गली-नुक्कड़ की दुकानें भी बंद होने से हुई अधिक परेशानी

जो सुबह खुली थीं उन्हें भी पुलिस वालों ने करा दिया बंद

चाय और नाश्ते तक को तरस गए हॉस्टल, लॉज में रहने वाले

ALLAHABAD: थर्सडे को इलाहाबाद में विधानसभा चुनाव के चलते पब्लिक को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा। पुलिस और प्रशासन की सख्ती के कारण गली, नुक्कड़ और रोड तक दुकानें बंद रहीं। इससे लोगों को रोजमर्रा की खाने पीने की चीजों के लिये परेशान होना पड़ा। सबसे ज्यादा परेशानी हॉस्टल, लॉज और डेलीगेसी में रहने वाले छात्र-छात्राओं को फेस करनी पड़ी।

इन इलाकों में रही crisis

चांदपुर सलोरी, छोटा बघाड़ा, विश्वविद्यालय मार्ग, प्रयाग स्टेशन, बख्शी बांध, दारागंज, कीडगंज इत्यादि ऐसे इलाके रहे, जहां देर शाम तक दुकाने बंद रहीं। इससे लड़कों को खाने पीने की चीजों के लिये परेशान होना पड़ा। लड़कों को सबसे ज्यादा कोफ्त इस बात को लेकर रही कि दिन में इक्का दुक्का जहां चाय पान की दुकाने खुली भी थीं तो पुलिस ने उन्हें बंद करा दिया। कुछ ऐसा ही हाल सिटी के ग‌र्ल्स हास्टल में रहने वाली लड़कियों का भी रहा।

हास्टल में रहने वालों को तो हर रोज खाने पीने की जरूरत के लिये बाजार जाना पड़ता है। पूरे दिन बाहर तो कुछ नहीं मिला जो कमरे में रखा था। उसी से खा पीकर काम चलाया गया।

परीक्षित कृष्ण शर्मा

कभी कभी तो हालात बड़े ही गजब हो जाते हैं। पहले से जुगाड़ करके न चलो तो खाने के ही लाले पड़ जाये। हमने तो पहले से ही आज के लिये व्यवस्था कर ली थी।

आकाश पांडेय

ग‌र्ल्स के लिये तो चुनाव का समय खासा मुश्किल हो जाता है। वेडनसडे शाम से बाजार में क्राइसिस हो गई थी। ऐसे में कुछ मुश्किल का सामना जरूर करना पड़ा। लेकिन चुनाव की बात है तो एक दिन के लिये एडजस्ट किया जा सकता था।

अन्नू सिंह

छात्राओं के लिये ऐसे समय पर बाहर निकल पाना और भी मुश्किल हो जाता है। चुनाव के समय तो एक जनरल स्टोर भी नहीं खुला रहता। ब्वायज तो जैसे तैसे काम चला भी लेते हैं पर हमें दिक्कत होती है।

श्वेता पांडेय

छात्र बाहुल्य इलाकों में वैसे तो कोई दिक्कत नहीं होती। लेकिन जब चुनावी सीजन होता है तो दुकानदार सबसे पहले इन्हीं एरियाज की दुकान बंद करते हैं। ऐसे में प्रॉब्लम तो होती ही है।

ज्ञान प्रकाश पटेल

रोजमर्रा की जरूरतों के लिये लोगों को परेशान होना पड़ता है। जिनका घर है। उनके लिये तो कोई दिक्कत नहीं है पर जो हास्टल, डेलीगेसी या लॉज में रहते हैं। उनके लिये नहीं सोचा जाता।

रवि राजभर