GORAKHPUR:

यूपी एटीएस के हत्थे चढ़े टेरर फंडिंग के आरोपी नसीम एंड संस प्राइवेट लिमिटेड के मालिक दो भाईयों सहित तीन आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद शहर के व्यापारियों में हड़कंप मच गया है। नसीम एंड संस फर्म के अगल-बगल के दुकानदारों से लेकर आरोपियों के रिश्तेदारों और उनके करीबियों को भी इस बात का शक था कि अचानक इनके पास इतने पैसे कहां से आ गए। हालांकि यूपी एटीएस (एंटी टेररिस्ट स्क्वायड) व एनआईए (नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी) आरोपियों से पूछताछ कर रही है।

एटीएस अधिकारियों के मुताबिक, अभी तो इस मामले में सिर्फ दस आरोपियों की ही गिरफ्तारियां हुई है। उम्मीद है जल्द इस रैकेट से जुड़े अन्य लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा। रविवार को भी निशानदेही पर एटीएस ने शहर भर में करीब आधा दर्जन जगहों पर छापेमारी की। बताया जा रहा है कि एटीएस के हत्थे चढ़े दोनों भाईयों की कहानी भी फिल्म 'रईस' के शाहरूख खान जैसी ही है। पैसों की हवस में यह फर्जी बैंक अकाउंटों के जरिए हवाला का कारोबार तो कर बैठे, लेकिन शायद उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी कि वह देश विरोधी काम में लिप्त हो रहे हैं।

रबर चोरी से आतंक तक का सफर

बताया जा रहा है कि इन्हें फर्जी ढंग से खुले बैंक अकाउंट में आई रकम से एक तय हिस्सा मिल जाता था। ऐसे में उन्हें सिर्फ यही लगता था कि वह देश विरोधी गतिविधि नहीं, बल्कि महज थोड़ा फ्राड कर टैक्स चोरी का अपराध कर रहे हैं। टेटर फंडिंग में लिप्त दोनों भाईयों नसीम व नईम अरशद उर्फ बॉबी की महज दस साल में आसमान छूती सफलता देख हर कोई हैरान था। 90 के दशक में शहर के तारामंडल रोड स्थित एक प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ने वाले दोनों भाई पढ़ाई के दौरान क्लास में पेंसिल-रबर चोरी करने में बदनाम थे। कक्षा 3 से 6 तक इनके साथ पढ़े इनके दोस्तों के मुताबिक उस वक्त आरोपियों के पिता नईम की रेती रोड स्थित रेडियो पार्ट की एक छोटी दुकान थी। इसके बाद 2002 में माया बाजार स्थित आनंद कॉम्प्लेक्स में बड़े भाई नईम ने एक दुकान ली और वहां इलेक्ट्रानिक पार्ट्स की दुकान खोली। बाद में चूंकि यह कटरा मोबाइल मार्केट की ओर बढ़ने लगा, ऐसे में नईम ने भी मोबाइल एसोसरिज का काम शुरू कर दिया। तब तक इनकी स्थिति बेहद सामान्य थी।

मोबाइल पार्ट्स से बन गए होलसेल कारोबारी

दोनों आरोपियों से जुड़े करीबियों के मुताबिक, 2008-2009 में दोनों ने मिलकर गोलघर स्थित बलेदव प्लाजा में नईम एंड संस नाम से दुकान खोली। शुरुआती दौर में तो यहां भी सिर्फ मोबाइल का ही काम शुरू किया, लेकिन बाद में मोबाइल हैंडसेट के होलसेल कारोबार में दिन ब दिन दोनों भाई शहर के सबसे बड़े व्यापारी के रूप में उभर आए। करीब तीन साल पहले रेती रोड स्थित सुपर मार्केट में बड़े भाई नईम ने छह दुकानों का एक बड़ा शोरूम खोला। जहां वेस्टर्न एलईडी टीवी व मोबाइल हैंडसेट का होलसेल काम शुरू हुआ। और दोनों फिर अलग काम करने लगे। नईम जहां सुपर मार्केट की दुकान संभालता था, वहीं नईम अरशद उर्फ बॉबी बलदेव प्लाजा की दुकान बढ़ा रहा था। जबकि, आनंद कटरा वाली दुकान अब स्टॉफ के भरोसे चलती है।

दिल्ली में बैठा भाई देता है सप्लाई

इतना ही नहीं दोनों आरोपियों का छोटा भाई असद व पिता नईम भी दिल्ली में रहकर होलसेल मोबाइल का कारोबार करते हैं। बताया जा रहा है कि छोटा भाई असद कुछ दिनों तक थाईलैंड में रहा। वहीं से उनके मोबाइल कंपनियों से संपर्क कर सीधा कंपनी से माल लेना शुरू कर दिया और फिर दिल्ली में बैठ वह अपने दोनों बड़े भाईयों को हैंडसेट की सप्लाई देता था। एटीएस तीसरे भाई असद और परिवार के अन्य सदस्यों की भी जांच कर रही है।

और खरीदते चले गए प्रापर्टी

आरोपियों का तिवारीपुर इलाके के सूर्यविहार में अपना मकान है। आज भी इनका पूरा परिवार वहीं रहता है। लेकिन अचानक आए बेशुमार दौलत से इन्होंने शहर भर में प्रापर्टी खरीदनी शुरू कर दी। गांधी गली स्थित एक अपार्टमेंट से लेकर हरिओम नगर में भी इन्होंने अपना आलिशान मकान खरीद लिया। इतना ही नहीं अभी करीब तीन महीने पहले बलदेव प्लाजा के पास स्थित एक टॉयर शॉप के बगल में तीन करोड़ रुपए की दुकान खरीदी थी। दुकान के मेंटिनेंस का काम चल रहा था। बताया जा रहा है कि जल्द नए शोरूम में भी मोबाइल हैंडसेट के होलसेल का काम शुरू होना था।

दौलत ने बदल दिया मिजाज

आरोपियों के पास आई बेशुमार दौलत के बाद से ही इनका मिजाज पूरी तरह से बदलने लगा। महंगी गाडि़यों से लेकर विदेश घूमना शौक था। अपने फेसबुक अकाउंट पर तीनों भाईयों ने महंगी गाडि़यों व विदेश में मौज-मस्ती करते हुए जमकर पोस्ट कर रखी है। तीनों दुकानों के आसपास के व्यापारियों के मुताबिक दौलत की घमंड में दोनों अपने किसी पड़ोसी से बातचीत नहीं करते थे। इतना ही नहीं आरोपियों के चाचा की रेती रोड स्थित साइकिल की दुकान है। बताया जा रहा है कि इनका चाचा से भी अच्छा संबंध नहीं था।

कटिंग मोबाइल के बादशाह हैं दाेनों भाई

दोनों के सहारे सिर्फ बलदेव प्लाजा ही नहीं, बल्कि आसपास के जिलों में कटिंग हैंडसेट का कारोबार चल रहा था। दोनों कटिंग के हैंडसेट के बादशाह कहे जाते थे। यानी बिना डिस्ट्रीब्यूटर का मॉल। जानकारों के मुताबिक, कटिंग के माल की फर्जी बिल काटकर उसे बेचा जाता है। हालांकि यह मोबाइल हैंडसेट भी पूरी तरह नया और ब्रांडेड होता है, लेकिन सर्विस के दौरान इसमें दिक्कत आती है। जानकार बताते हैं कि डिस्ट्रीब्यूटर व कटिंग के हैंडसेट के रेट में काफी फर्क होता है।