- नब्बे के दशक के तमाम चर्चित चेहरे चुनाव मैदान में, विधायक बनने को बेताब

- पर्दे के पीछे से भी कई नेता चुनाव का हिस्सा बने, पार्टी संगठन ने सौंपी जिम्मेदारी

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LUCKNOW: यूपी विधानसभा चुनाव में इस बार लखनऊ यूनिवर्सिटी के तमाम पुराने छात्र अपना जलवा बिखेर रहे हैं। नब्बे के दशक में छात्रसंघ की राजनीति करने वाले तमाम चेहरे भी चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं एलयू में नब्बे के दशक पर नजर डाले तो दौर हिंसक राजनीति का था। बम और गोलियों की गूंज के बीच चुनाव होते थे और इसी वजह से लंबे समय से एलयू में छात्रसंघ चुनावों पर रोक भी लगी रही। उस दौरान छात्रसंघ के पदाधिकारी बने तमाम चेहरे अब विधानसभा चुनाव में जोर-आजमाइश कर रहे हैं। कुछ तो ऐसे भी हैं जिन्होंने कभी एक-दूसरे को जिताने में मदद की थी, लेकिन वक्त बदलने के साथ वे अलग-अलग दलों में चले गये और अब एक-दूसरे को हराने की रणनीति बनाने में जुटे हैं। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो कभी गहरे दोस्त थे लेकिन अब एक-दूसरे के सियासी दुश्मन बन चुके है।

कोई सीधे मुकाबले में तो कोई प्रचार में जुटा

वहीं तमाम चेहरे ऐसे भी हैं जो पर्दे के पीछे से चुनाव में अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं। इनमें सबसे ऊपर नाम सीएम अखिलेश यादव की पत्‍‌नी डिंपल यादव का है जो सपा के चुनाव प्रचार की कमान संभाले हैं। इसके अलावा आनंद भदौरिया, राजपाल कश्यप, राम सिंह राणा, सुनील सिंह साजन, अभिषेक सिंह आशू जैसे तमाम पूर्व छात्रनेता अब सपा की कमान संभाले हैं। यही नहीं लविवि छात्र संघ के अध्यक्ष रहे अरविंद सिंह पहले सपा से राज्यसभा सांसद थे अब फिलहाल पार्टी के एमएलसी हैं। अरविंद सिंह भी नई सपा की कोर टीम में शुमार हैं। वहीं भाजपा में भी डॉ। दिनेश शर्मा, संतोष सिंह, बजरंगी सिंह बज्जू, शिवभूषण सिंह, तरुणकांत त्रिपाठी पार्टी का झंडा बुलंद करने में जुटे हैं। भाजपा से बर्खास्त दयाशंकर सिंह अपनी पत्नी स्वाति सिंह को चुनाव लड़वा कर अपनी सियासी जमीन फिर से तैयार कर रहे हैं। पूर्व छात्रनेता धीरेंद्र बहादुर रायबरेली की सरेनी सीट से भाजपा प्रत्याशी हैं तो वहीं हरदोई की मल्लावां सीट से एबीवीपी के आशीष सिंह आशू को टिकट दिया गया है। आशू 1995 में एलयू के छात्रसंघ के महामंत्री रह चुके हैं। वहीं कांग्रेस से एलयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष रमेश श्रीवास्तव और महामंत्री संजय सिंह कांग्रेस के चुनाव प्रचार में जुटे हैं। संजय सरोजनीनगर से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन गठबंधन के बाद यह सीट सपा के अनुराग यादव को दे दी गयी। वहीं एलयू के पूर्व छात्र मनोज वर्मा बसपा के टिकट पर अंबेडकरनगर के टांडा से चुनाव मैदान में हैं।

कभी गहरे दोस्त, अब सियासी दुश्मन

एलयू में नब्बे के दशक के दौरान अरुण उपाध्याय, अभय सिंह और धनंजय सिंह की दोस्ती के चर्चे आम थे। अरुण उपाध्याय ने चुनाव लड़ने की ठानी तो उनको जिताने का जिम्मा अभय सिंह और धनंजय सिंह ने अपने हाथों में ले लिया। यह दौर छात्रसंघ की राजनीति के लिए सबसे बुरा रहा और तमाम हिंसक वारदातों की वजह से चुनावों पर रोक लगा दी गयी। वक्त बदला और तीनों के रिश्तों के बीच खटास आ गयी। धनंजय सिंह ने मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश किया और सांसद बनने में कामयाब रहे। वही उनके जानी दुश्मन बन चुके अभय को निराशा हाथ लगी। पिछले चुनाव में अभय सपा के टिकट पर विधायक बनने में कामयाब हुए। इस बार तीनों पुराने दोस्त चुनाव मैदान में हैं। अभय सिंह सपा के टिकट पर फैजाबाद के गोसाईगंज से चुनाव लड़ रहे हैं तो धनंजय ने निषाद पार्टी के टिकट पर मल्हनी से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। इसी तरह अरुण उपाध्याय भी चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।

