यूनिवर्सिटी के ऐतिहासिक पाकड़ के पेड़ के नीचे बनती बिगड़ती रहीं कई सरकारें

भाजपा में बाहरी प्रत्याशी तो सपा में दो-दो दावेदार, बीच में कांगे्रस भी मार रही लंगड़ी

ALLAHABAD: इलाहाबाद विश्वविद्यालय के करीब स्थित पाकड़ का पेड़ हर दौर में राजनीति का बड़ा केन्द्र रहा है। चाहे छात्रसंघ की राजनीति हो या एमपी और एमएलए बनने का सपना, यह पेड़ हर चुनावी चकल्लस का गवाह बनता है। इस समय भी यूपी का चुनावी समर धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहा है। ऐसे में राजनीति का ककहरा सीखने वाले युवाओं की टोलियां जब शुक्रवार को विश्वविद्यालय मार्ग से निकलने लगीं तो बद्री टी स्टॉल के बद्री प्रसाद ने युवाओं को आवाज लगाई कि ओ बाबू आज नै बैठबो का। फिर क्या एमए प्रीवियस के छात्र सुचित सिंह अपने दोस्तों के संग बेंच पर बैठ गए। दोस्तों के बैठते ही भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा की सरकारें बनने बिगड़ने लगीं।

रवि चौधरी ने चाय का आर्डर दिया और तपाक से बोले इ बताओ शुभम भाई बहुत भाजपा का झंडा बुलंद करते हो, लेकिन बड़ी मशक्कत के बाद एक ठो लिस्ट जारी भई। वही में बाहरियन प्रत्याशी ज्यादा दिखाई देत हैं। शुभम कुमार खामोश हुए तो वेद प्रकाश सिंह शुभम की ओर इशारा करते हुए बोल पड़े ई यूपी है बाबू इहां आसानी से बदलाव न होई।

वेद प्रकाश की बदलाव वाली बात सुनकर शुभम कुमार से नहीं रहा गया। वे बोले लोकसभा का प्रचंड संदेश काहे तुम लोग नहीं समझ पा रहे हो। मोदी का मैजिक सर चढ़कर बोलेगा। चाहे जितने बाहरी लोगों को टिकट मिल जाए। डॉ। अनूप त्रिपाठी ने भी वेद प्रकाश की ओर हाथ दिखाकर शुभम की बातों का समर्थन किया। लेकिन यह बात भी कही कि यह चुनाव जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव का भी फैसला करेगा। शुभम को डॉक्टर साहब की बातों से बल मिला तो बेंच से उठ गए। जोर-जोर से चिल्लाने लगे कि भाजपा सरकार जरुर बनाएगी लेकिन कांग्रेस काहे इतना कूद रही है।

शुभम कुमार का साथ डॉ। अवध बिहारी, सुचित सिंह व डॉ। अनूप त्रिपाठी ने दिया। तीनों एक साथ बोल पड़े कि कांग्रेस कैसे सरकार बनाएगी। बिहार में गठबंधन किया, पश्चिम बंगाल में ममता का साथ पकड़ा। अब तीन-चार दिन से कांग्रेस उत्तर प्रदेश में संजीवनी की तलाश कर रही है। इस पार्टी के बस के बाहर हो गया है अकेले चुनाव लड़ना। तभी हर जगह सीमित सीट ही क्षेत्रीय पार्टियां इनको देती हैं। इसलिए कि कांग्रेस के पास तो अब कोई जनाधार ही नहीं रह गया है।

चुनावी चर्चा में युवाओं में इस बात पर जरुर एका रही कि पार्टियां अभी तक जिताऊ कैंडिडेट को ही ढूंढ़ रही हैं। वेद प्रकाश सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि बसपा को छोड़ दो तो कौउनो पार्टी ऐसी नहीं दिखी जेके कैंडिडेट की लिस्ट फाइनल हो गई हो। जेका देखो अभी तक वु जिताऊ चेहरे का ही मुंह ताक रखा है। चाहे जितना क्रेज मोदी के हो या फिर अखिलेश यादव के। सुचित ने सपा की लिस्ट पर तंज कसा। अरे काहे परेशान हो एक पार्टी ऐसी है जेके एक-एक विधानसभा में दु-दु प्रत्याशी हैं। बेवजह जिताऊ कैंडिडेट ढूंढ़ रहे हो।

ऐसा है इ बार न चल पाई बहिनजी के सोशल इंजीनियरिंग। उ तो लोकसभा की तरह ही लुढ़क जाएगी। रवि चौधरी ने यह कहा तो हर कोई हंसता ही रहा। लेकिन 30 साल से लोगों को चाय पिलाने वाले बद्री प्रसाद पटेल को यह बात नागवार गुजरी। उन्होंने कहा कि काहे बहिनजी के शासन में गुंडागर्दी तो नहीं दिखती थी। हमका तो लगत है कि उनसे अच्छी सरकार कोई नहीं चलाय सकत।

इस बार बसपा की सोशल इंजीनियरिंग नहीं चलेगी। यूपी में बदलाव तय है। भाजपा से उम्मीद है। कम से कम अराजकता का माहौल तो दूर होगा। विकास तो दिखाई ही देगा। बस देखना यह है कि 11 मार्च को सीटें कितनी मिलती हैं।

डॉ। अनूप त्रिपाठी

कांग्रेस तो खुद युवराज के सहारे अंतिम पायदान तक चली गई है। इस राष्ट्रीय पार्टी के कमजोर होने से ही क्षेत्रीय दल प्रदेशों की सत्ता में काबिज हो रहे हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश में इस बार ऐसा नहीं होगा। बदलाव की बयार तो जरुर बहेगी।

सुचित सिंह

कोई बदलाव नहीं होगा। सपा और कांग्रेस का गठबंधन गुल खिलाएगा। भाजपा के पास मोदी के अलावा कोई चेहरा नहीं है, जिसके नाम पर प्रदेश के नेता एकजुट हों। मुंह से विकास किया, विकास किया की बात तो यह पार्टी दो साल से कह रही है।

वेद प्रकाश सिंह

सपा के सियासी ड्रामे का फायदा किसको?

कई दिनों से चल रही समाजवादी पार्टी की कलह भले ही समाप्त हो गई हो, लेकिन हर ओर यही कयास लगाया जा रहा है कि पार्टी की कलह का फायदा किसको मिलेगा। भले ही सपा के पाले में कांग्रेस जाकर खड़ी हो जाए। आगे की राह उतनी आसान नहीं है, जितनी समझी जा रही है।