- स्कूल या सेलेक्टेड शॉप से अधिक दाम पर यूनिफार्म लेना है मजबूरी

- स्कूल काउंटर से लेकर मार्केट तक में चल रहा कमाई का खेल

<- स्कूल या सेलेक्टेड शॉप से अधिक दाम पर यूनिफार्म लेना है मजबूरी

- स्कूल काउंटर से लेकर मार्केट तक में चल रहा कमाई का खेल

allahaabd@inext.co.in

ALLAHABAD: allahaabd@inext.co.in

ALLAHABAD: स्कूल फीस और बुक्स के साथ स्कूल यूनिफार्म भी स्कूली खर्च का अहम पार्ट है। इनके रेट भी इस बार आसमान छू रहे हैं। कई जगह तो स्कूलों की इतनी मनमानी है कि वे अपने यहां कॉपी व बुक्स के साथ ही यूनिफार्म भी बेच रहे हैं। जिनके रेट मार्केट के मुकाबले कहीं अधिक हैं। अगर कही गलती से पैरेंट्स स्कूल से यूनिफार्म ना लेकर मार्केट से लेते हैं तो स्कूल वाले उसमें कई नुक्स निकाल कर बच्चों को फिर से यूनिफार्म लेने के लिए नोटिस तक दे देते हैं। ऐसे में दोहरे खर्च से बचने के लिए पैरेंट्स महंगे रेट पर स्कूलों से यूनिफार्म लेने को विवश हैं।

सलेक्टेड शॉप पर मिलती है यूनिफार्म

जिन स्कूल में यूनिफार्म नहीं मिलती, वहां भी फीस जमा करने के दौरान सलेक्टेड दुकान का नाम और पता दे दिया जाता है। पैरेंट्स को इस बात की हिदायत दे दी जाती है कि वे बच्चों के स्कूल ड्रेस को वहीं से खरीदें। इसके बाद दुकानदार भी अपने हिसाब से उसका पैसा वसूल करते हैं। हालांकि दुकानदारों की माने तो लगातार महंगाई के कारण ऐसा होता है। लास्ट इयर के मुकाबले इस साल स्कूल यूनिफार्म के रेट में क्0 से क्भ् परसेंट तक की बढ़ोत्तरी हुई है। इस बारे में चौक में कपड़ा व्यवसायी ओकार नाथ खन्ना ने बताया कि मार्केट में हर चीज के दाम लगातार बढ़ रहे है। कपड़ों के साथ ही लेबर चार्ज में भी इजाफा हुआ है। ऐसी हालत में सीधा असर यूनिफार्म के रेट पर पड़ता है। इस साल क्लास सिक्स, सेवेन्थ और एर्थ के बच्चों के यूनिफार्म की कीमत छह से सात सौ रुपए तक है। इसमें मोजा, टाई और बेल्ट भी जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कई स्कूल तो आर्डर देकर खुद से ही यूनिफार्म बनवा लेते हैं। उनके यहां और मार्केट के रेट में भी अंतर होता है।

अब नहीं रहती कपड़ों की डिमांड

एक टाइम ऐसा भी था जब स्कूल यूनिफार्म के लिए पैरेंट्स पकड़ा लेकर खुद से बनवाते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं होता। सिटी के कपड़ा व्यवसायी अकरम शगुन बताते हैं कि पहले लोगों की बड़ी संख्या ऐसी थी, जो स्कूल यूनिफार्म के लिए कपड़ों को लेकर फिर उसकी सिलाई कराते थे। लेकिन स्कूलों की मनमानी का असर है कि अपने बच्चों के लिए भी हमें रेडीमेड यूनिफार्म खरीदनी पड़ती है। रेडीमेड कपड़ों में भी मार्केट और स्कूल की दुकानों के रेट में काफी अंतर दिखाई देता है।