यूपीआरटीयू के सर्व समावेशी सांस्कृतिक कुंभ में जुटे संत और समाजसेवी

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PRAYAGRAJ: यूपीआरटीयू की ओर से कुंभ मेला क्षेत्र में स्थित गंगा पंडाल में बुधवार को सर्वसमावेशी सांस्कृतिक कुंभ का आयोजन किया गया। इसमें विभिन्न मत, पंथ और संप्रदाय के संतों ने अपने विचार रखे। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्जवलन, गणेश वंदना, हरि भजन से हुई। इसके बाद यूपीआरटीयू के कुलपति डॉ। केएन सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत में हिमालय से हिंद महासागर तक विभिन्न भौगोलिक स्थितियां, मत, पंथ व सम्प्रदाय हैं, लेकिन भारत एक है। सभी संत विद्वतजन एकता के संदेश को लेकर भारत के वैभव के प्रति पूर्ण संकल्पित होकर कार्य करते है। राष्ट्र विरोधियों के प्रहार के बावजूद हमारी संस्कृति, हिन्दुत्व, सनातन धर्म आज भी दुनिया को विभिन्नता में एकता का संदेश दे रही है।

जाति व्यवस्था का आरोप गलत

हिन्दू समाज पर जाति व्यवस्था का आरोप उचित नहीं है। भारत की संस्कृति भेद की नहीं है, बल्कि एकता की है। यहां स्त्री व पुरुष में भेद नहीं, नारी शक्ति आदि काल से संतों द्वारा समय-समय पर समाज मिलता रहा है। ये बातें कार्यक्रम के दौरान अपना पक्ष रखते हुए योगगुरु रामदेव ने कहीं। जूना अखाड़ा के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी ने कहा कि सत्य पर सबसे अधिक विचार भारत में हुआ है। भारत दुनिया को परिवार मानता है। परमार्थ निकेतन के चिदानंद मुनि ने अपने विचार रखते हुए कहा कि कुम्भ से दिशा मिलती है, लेकिन सर्व समावेशी सांस्कृतिक कुम्भ की सोच ने कुम्भ को नई दिशा दी है। लोग कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ देश को तोड़ने की बात करता है, लेकिन भारतीय संस्कृति एवं भारत को को जोड़ने का कार्य केवल संघ करता है। केन्द्रीय तिब्बत वि.वि। के कुलपति रिव कोन्चे ने भारतीय संस्कृति को अहिंसा और संतोष का आधार बताया। इस दौरान सरकार्यवाह भैया जी जोशी ने अपने विचार रखे। इस दौरान अनेक संतों व विद्वतजनों ने अपने विचार लोगों के सामने रखे। आखिर में संयोजक सर्वसमावेशी संस्कृति कुम्भ केन्द्रीय संयुक्त महा। विहिप डॉ। सुरेन्द्र जैन ने आखिर में धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारी समेत अन्य लोग मौजूद रहे।