एक साल में बदल गये यूपी लोक सेवा आयोग के जवाब

कानून की मनमानी व्याख्या, अनिल यादव के समय का ब्यौरा दिया, अनुरुद्ध यादव का छिपाया

vikash.gupta@inext.co.in

ALLAHABAD: राइट टू इन्फार्मेशन एक्ट के तहत मांगी गई सूचनाएं उपलब्ध कराने के मामले में भी उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन (यूपीपीएससी) फेल हो गया है। इसकी गवाही दो अलग-अलग आरटीआई के जरिये पूछे गये सवालों के जवाब देते हैं। इसे देखने और पढ़ने से स्पष्ट है कि संवैधानिक संस्था का दम भरने वाले यूपी लोक सेवा को कानून की मनमानी व्याख्या करने की खुली छूट है।

365 दिन में दाखिल हुए 312 मुकदमे

यूपीपीएससी में 20 जनवरी 2016 को दाखिल आरटीआई के जरिये पूछा गया कि 02 अप्रैल 2012 से 02 अप्रैल 2013 तक आयोग के विरूद्ध कितने मुकदमे उच्च न्यायालय में लाये गये। उक्त समयावधि में दाखिल वाद पर खर्च की गई धनराशि का भी ब्यौरा मांगा गया था। इसका जवाब आयोग ने 23 फरवरी 2016 को दिया। आयोग के जन सूचना अधिकारी ओम प्रकाश मिश्र की ओर से दिये गये जवाब में बताया गया था कि उपरोक्त समयावधि में कुल 312 मुकदमे इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल किये गये थे। आयोग ने केस नम्बर समेत इसका पूरा ब्यौरा भी दिया है। आयोग के जनसूचना अधिकारी ने यह भी जानकारी दी कि 02 अप्रैल 2012 से 02 अप्रैल 2013 के बीच दाखिल मुकदमो पर कुल 12,99,951 रूपये खर्च किये गये।

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बताया सुप्रीम कोर्ट का प्रतिपादित सिद्धांत

प्रतियोगी छात्र संघर्ष के मीडिया प्रभारी अवनीश पांडेय ने कुछ ऐसे ही सवाल एक दूसरी आरटीआई में पूछे तो आयोग की ओर से जवाब नकारात्मक दिया गया। अवनीश ने 13 दिसम्बर 2016 को दाखिल आरटीआई में पूछा था कि 30 नवम्बर 2015 से सूचना दिये जाने की तारीख तक आयोग के विरूद्ध कितने मुकदमे इलाहाबाद हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग हैं। इसमें से कितने वादों का निपटारा हो चुका है। इनपर कितना धन खर्च किया गया। अबकी आयोग की ओर से जो जवाब आया वो चौकाने वाला रहा। आयोग के उपसचिव एवं जनसूचना अधिकारी सत्य प्रकाश की ओर से 17 फरवरी 2017 को दिये गये जवाब में साफ कहा गया कि वांछित सूचनायें तैयार करके दिया जाना अपेक्षित एवं बाध्यकारी नहीं है। बताया गया कि जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 की धारा-2 एफ एवं जे के आलोक में आवेदक को वांछित सूचना देय नहीं है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत एवं व्याख्या का हवाला देते हुये कहा गया है कि वही सूचना देय होती है जो विभाग के नियमों के अनुसार तैयार करके संरक्षित किया जाना अपेक्षित है।

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CBI जांच से बचने के लिये तिकड़म

आरटीआई दाखिल करने वाले अवनीश पांडेय का कहना है कि पूर्व अध्यक्ष डॉ। अनिल यादव के कार्यकाल के सैकड़ों मुकदमों का विवरण दे दिया गया। लेकिन, पूर्व कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ। एसके जैन एवं वर्तमान अध्यक्ष प्रो। अनुरुद्ध सिंह यादव के कार्यकाल के दौरान का विवरण मांगा गया तो सूचना देने से इंकार कर दिया गया। अवनीश का कहना है कि प्रतियोगी लगातार आयोग की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। आयोग की प्रत्येक परीक्षा को कोर्ट में चुनौती दी जा रही है।

आयोग जानबूझकर सूचना छिपा रहा है। क्योंकि वह अच्छे से जानता है कि सूचना मिलने के बाद प्रतियोगी सरकार से निष्पक्ष जांच की मांग करेंगे।

अवनीश पांडेय

प्रतियोगी छात्र, सूचना आवेदनकर्ता

प्रतियोगी छात्र द्वारा मांगी गई वांछित सूचनायें तैयार करके दिया जाना अपेक्षित एवं बाध्यकारी नहीं है।

सत्य प्रकाश

उपसचिव एवं जनसूचना अधिकारी

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग