नहीं थम रहा growth rate
2011 के सेंसस के अकॉर्डिंग ईस्ट सिंहभूम का पॉप्यूलेशन लगभग 23 लाख है जो 2001 में  लगभग 20 लाख था। पिछले दस सालों में डिस्ट्रिक्ट के पॉप्यूलेशन में 15.68 परसेंट का इजाफा हुआ है। पॉप्यूलेशन का ये ग्र्रोथ कई तरह की प्रॉब्लम्स को जन्म दे रहा है। बीते सालों में आबादी तो बढ़ी है पर इस बढ़ी आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में कोई खास इंप्रूवमेंट नहीं हुआ है।  

अधूरा है बदलाव
जमाना काफी आगे निकल चुका है, लड़कियां भी आज एजुकेशन और करियर जैसी चीजों को लेकर उतनी ही कॉन्शस हैं। पर बात स्टेट, डिस्ट्रिक्ट या सिटी की करें तो यहां ये बदलाव अधूरा दिखाई देता है। पॉप्यूलेशन में हर साल होने वाले इजाफा इस अधूरे बदलाव की तरफ इशारा करतें हैं, जो  लाइफ को बेटर बनाने की कोशिशों के लिए होती हैं। सिटी स्थित जुगसलाई प्राइमरी हेल्थ सेंटर की इंचार्ज डॉ भारती मिंज ने बताया कि डिफरेंट हेल्थ सेंटर्स में डिलीवरी के लिए आने वाली करीब 80 परसेंट महिलाएं 18 से 25 एज ग्र्रुप की होती हैं। 25 साल उम्र होने तक तो कई महिलाएं एक से ज्यादा बच्चों की मां बन चुकी होती हैं। अगर सिटी में ये हाल है तो रूरल  एरियाज की कंडीशन का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

लंबा reproductive period रखता है मायने
कम उम्र में बच्चे पैदा होना ना सिर्फ किसी महिला की जिम्मेदारियां बढ़ाता है साथ ही पॉप्यूलेशन ग्र्रोथ में भी उसका एक बड़ा रोल होता है। गाइनिकोलॉजिस्ट डॉ कारमेला कुजूर बताती हैं कि आमतौर 18 से 30 साल की उम्र महिलाओं के लिए हाई फर्टिलिटी वाला पीरियड होता है, ऐसे में अगर कम उम्र में शादी हो तो बच्चे पैदा करने का लंबा पीरियड मिलता है। इस वजह से अक्सर ऐसे लोगों के ज्यादा बच्चे होते हैं, जो पॉप्यूलेशन को इंक्रीज करने में एक बड़ा रोल अदा करता है।

Proper planning न करना है परेशानी की वजह
पॉप्यूलेशन कंट्रोल के मकसद से गवर्नमेंट द्वारा हर लेवल पर प्रयास किए जाते हैं पर अभी भी ये पूरी तरह इफेक्टिव नहीं हो पाए हैं। बात डिस्ट्रिक्ट की करें तो कॉन्ट्रासेप्टिव्स के इस्तेमाल के प्रति  लोगों में आज भी अवेयरनेस की काफी कमी है। डॉ कुजूर ने बताया कि सिटी में डिलीवरी के करीब 60 से 70 परसेंट बर्थ, अनप्लान्ड होते हैं, जिसकी वजह कॉन्ट्रासेप्टिव्स का इस्तेमाल ना किया जाना होता है। उन्होंने बताया कि फैमिली प्लानिंग को लेकर अवेयरनेस की काफी कमी है। उन्होंने इस समस्या की एक बड़ी वजह लोगों में प्रॉपर एजुकेशन का ना होना बताया।

