- सिंबल की लड़ाई में अखिलेश की जीत के साथ पार्टी में नये युग की शुरुआत

- अब युवा बिग्रेड रहेगी पार्टी पर हावी, रामगोपाल बनेंगे सबके सिरमौर

- कांग्रेस से गठबंधन से मजबूत होगी सपा, भाजपा को भी मिलेगी राहत

ashok.mishra@inext.co.in

LUCKNOW: पुरानी कहावत है कि राजनीति निष्ठुर होती है। पच्चीस साल पहले चार अक्टूबर, 1992 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में समाजवादी पार्टी की स्थापना के दौरान मुलायम सिंह यादव को निर्विवाद रूप से पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था, तब किसी को भी अंदाजा नहीं था कि जब पार्टी युवावस्था में आएगी तो उसका नेतृत्व भी युवा ही करेगा। बीते 25 सालों में सपा में तमाम बड़े नेता आए और गये लेकिन मुलायम को कोई सीधे चुनौती नहीं दे सका। वर्ष 2012 में पार्टी को पहली बार बहुमत मिला तो सरकार की कमान अखिलेश यादव को सौंपी गयी। सरकार में रहने के दौरान पार्टी ने अपना 25वां स्थापना दिवस मनाया, तभी साफ हो गया कि सपा का 'मुलायम युग' खत्म हो गया है और पार्टी का नेतृत्व अब युवा अखिलेश यादव करेंगे।

सपा में कई नेताओं का नुकसान

केवल मुलायम ही नहीं, इस लड़ाई में अपना राजनैतिक कॅरिअर दांव पर लगाने वाले कई नेताओं के भी मुश्किल दिनों की शुरुआत हो चुकी है। मुलायम हो या अखिलेश, सपा सरकार में मिनी मुख्यमंत्री माने जाने वाले शिवपाल सिंह यादव का राजनीतिक भविष्य अब खतरे में पड़ गया है। मरते दम तक मुलायम का साथ देने का दावा करने वाले शिवपाल का सियासी रसूख इतिहास बनने की कगार पर आ गया है, साथ ही उनके पुत्र आदित्य यादव को भी अब पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए कड़े राजनीतिक संघर्ष का सामना करने की नौबत आ गयी है। इस दौरान मुलायम का साथ देने वाले पार्टी के कई अन्य बड़े नेताओं जैसे अमर सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा, ओमप्रकाश सिंह, नारद राय, शादाब फातिमा, आशू मलिक आदि को भी कोई दूसरा ठिकाना तलाशना होगा। सोमवार को पार्टी सिंबल को लेकर आए फैसले के बाद सबकी निगाहें काबीना मंत्री मोहम्मद आजम खान पर भी टिकी हैं। अब देखना यह है कि आजम इस बाबत क्या रुख अपनाते हैं।

युवा बिग्रेड का रहेगा जलवा

पिछले छह महीनों से पार्टी में चल रही रार के दौरान अखिलेश का पुरजोर समर्थन करने वाली युवा बिग्रेड का पार्टी में जलवा रहेगा। पार्टी का 'थिंक टैंक' माने जाने वाले प्रोफेसर रामगोपाल यादव अब मुलायम की जगह लेंगे तो सुनील सिंह साजन, आनंद भदौरिया, पवन पांडेय, उदयवीर सिंह, राजेश यादव, संजय लाठर, दिग्विजय सिंह देव, मनीष यादव, मोहम्मद एबाद जैसे युवा नेता संगठन पर अपना कब्जा करने के साथ पार्टी को नई ताकत देंगे। साइकिल पर सवार अखिलेश पूरे जोश के साथ प्रत्याशियों की सूची और घोषणा पत्र जल्द ही जारी कर सकते हैं। इस फैसले से मिली ऊर्जा का इस्तेमाल वह अपने 19 जनवरी से शुरू होने वाले चुनावी दौरों में करेंगे जिसका नेतृत्व युवा बिग्रेड के हाथों में होगा।

भाजपा को मिलेगी कुछ राहत

सिंबल पर कब्जे के साथ यह चर्चा भी तेज हो गयी कि सपा अब जल्द ही कांग्रेस के साथ गठबंधन का औपचारिक ऐलान करेगी। इसके लिए अखिलेश जल्द ही दिल्ली भी जा सकते हैं। इस गठबंधन से भारतीय जनता पार्टी को कुछ राहत मिल सकती है जो अभी तक सपा की रार से मुस्लिम वोट बैंक के बसपा की ओर जाने की आशंका से भयभीत दिख रही थी। सपा में अखिलेश के मजबूत होने और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से मुस्लिम वोट बैंक को काफी हद तक थामा जा सकता है। इससे बसपा लड़ाई पर असर पड़ सकता है, ऐसे में सीधा मुकाबला सपा और भाजपा के बीच होने की उम्मीद है।

अब क्या करेंगे मुलायम

राजनीति के साथ पहलवानी के दांव-पेंच के माहिर मुलायम का सब छिनने के बाद अगला कदम क्या होगा, इस पर सबकी निगाहें टिक गयी है। मुलायम को करीब से जानने वालों की माने तो वे कभी हार नहीं मानते हैं। मुलायम चुनाव आयोग के इस फैसले के खिलाफ अब अदालत की शरण ले सकते हैं जिससे लड़ाई कुछ आगे खिंच सकती है। वहीं कुछ का मानना है कि अभी भी सुलह के तमाम रास्ते अभी खुले हैं। सिंबल को लेकर आए फैसले के बाद अखिलेश का मुलायम के घर पर जाकर मुलाकात करना इसका संकेत है। इस दौरान शिवपाल सिंह यादव भी वहां पहुंचे लेकिन थोडी देर रुक कर वापस चले गये।