कई वर्षों चला आ रहा यह गोरखधंधा

यह गोरखधंधा पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है. जिस अधिकारी ने भी इसको रोकने के लिए खनन माफिया के गिरेबान में हाथ डाला, उसे खामियाजा भुगतना पड़ा. कई अधिकारियों पर जानलेवा हमले भी हुए. सत्ता के दबाव में पुलिस प्रशासन खनन माफिया के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाया. इससे खनन माफिया के हौसले बुलंद हैं. दरअसल उत्तराखंड में आई आपदा के बाद जून में यमुना का जलस्तर बढऩे से बाढ़ की स्थिति बन गई थी. बाढ़ के पानी के साथ बड़ी मात्रा में बालू भी आ गई थी. जलस्तर घटने के बाद बालू खेतों में जमा रह गई. इसको निकालने के लिए अब खनन माफिया में होड़ लगी हुई है.

सिर्फ एक के पास बालू निकालने की अनुमति

जिला प्रशासन ने यमुना से बालू निकालने के लिए सिर्फ रायपुर गांव के एक व्यक्ति को अनुमति दे रखी है. बाकी जगहों पर अवैध खनन हो रहा है. यमुना के किनारे बसे मंगरौली, छपरौली, मंगरौला, झट्टा, बादौली, कौंडली, डेरी कामबख्सपुर, मामनाथलपुर, शफीपुर, तिलवाड़ा आदि सभी गांवों से बालू का अवैध खनन हो रहा है. प्रतिदिन करीब ढाई सौ डंपर, जेसीबी मशीन व ट्रैक्टर ट्राली बालू निकालने में लगे रहते हैं.  

सत्ता के दबाव में नहीं बनी खनन माफिया की सूची

जिलाधिकारी रविकांत सिंह ने अप्रैल में अधीनस्थ आला अफसरों को खनन माफिया की सूची बनाकर कार्रवाई के निर्देश दिए थे. सूत्रों का कहना है कि एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल ने कई सफेदपोश नेताओं के नाम इस सूची में शामिल किए थे, लेकिन सत्ता के दबाव में सूची जारी नहीं हो सकी.

पूर्व में तैनात रहे अधिकारियों पर हुए हैं हमले

जिले में हिंडन व यमुना नदी से खनन माफिया बिना अनुमति के बड़े पैमाने पर बालू का खनन करते हैं. कई बार खनन माफिया में आपस में भी गोली चल चुकी है. हरियाणा और उत्तर प्रदेश के खनन माफिया में भी खूनी खेल खेला जा चुका है. गत वर्ष तत्कालीन एसडीएम सदर व खनन निरीक्षक आशीष कुमार पर भी बालू का अवैध धंधा करने वालों ने हमला किया था. खनन निरीक्षक पर भी गोली चलाई जा चुकी है. वह बाल-बाल बचे थे. एक अन्य पूर्व एसडीएम विशाल सिंह पर भी दो बार हमला हुआ था. मामला दर्ज होने के बाद भी कार्रवाई नहीं हुई.

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