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इन दिनों चौराहों पर चाय की चुस्कियों के साथ चुनावी चर्चा खूब चल रही है। चाय की दुकानों पर चल रही इन चर्चाओं में अपरिचित भी साधिकार हस्तक्षेप कर रहे हैं। जन की बात-चाय पर चर्चा की अगली कड़ी में टीम आई नेक्स्ट गोरखपुर शहर विधान सभा क्षेत्र के मेडिकल कॉलेज चौराहे पर पहुंची। दोपहर के करीब एक बजे का वक्त है। अशोक चौरसिया की दुकान पर लोग जुटे हैं। पढि़ए क्या-क्या बातें और किस अंदाज में हो रही हैं

आई नेक्स्ट रिपोर्टर: अरे भाई आप लोग किसको जितवा रहे हैं। लग रहा है इस बार शहर में कुछ बड़ा बदलाव आने वाला है। पिछली सरकार ने मेडिकल कॉलेज के लिए बहुत काम किया है।

सुरेंद्र प्रसाद: (तंज कसते हुए) लीजिए, एक नए विद्वान आ गए। अपना समीकरण लेकर, बता रहे हैं कि पिछली सरकार ने मेडिकल कॉलेज के लिए बड़ा काम किया है। जब इन लोगों को कुछ नहीं मालूम तो बेवजह की बात क्यों शुरू कर देते हैं?

नरेंद्र तिवारी: (सुरेंद्र की बात बीच में काटते हुए) क्या गलत समीकरण है? प्रदेश सरकार ने काम नहीं किया है। अस्पतालों में सुविधा मिल रही है। एक कॉल पर एंबुलेंस आती है। पुलिस को बुलाइए तो वह भी पांच-10 मिनट में आ जाती है।

शिवपूजन : (व्यंग कसते हुए) हांक्या सुविधा मिली है सरकार सेजाइए मेडिकलवा में, दिन भर चप्पल घिसने पर एक टिकिया नहीं मिलती है। सबपता नहीं क्या करते हैं दवाइयों का?

गुलाम निषाद : (शिवपूजन की ओर मुखातिब होते हुए) छोड़ा यार, ई सब सरकार अइसहीं काम करती है। वहां से योजना चलती है लेकिन यहां तक पहुंचती नहीं। तो किसी को कैसे मदद मिल पाएगी? जिनका जुगाड़ है उनके लिए सब अधिकारी हैं। जिनके पास कोई जुगाड़ नहीं उनके लिए कुछ नहीं।

सोती लाल : (गुलाम की बात सुनकर बीच में लपकते हुए) सही बात है। जुगाड़ न रहे तो कोई काम नहीं हो पाएगा। नेता लोग वोट मांगते समय बहुत आश्वासन दे देते हैं। लेकिन सुविधा देने की बारी आती है तो अपने रिश्तेदारों, चेलों को दे देते हैं। राशन कार्ड बनवाने में हालत खराब हो जाएगी। आप सरकारी सुविधा मिलने की बात कर रहे हैं।

धर्मेद्र चौहान: (सोती के पक्ष में) ऐसा तो होता ही है। हम लोगों को कौन पूछता है। आम आदमी की समस्या के बारे में किसे चिंता रहती है। जो जीतता है वह सिर्फ अपने लिए काम करता है। हम लोग तो सालों से मेडिकल कालेज को देख रहे हैं। जितनी घोषणाएं होती हैं, उतना पैसा मिल जाए और काम हो जाए तो कोई मरीज प्राइवेट में नहीं जाएगा।

सुरेंद्र कुमार: फिर फालतू बात शुरू कर दिए। सुविधा नहीं मिल रही है? सबको दवाईयां मिल जाती हैं। नया-नया वार्ड बन रहा है। अरे, एक दिन में थोड़े कुछ काम हो जाता है।

रामयश: (सबकी बातों को सुनकर थोड़े गुस्से में) जिसका बना है भाई साहब, उसको सब पूछते हैं। कोई बता दे क्या मिल रहा है। मेरी बीवी बीमार थी। आपरेशन कराने गया तो फ्री में हो जाना चाहिए था। लेकिन नहीं, डॉक्टरों ने बाहर की दवा लिख दी। सात-आठ हजार रुपए की दवा खरीदकर ले गया। कर्जा लेना पड़ा था। अब आप लोग बताइए, किसको वोट दें। किसकी सरकार बनाएं। हम तो किसी को नहीं वोट देंगे। हम क्या करेंगे सरकार जब कोई हमारे काम नहीं आ रहा।

नरेंद्र कुमार : (रामयश को चुप कराते हुए) अरे मान लीजिए एक आदमी के साथ ऐसा हो गया। सबके साथ थोड़े होता है। सिर्फ मेडिकल कालेज ही एक मुद्दा नहीं है। अन्य समस्याओं पर भी नेता, मंत्री, विधायक काम कर रहे हैं।

धर्मेद्र चौहान: देखिए भाई, हमको जिस चीज की जरूरत पड़ेगी। हम उसी की बात करेंगे। हम दवा लेने आए तो हमको दवा नहीं मिली तो हम किसकी बात करेंगे। कैसा भी जनप्रतिनिधि हो, सड़क तो सरकार बनवा ही देगी। बिजली भी आ जाएगी। लेकिन अन्य बुनियादी सुविधाओं की जिनकी जरूरत है। वह दिलवाने वाला ही चुना जाना चाहिए। लेकिन सबके के सब अपने फायदे में पड़े हैं।

टी-प्वॉइंट

जनता के लिए लड़-झगड़कर सुविधाएं दिलाने वाले नेता की जरूरत है। हर पांच साल में सरकार बदल जाती है। मैं 17 साल से दुकान चला रहा हूं। मेरी दुकान पर नेता, मेडिकल स्टूडेंट्स, आसपास गांव के लोग सभी जुटते हैं। हर कोई अपनी पसंद के प्रत्याशी को जिताने की बात करता है। नेता वही चुना जाए, उसी पार्टी की सरकार बने जो सार्वजनिक मुद्दों पर लोगों के साथ खुलकर खड़ा रह सके। विकास की बात करने के बजाय उसे करके दिखाए।

-अशोक चौरसिया, चाय के दुकानदार