नेता जी अग्रज बने रहें, टांग फंसाने की कोशिश न करें

अब पार्टी नहीं चेहरे पर फोकस कर रही है प्रदेश की जनता

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ALLAHABAD: मार्निग मीटिंग के बाद चाय चर्चा की तलाश में निकला। सिविल लाइंस के कई इलाकों से गुजरा, लेकिन धूप अच्छी होने के कारण किसी दुकान पर बैठकी नहीं दिखी। टहलते हुए पत्थर गिरजाघर पहुंचा तो एक चाय दुकान की बेंच भरी नजर आई, लेकिन चर्चा गायब थी, तब सोचा थोड़ी एफर्ट खुद ही कर लेते हैं, बस काले कोट में बैठे एक सज्जन की ओर देखते हुए उछाल दिया जुमला, फिर जो भी सामने आया, उसमें आप भी शामिल हों

आईनेक्स्ट रिपोर्टर: और वकील साहब कैसे हैं। इस बार किसकी सरकार बना रहे हैं। भाजपा भी पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के दावे कर रही है।

अधिवक्ता हरिश्चंद्र चौरसिया: (हंसते हुए) ई लेव, आई गएन एक और विद्वान। भाजपा से जुड़े हो का भाई (तंज कसते हुए)। हम लोगन पार्टी वाले नाही। बस अइसन सरकार चाही, जौउन काम करै, और एमै अखिलेश बेहतर है।

उत्पल निषाद: (अधिवक्ता का समर्थन करते हुए) सही बात, 100 नंबर इ सरकार कौ जिताई। पुलिस खूब एक्टिव है।

डबबू जजेज: (बीच में टोकते हुए) हम दूसरी पार्टी के हैं, लेकिन फिर भी अखिलेश को पसंद करते हैं।

अनिल पासी: बात तो सही कह रहे हो, इलाहाबाद में कौन विधायक, कैसा था? क्या था ये सब को पता है। कोई काम नहीं किया।

डब्बू जजेज: (दमदारी से समीकरण बताते हुए) ए अनिल, अब शहर पश्चिमी ही देख लेव, तीन बार से एकै जने का जलवा। विकास क पता नाही।

मो। फारूक: (भाजपा की हार का कारण बताते हुए) नोटबंदी में मोदी जी ने सबको पैदल कर दिया। धंधा चौपट हो गया.बेचारे सिबू भाई तो कहीं के नहीं रहे, दो गाड़ी चलत रहिन, अब एकौ नाहीं चलत। तेल डलवावै को पइसै नहीं है।

मो। फारूक: (इसी बीच गुलाम भाई की इंट्री होती है) आओ गुलाम भाई, आओ, मोदी जी पर कुछ बोलो।

गुलाम भाई: हम का बताई, यूपी में अखिलेश के अलावा कोई कुछ नाहीं।

अनिल पासी: (गुलाम भाई की बात काटते हुए) सुनो, देख लेना अबकी अखिलेश पूर्ण बहुमत अइहैं।

उत्पल निषाद: ए बाबा तनी हमरौ सुनो। अखिलेश क सरकार बनी डिम्पल भी मैदान में अइहैं।

मो। निषाद: सही कह रहे हो। अबकी दोनों के कोई रोक ना पाई। शिवपाल जहां चाहें जाएं।

हरिश्चंद्र चौरसिया: मुलायम सिंह नेताजी हैं, नेता बने रहें, लडि़का के काम करै दें, टांग ना फंसावै।

नरेंद्र कुशवाहा: देखैव हमार यही कहना है कि अब अखिलेश को आगे करैव।

अनिल पासी: इलाहाबाद में हर गली और मोहल्ले में अखिलेश छाए हैं। मुख्यमंत्री ने पूरा सिविल लाइंस चमका दिया, कंपनी बाग चमका दिया, हाथी पार्क चमका दिया।

गुलाम भाई: अरे पूरे प्रदेश की बात करो यार। इलाहाबाद में उसे काम नहीं करने दिया गया। चाचै उंगली कर रहा था। ढाई साल में काम दिखा दिया।

उत्पल निषाद: आएगी यार पूर्ण बहुमत में यार सपा फिर से।

मो। फारूक: काहे मायावती बढि़यां नाहीं हैं। मायावती का का जरूरत है यार। उनका उमर 60-65 साल होई गवा। ओनका आगे-पीछे कोई है नहीं।

अब अखिलेश को आगे करैव। ऊ झूठ नहीं बोलता है। सच बोलता है। पढ़ा लिखा है। मुलायम सिंह अब ई करै कि कोई कुछ कहे तो सीधे मुख्यमंत्री के पास भेज देवैं।

नरेंद्र कुशवाहा

हमारे इलाहाबाद में इस बार पांच साल में ढाई साल अखिलेश को जबर्दस्ती छेड़ा गया। काम नहीं करने दिया गया। चाचै उंगली कर रहा था। उसने ढाई साल में काम दिखा दिया।

गुलाम भाई

नोटबंदी कर में मोदी जी ने सबको पैदल कर दिया। बेचारे सिबू भाई कहीं के ना रहेन, दूनौं गाड़ी खड़ी है। तेल डलवावै को पइसै नहीं है। एटीएम से पइसै नहीं निकल पा रहा है।

मो। फारूक

अन्यों के पास चेहरा न होना बड़ा फैक्टर

चुनावी चर्चाओं में कहीं सपा भारी पड़ रही है तो कहीं भाजपा। इस सबके बीच जोर का झटका धीरे से देने में जुटी बहन मायावती भी अपना जनाधार बढ़ाने में लगी हैं और उनकी गणित कहीं न कहीं सटीक बैठती नजर भी आ रही है। हालांकि भाजपा के पास चेहरा न होना और कांग्रेस के चेहरे को प्रदेश की जनता द्वारा पचा न पाना भी इन पार्टियों के लिए घातक होता दिख रहा है। इस बीच एक बात कामन है कि सीएम के रूप में अब तक मौजूद चेहरों (मायावती भी) में यदि पहली पसंद की बात करें तो अखिलेश पहले पायदान पर हैं।