उत्तराखंड में भी दिखा रहे दम

इतना ही नहीं, उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भी एलयू से राजनीति का ककहरा सीखने वाले अपना दम दिखा रहे हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत भी एलयू के छात्र रहे हैं। इस बार उनका मुकाबला अपने ही जूनियर से है। एलयू के पूर्व छात्रनेता राजेश प्रताप सिंह उन्हें चुनौती दे रहे हैं। राजेश को बहुजन समाज पार्टी ने टिकट दिया है। इसी तरह पुष्कर सिंह 'धामी' भी भाजपा के टिकट पर खटीमा से चुनाव लड़ रहे हैं। पुष्कर ने 1997 में एलयू में अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की कवायद भी की थी। वे एबीवीपी के प्रदेश मंत्री भी रह चुके हैं। इसी तरह एलयू के पूर्व छात्र मनोज जोशी काशीपुर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं।

कुछ चर्चित चेहरों पर नजर

ब्रजेश पाठक- 1990 में एलयू के छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। इस दौर में एलयू के छात्रसंघ का बोलबाला था और तमाम दल चुनाव में खासी दिलचस्पी दिखाते थे। बाद में मुख्यधारा की राजनीति में आए और बसपा ज्वाइन की। 2004 में उन्नाव से लोकसभा का चुनाव जीते। बाद में 2009 में चुनाव हारने के बाद बसपा ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। बसपा में लंबी पारी खेलने के बाद अचानक पाला बदलते हुए भाजपा में आ गये। भाजपा के टिकट पर लखनऊ मध्य से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं।

शैलेश सिंह 'शैलू'- नब्बे के दशक में ही एलयू में औसत कद-काठी के छात्र शैलेश सिंह 'शैलू' ने छात्र राजनीति में कदम रखा और महामंत्री से लेकर अध्यक्ष तक का चुनाव जीता। छात्रसंघ के महत्व को समझते हुए पहली और आखिरी बार यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष को कांशीराम और मायावती ने आकर शपथ ग्रहण कराई। शैलू ने इसके बाद बसपा ज्वाइन की लेकिन एक साल बाद भाजपा में चले गये। 2012 में बलरामपुर के गैसड़ी से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन हार गये। एक बार फिर इसी सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।

अरविंद सिंह गोप- एलयू के छात्रसंघ से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले अरविंद सिंह गोप सर्वाधिक चर्चित चेहरों में से हैं। यूनिवर्सिटी में हिंसक राजनीति के दौर में अध्यक्ष बने गोप ने सपा में आकर मुख्यधारा की राजनीति में कदम रखा और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीबी बन गये। परिवार की रार में उनका टिकट कटा तो सियासी कद बढ़ गया। अखिलेश ने सपा के संस्थापकों में शुमार बेनी प्रसाद वर्मा के पुत्र राकेश वर्मा का टिकट काट कर गोप को बाराबंकी के रामनगर से प्रत्याशी बनाया है।

रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया- एलयू से पढ़े रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया ने छात्रसंघ की राजनीति तो नहीं की, लेकिन बाद में मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हो गये। फिलहाल सपा सरकार में काबीना मंत्री हैं लेकिन भाजपा से भी गहरे रिश्ते कायम रखे हुए है। बसपा सरकार में पोटा लगा और जेल जाना पड़ा। इसके बाद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत गये। मुलायम के करीबी होने की वजह से काबीना मंत्री भी बने लेकिन कुंडा कांड के बाद इस्तीफा देना पड़ा। सीबीआई से क्लीन चिट मिलने पर दोबारा मंत्री पद मिला। फिर कुंडा से चुनाव लड़ने जा रहे हैं।

स्वाति सिंह- भाजपा के पूर्व नेता दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह सरोजनीनगर से चुनाव मैदान में हैं। उन्होंने एलयू से एलएमएम की डिग्री हासिल की है। दयाशंकर कांड के बाद मायावती समेत प्रमुख बसपा नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोलने के इनाम के तौर पर उन्हें भाजपा महिला मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। कभी सियासत की एबीसीडी नहीं जानने वाली स्वाति आज भाजपा के फायरब्रांड नेताओं में शुमार हो चुकी हैं। चुनाव लड़ाकर भाजपा राजनीति में उन्हें और परिपक्व करने की जुगत में है ताकि सही वक्त पर उनका सही जगह इस्तेमाल किया जा सके।