

चुनाव लडऩे पर पाबंदी नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल गवर्नमेंट द्वारा रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट में किए गए अमेंडमेंट को मंजूरी दे दी, जिसमें जेल या पुलिस कस्टडी में बंद लोगों को चुनाव लडऩे की अनुमति दी गयी है। इसके तहत जेल या पुलिस कस्टडी में बंद लोग भी असेंबली व पार्लियामेंट्री इलेक्शन लड़ सकेंगे। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2013 को आदेश जारी किया था कि अगर कोई व्यक्ति जेल या पुलिस कस्टडी में है तो वो चुनाव नहीं लड़ पाएगा। लेकिन बाद में भारत सरकार ने लास्ट सितंबर मंथ में रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट में संशोधन कर इस प्रोवीजन को हटा दिया था बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसपर अपनी मंजूरी दे दी।

Voter हैं तो लड़ सकते हैं election
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए.के। पटनायक और जस्टिस एस.जे। मुखोपाध्याय की बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि संविधान के आर्टिकल-326 के तहत इंडियन को वोट देने और चुनाव लडऩे का राइट है। आरपीए की धारा-4 के तहत प्रावधान है कि जो लोग वोटर हैं वही लोकसभा के मेंबर हो सकते हैं जबकि सेक्शन-5 कहता है कि जो लोग वोटर हैं वह एमएलए बन सकते हैं।

इनके vote देने पर है पाबंदी
जो लोग संविधान के तहत अयोग्य नहीं हैं, वे चुनाव में वोटिंग कर सकते हैं और चुनाव लड़ सकते हैं। आर्टिकल-326 के तहत पार्लियामेंट द्वारा रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट (आरपीए) बनाया गया। इसके तहत वोटर रजिस्टर्ड किए जाते हैं। इसके तहत चुनाव कंडक्ट करने का भी प्रोविजन है। जो लोग 18 साल से कम हैं या पागल हैं, क्राइम व करप्ट प्रैक्टिस में हैं वे वोटिंग के लिए इलिजिबल नहीं हैं। रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट की धारा-62 (5) के तहत वोटिंग राइट के बारे में कहा गया है कि जो जेल में सजा काट रहा है या तड़ीपार है या लीगली पुलिस कस्टडी में है उन्हें वोटिंग का अधिकार नहीं होता।


Preventive detention वाले दे सकते हैं vote
 सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक जो प्रिवेंटिव डिटेंशन में हैं उनपर आरपीए की यह धारा लागू नहीं होती है। बता दें कि ऐसे लोग जिनपर पुलिस को शक हो कि इनके बाहर रहने पर इलेक्शन के दौरान परेशानी उत्पन्न हो सकती है या फिर वे कुछ प्रॉŽलम क्रियेट कर सकते हैं, ऐसे लोगों को इलेक्शन तक पुलिस द्वारा डिटेन किया जाता है। इसे प्रिवेंटिव डिटेंशन कहा गया है। ऐसे लोगों के पास वोटिंग राइट होता है और वे पोस्टल बैलेट के जरिए अपना वोट दे सकते हैं।


जो जेल में हैं, उन्हें  रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट 1951 की धारा 62 के तहत वोट देने का अधिकार नहीं है। जो प्रिवेंटिव डिटेंशन में हैं वे पोस्टल बैलेट के जरिए वोट दे सकेंगे।
-पीके जाजोरिया, चीफ इलेक्शन कमिश्नर, झारखंड

Report by : goutam.ojha@inext.co.in