कई factors है important
स्टेट की बढ़ती आबादी के पीछे कई फैक्टर्स का रोल है। स्टेट में टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) (चाइल्ड बोर्न पर वीमेन) कंट्री के औसत से ज्यादा है। झारखंड में टीएफआर 2.9 है, वहीं कंट्री में रेट 2.4 है। बात क्रूड बर्थ रेट और नेचुरल ग्र्रोथ रेट की करें ये आंकड़े भी स्टेट में कंट्री की तुलना में ज्यादा हैं। सिविल सर्जन डॉ जगत भूषण ने बताया कि बर्थ रेट ज्यादा होना आबादी को बढ़ाने में अहम रोल अदा करता है। फैमिली प्लानिंग के प्रति अवेयरनेस पैदा करने की काफी कोशिशें की जा रही है। इसके लिए  कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स, कंडोम, कॉपर टी के साथ-साथ पुरुष नसबंदी और महिला बंध्याकरण को बढ़ावा देने की काफी प्रयास किया जा रहा है।
नही बढ़ी सुविधाएं
पिछले दस सालों में आबादी में तो इजाफा हुआ पर इस दौरान पॉप्यूलेशन ग्र्रोथ की तुलना में इंप्लायमेंट जेनेरेशन देखने को नहीं मिलता। सेंसस 2011 के आंकड़ों के मुताबिक डिस्ट्रिक्ट की करीब 23 लाख आबादी में से 14 लाख से ज्यादा लोग नन वर्कर हैं यानी ये किसी तरह के रोजगार में नहीं लगे हैं। वहीं डिस्ट्रिक्ट में तीन लाख से ज्यादा मार्जिनल वर्कर हैं। डिस्ट्रिक्ट में टोटल वर्कर्स की संख्या आठ लाख 37 हजार है, जिसमें से 5, 29,578 लोग ही मेन वर्कर की कैटगरी में रखे गए हैं।

Uncontrolled growth का असर
बढ़ती आबादी का असर लोगों के रहन-सहन के स्तर पर भी दिख रहा है। पिछले कुछ सालों में सिटी के पॉप्यूलेशन में तो इजाफा हुआ है पर इंफ्रास्ट्रक्चर में उस रफ्तार से डेवलपमेंट नहीं दिखाई देता। सिटी के नन कंपनी एरियाज में ड्रिंकिंग वाटर, इलेक्ट्रीसिटी, साफ-सफाई जैसी बेसिक फैसिलिटीज का काफी अभाव है। कई इलाकों में इनक्रोचमेंट की समस्या भी काफी गंभीर है। रहने और बिजनेस एक्टीविटीज के लिए किए गए इंक्रोचमेंट ने सडक़ों और गलियों को तंग करने के साथ-साथ इन एरियाज में डेवलपमेंटल एक्टिविटीज पर भी रोक लगा दी है।


फैमिली प्लानिंग के प्रति लोगो में अवेयरनेस पैदा करने की कोशिशें की जा रही हैं। कॉन्ट्रासेप्टिव के इस्तेमाल और नसबंदी व बंध्याकरण के प्रति अवेयरनेस पैदा करने के लिए प्रयास हो रहे हैं।
-डॉ जगत भूषण, सिविल सर्जन, इस्ट सिंहभूम

हमारे यहां डिलीवरी करवाने वाली करीब 80 परसेंट महिलाओं की उम्र 18 से 25 साल के बीच होती है। काफी कम उम्र में महिलाएं एक से ज्यादा बच्चों की मां बन जाती हैं।
-डॉ भारती मिंज, इंचार्ज, जुगसलाई  हेल्थ सेंटर

आबादी के हिसाब से इंप्लायमेंट जेनरेशन नहीं हुआ है। पिछले दो तीन सालों में इंप्लायमेंट बढऩे की बजाय घटा ही है।
एस एन ठाकुर, प्रेसीडेंट, आदित्यपुर स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन
अनप्लान्ड बर्थ का परसेंटेज यहां काफी ज्यादा है। कम उम्र में शादी होने से लंबा रिप्रोडक्टिव पीरियड मिलने की वजह से अधिक बच्चे पैदा होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
-डॉ कारमेला कुजूर, गाइनिकोलॉजिस्ट, एमजीएम हॉस्पिटल

Report by : abhijit.pandey@inext.co.in