यूनिवर्सिटी ने दी है परीक्षा खत्म होते ही हॉस्टल छोड़ने की हिदायत

लड़कों के साथ सबसे अधिक परेशान हैं लड़कियां

उजाड़नी होगी अब हास्टल में बसाई अपनी पूरी गृहस्थी

vikash.gupta@inext.co.in

ALLAHABAD: इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में हास्टल वॉशआउट के आदेश के बाद से सबको कमरा बचाने की जिद है। यह टेंशन किस कदर छात्र-छात्राओं पर हावी है। यह बीते 28 अप्रैल को हुये बवाल के बाद से साफ महसूस किया जा सकता है। बवाल के पहले और बाद तक लगातार छात्रों का आन्दोलन जारी है। इसका समर्थन छात्रायें भी लगातार कर रही हैं। इसके पीछे कई अहम कारण बताये जा रहे हैं, साथ ही यह भी सवाल है कि आखिर हास्टल छोड़कर यह भीड़ सिटी में कहां जायेगी ?

अभी जारी है लड़ाई

यह सच किसी से छिपा नहीं है कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के हॉस्टल्स में बड़े पैमाने पर अवैध लोगों का कब्जा है। इन्हें हास्टल्स से बेदखल करने और छात्रावासों में सुविधाओं को बहाल करने के लिये वॉशआउट का डिसीजन लिया गया है। इसकी जद में वैध छात्र-छात्रायें भी हैं। जिन्हें अब परीक्षा समाप्त होते ही हर हाल में हास्टल छोड़कर जाना ही होगा। बावजूद इसके छात्र अपने आन्दोलन पर डटे हुये हैं।

कुर्सी, मेज, तख्त सब जुगाड़ का

हास्टल्स में यूनिवर्सिटी की ओर से कोई सुविधा वर्षो से मुहैया नहीं करवाई जा रही। ऐसे में प्रत्येक हास्टल का हाल ये है कि यहां छात्र अपनी पूरी गृहस्थी बसाकर रह रहे हैं। कूलर, पंखा, कुर्सी, मेज, तख्त आदि हास्टल में सबकुछ छात्रों का अपनी जुगाड़ व्यवस्था का है। अब वे इसे लेकर कहां जाएंगे।

भीषण गर्मी भी लेगी इम्तेहान

सिटी में वैसे भी किराये का कमरा ढूंढ़ पाना कठिन काम होता है। ऊपर से छात्रों के सामने व्यावहारिक दिक्कत ये है कि इस भीषण गर्मी में हॉस्टल से निकलने वाली बड़ी तादात को कमरा कहां मिलेगा? छात्र इस बात को लेकर भी टेंशन में हैं कि लोग छात्रों को कमरा देने के नाम पर ही मुंह बिचकाना शुरू कर देते हैं। कमरा मिल भी गया तो किराया अधिक होगा। किराये के अलावा बिजली और पानी का बिल भी देना होगा।

कुल 20 है हॉस्टल्स की संख्या

हास्टल्स में रहने वाले छात्र तो टेंशन में हैं ही छात्राएं अधिक परेशान हैं। लड़के और लड़कियों के 20 हास्टल्स में अनुमानित संख्या छह हजार से पैंसठ सौ के बीच है। इसमें लड़कों की संख्या चार हजार से बयालीस सौ एवं लड़कियों की संख्या दो हजार से बाइस सौ के बीच है।

अचानक बेघर करना पीड़ादायक

जिला अधिवक्ता संघ के पूर्व अध्यक्ष एडवोकेट शीतला प्रसाद मिश्रा एवं पूर्व मंत्री एडवोकेट कौशलेश कुमार सिंह ने कहा है कि मई और जून की गर्मी में किसी को अचानक बेघर करना पीड़ादायक है। 11 मई को जिला न्यायालय इलाहाबाद के प्रांगण में हुई आपात बैठक में अधिवक्ताओं ने छात्रों के साथ किसी भी बर्बरता की निंदा करते हुए जेल में बंद छात्रों की रिहाई की मांग की।

इतनी गर्मी पड़ रही है। अब इस समय हॉस्टल छोड़कर जाने पर कमरा कहां मिलेगा? लड़कियों को खुद की सुरक्षा भी देखनी होती है। हमारे लिये तो ये टेंशन वाली बात हो गई है।

प्रियंका सिंह

मुझे पहले उम्मीद नहीं थी कि वैध लोगों को भी हॉस्टल खाली करना होगा। अब हमारे आगे टेंशन वाली बात यही है कि पहले सुरक्षित आवास तलाश करें। हॉस्टल में रहने पर ग्रुप में पढ़ाई होती है। इस समय लड़कियों के कई एग्जाम हैं।

मधु कुमारी, शोध छात्रा

चिंता वाली बात ये है कि गरीब परिवार से संबंध रखने वाले छात्र इस समय कमरा तलाशने जायेंगे तो उन्हें मंहगा किराया देना होगा। ऊपर से बिजली और पानी का बिल भी चुकाना होगा।

अवनीश यादव, हॉलैंड हाल हॉस्टल

बड़ी प्रॉब्लम तो यह है कि सिर्फ हमें ही नहीं कमरे पर रखा अपना पूरा सामान समेटना पड़ जायेगा। इससे बहुत प्रॉब्लम होगी। फिर छात्रों को कमरा देने में भी लोग आनाकानी करते हैं।

अभय पांडेय, पीसीबी हॉस्टल

बड़ा सवाल तो ये है कि हॉस्टल में रह रहे इतनी बड़ी तादात में सभी को बाहर कमरा मिल पाना मुश्किल है। परीक्षायें हैं तो छात्र घर भी नहीं जा सकते। कुछ समय पहले रूम रेंट एक्ट बनाने को लेकर भी आन्दोलन हो चुका है। बाहर का किराया बहुत ज्यादा है। जिसे छात्र वहन नहीं कर सकते।

अश्वनी मौर्या, जीएन झा हॉस्टल