करोड़ों रुपये ठगने की बात कुबूल की

आखिरकार बिना शिक्षा विभाग से मान्यता प्राप्त किये संचालित हो रहे बोर्ड के इंदिरानगर स्थित दफ्तर में छापा मारकर टीम ने गैंग के मास्टरमाइंड समेत सात जालसाजों को अरेस्ट कर लिया। टीम ने उनके कब्जे से एक सीपीयू, एक मॉनीटर, इंटरमीडिएट व हाईस्कूल की चार मार्कशीट व सर्टिफिकेट, 6 पैनकार्ड, 9 एटीएम, एक चेकबुक, 8 सेलफोन, 4 डीएल, 9 मोहरें, 10 सिमकार्ड, विभिन्न दस्तावेज और एक स्कॉर्पियो बरामद की। पूछताछ में आरोपियों ने अब तक हजारों छात्रों से करोड़ों रुपये ठगने की बात कुबूल की है।

तीन वेबसाइट कर रहे थे संचालित

एसएसपी एसटीएफ अभिषेक सिंह के मुताबिक, बीते दिनों सूचना मिली कि कुछ जालसाजों ने उत्तर प्रदेश राज्य मुक्त विद्यालय परिषद नाम से फर्जी बोर्ड गठित कर रखा है। जालसाजों के गिरोह ने तीन वेबसाइट्स www.upsosb.ac.in, www.upsos.co.in, www.upsos.in भी बना रखी हैं, जिनके जरिए छात्रों का रजिस्ट्रेशन करके उनके ऑनलाइन फॉर्म भरवाये जा रहे हैं। मामले की जांच एएसपी त्रिवेणी सिंह को सौंपी गई। जब शिक्षा विभाग से इस बोर्ड के बारे में तस्दीक कराया गया तो पता चला यह विभाग से मान्यता प्राप्त नहीं है। जांच में पता चला कि बोर्ड का दफ्तर इंदिरानगर के फरीदीनगर में स्थित है। जानकारी मिलने पर एसटीएफ टीम ने बोर्ड के दफ्तर पर छापा मारकर वहां मौजूद आजमगढ़ निवासी राजमन गौड़, बस्ती निवासी कनिकराम शर्मा, सुनील शर्मा, गोरखपुर निवासी नीरज शाही, आजमगढ़ निवासी जितेंद्र गौड़, राधेश्याम प्रजापति और इंदिरानगर निवासी नीरज प्रताप सिंह को अरेस्ट कर लिया।

सात राज्यों में 62 स्टडी सेंटर

गिरफ्त में आए आरोपियों से पूछताछ में पता चला कि राजमन गौड़ पूरे गैंग का सरगना और मास्टरमाइंड है। राजमन ने बताया कि उसने वर्ष 2013 में फर्जी बोर्ड गठित कर छात्रों को ठगने का प्लान बनाया। इसके लिये पहले तीन वेबसाइट बनाई गईं। जिस पर फर्जी रजिस्ट्रेशन नंबर, गुणवत्ता के लिये दिया जाने वाला आईएसओ 9001 प्रमाण पत्र और मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार से मान्यता प्राप्त अंकित कर दिया गया। इन वेबसाइट की बदौलत ही उसने छह राज्यों बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, हरियाणा, यूपी और दिल्ली में उसने 62 स्टडी सेंटर खोल दिये। राजमन ने बताया कि वेबसाइट के जरिए ही छात्रों से ऑनलाइन फॉर्म भरवाया जाता था। जिसके बाद स्टडी सेंटर में कुछ महीनों की पढ़ाई होती थी। फिर इन्हीं सेंटर के जरिए छात्रों को इंटरमीडिएट व हाईस्कूल की मार्कशीट व सर्टिफिकेट जारी कर दिये जाते थे।

 

वेबसाइट देखकर फंस जाते थे छात्र

जालसाज राजमन गौड़ ने छात्रों को विश्वास दिलाने के लिये वेबसाइट का डिजाइन बेहद सावधानी पूर्वक किया गया था। तीनों वेबसाइट पहली नजर में असली व विश्वसनीय लगे, इसके लिये वेबसाइट पर पीएम नरेंद्र मोदी की फोटो, स्वच्छ भारत मिशन का लोगो, बोर्ड की बैठक की तमाम फर्जी तस्वीरें, मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार भी अंकित कर रखा गया था। वेबसाइट पर ही फर्जी नोटिफिकेशन व मान्यता का सर्टिफिकेट भी प्रदर्शित किया गया था। वेबसाइट की मेंटीनेंस और इस पर रिजल्ट अपडेट करने के लिये उसने एक आईटी एक्सपर्ट भी तैनात कर रखा था।

फाइनेंस कंपनी भी संचालित करता है मास्टरमाइंड

एएसपी त्रिवेणी सिंह के मुताबिक, गैंग का मास्टरमाइंड राजमन गौड़ फर्जी बोर्ड के जरिए मार्कशीट व सर्टिफिकेट संचालित करने के साथ ही एक फर्जी माइक्रो फाइनेंस कंपनी भी संचालित करता है। इतना ही नहीं, इस फाइनेंस कंपनी से संबंधित अपनी दूसरी कंपनी बेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम के जरिए 'आईएसओ 9001-2015Ó का सर्टिफिकेट देने का भी काम करता है। इसकी जांच की जा रही है।

सारा जिम्मा सेंटर का

एएसपी त्रिवेणी सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश राज्य मुक्त विद्यालय परिषद के बैनरतले संचालित होने वाले फर्जीवाड़े में सारा काम सेंटर को ही करना पड़ता था। छात्रों का रजिस्ट्रेशन करने के बाद सेंटर को प्रति हाईस्कूल छात्र 1350 रुपये व प्रति इंटरमीडिएट छात्र 1550 रुपये बोर्ड को देने होते थे। इसके बाद सेंटर को जितना मन चाहे छात्र से फीस वसूलने की छूट थी। इसके एवज में सेंटर छात्र की क्लास संचालित करते, एग्जाम कराते, उनकी कॉपी चेक करते और नंबर भी वेबसाइट पर खुद ही अपलोड कर देते थे। इसके बाद बोर्ड की ओर से अपलोड किये गए नंबरों के मुताबिक, मार्कशीट व सर्टिफिकेट प्रिंट कराकर सेंटर को भेज दी जाती थी।

पहले से दर्ज है मुकदमा

एसएसपी अभिषेक सिंह ने बताया कि जौनपुर निवासी युवक अनवर ने वर्ष 2015 में इसी बोर्ड से हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी। बोर्ड से मिली मार्कशीट को लगाते हुए अनवर ने पासपोर्ट के लिये अप्लाई किया। लेकिन, पासपोर्ट ऑफिस ने अनवर की एप्लीकेशन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसके द्वारा लगाई गई मार्कशीट का बोर्ड फर्जी है। जिसके बाद जौनपुर के शाहगंज कोतवाली में अनवर ने एफआईआर दर्ज कराई थी। हालांकि, जौनपुर पुलिस ने मामले की जांच में ढिलाई बरती और यह फर्जी बोर्ड अब तक धड़ल्ले से फर्जीवाड़ा करता रहा।

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