- अपने पिता की मेहनत और काम की बदौलत ताल ठोंकने की तैयारी में कैंडिडेट्स

- जिले की नौ विधानसभा सीट्स पर छह कैंडिडेट्स हैं चुनाव मैदान में

- इसमें पूर्व सीएम के बेटे भी पिछले कई इलेक्शन से लगा रहे हैं जोर

GORAKHPUR: किसी राजनेता की पहचान उसके विकास कार्यो, उसके इनवॉल्वमेंट और जनता के साथ बिहेवियर से ही होती है। जमीनी नेता इसे बाखूबी समझते हैं, जिनकी वजह से आज भी उनका नाम सियासत के गलियारों में इज्जत से लिया जाता है। मगर वक्त बीतने के साथ ही अब उनके नाम और उनकी पहचान की जरूरत पार्टी से लेकर उनके परिवार वालों की राजनीति को चमकाने के लिए की जा रही है। इसका फायदा किस हद तक होगा और जनता उन्हें कितना एक्सेप्ट करेगी, यह तो आने वाली 11 तारीख ही बताएगी, लेकिन फिलहाल अपने परिवार के राजनैतिक कॅरियर और सियासी पहुंच के बलबूते जिले के छह कैंडिडेट्स इस चुनावी समर में अपनी किस्मत आजमाने के लिए कूद पड़े हैं। इनमें पूर्व मंत्रियों के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री के साहबजादे भी शामिल हैं।

छह विधानसभा से छह उम्मीदवार

गोरखपुर जिले में नौ विधानसभा की सीट्स हैं। इसमें से छह सीट्स पर इस बार पूर्व कद्दावरों के वारिस किस्मत आजमाने के लिए मैदान में हैं। इसमें पूर्व कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी ने जहां पिता की ही सीट से ताल ठोंकी है, वहीं पूर्व मंत्री जमुना निषाद के बेटे भी पिता की सीट पर ही पहली बार किस्मत आजमा रहे हैं। वहीं कैंपियरगंज सीट से चुनावी समर में किस्मत आजमाने उतरे फतेह बहादुर सिंह पूर्व सीएम वीर बहादुर सिंह के साहबजादे हैं। सहजनवां से यशपाल रावत, बांसगांव से विमलेश पासवान और गोरखपुर ग्रामीण से चुनाव में उतरे विपिन सिंह को भी सियासत विरासत में मिली है और यह सभी पापा के नाम और अपनी पहचान के बल पर दम भरने का तैयार हैं।

कैंडिडेट्स एक नजर

फतेह बहादुर सिंह- कैम्पियरगंज विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी कैंडिडेट है। एक बार प्रदेश की कैबिनेट में मिनिस्टर रह चुके फतेह बहादुर की पहचान आज भी उनके पिता और प्रदेश के 14वें सीएम वीर बहादुर सिंह के नाम से ही की जाती है।

यशपाल रावत - सहजनवां से समाजवादी पार्टी के टिकट पर मैदान में कूदे यशपाल रावत पहले इसी सीट से विधायक रह चुके हैं। इनके पिता शारदा रावत भी विधानसभा सदस्य थे। शारदा मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी माने जाते थे, जिसकी वजह से उन्हें कैबिनेट में जगह मिली थी।

अमरेंद्र निषाद - पिपराइच विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी से ही ताल ठोंक रहे अमरेंद्र निषाद भी अपने पिता जमुना प्रसाद की छवि को भुनाने के लिए चुनावी समर में हैं। इससे पहले इनकी मां, जो वर्तमान विधायक भी है, जमुना निषाद के नाम पर ही विधायक बनी थीं। राजनीति में बेहतर रसूख रखने वाले जमुना कई बार विधायक रहे हैं।

विनय शंकर तिवारी - चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र से बसपा टिकट से मैदान में कूदे विनय शंकर तिवारी के पिता हरिशंकर तिवारी भी पहचान के मोहताज नहीं हैं। चिल्लूपार सीट से करीब छह बार विधानसभा पहुंच चुके हरिशंकर तिवारी प्रदेश की कई सरकारों में मंत्री रह चुके हैं। इस बार उन्होंने अपनी परंपरागत सीट से बेटे को मैदान में उतारा है।

विमलेश पासवान - बांसगांव सुरक्षित सीट से बीजेपी टिकट पर पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरे विमलेश पासवान भी राजनीतिक घराने से ताल्लुख रखते हैं। जिले के कद्दावर जनप्रतिनिधियों में शुमार उनके पिता ओमप्रकाश पासवान पहले निर्दल फिर ¨हदू महासभा के टिकट पर विधायक बने। इनकी मौत के बाद पत्‍‌नी सुभावती पासवान बांसगांव से सांसद चुनी गई। विमलेश के भाई कमलेश पासवान भी लगातार दो बार से बांसगांव सीट से ही सांसद हैं।

विपिन सिंह - गोरखपुर ग्रामीण सीट से बीजेपी के टिकट पर विपिन सिंह चुनावी मैदान में हैं। विपिन सिंह के पिता अंबिका सिंह भी निर्दल और सपा के टिकट पर विधायक रह चुके हैं। अंबिका सिंह के राजनीति से संयास लेने के बाद उनके बेटे अब मैदान में उतरे हैं।