BAREILLY: बरेली में उड़द की दाल खरीद में बड़ा घोटाला उजागर हुआ, जिसका सूत्रधार सत्तासीन व्यक्ति बताया जा रहा है, जिसके इशारे पर किसानों के हक पर डाका डाला गया। इसके लिए जन उत्थान बहुउद्देशीय सहकारी समिति लिमिटेड खेड़ा के जरिए आलमपुर जाफराबाद ब्लॉक के साकरपुर नगला और भोलापुर सेंटर पर 527 फर्जी किसान तैयार किए गए, जिनसे 12,261 क्विंटल उड़द दाल समिति ने खरीद करना बताया। असल में, जिसे मंडी और मार्केट से खरीदकर सत्तासीन व्यक्ति ने परचेज कराया था, लेकिन खरीद प्रक्रिया पूरी होने से एक दिन पहले ही 2 करोड़ 20 लाख 68 हजार 800 रुपए एक्स्ट्रा पेमेंट कराने की जल्दी ने पोल खोल दिया। डीएम ने एडीएम एफआर मनोज कुमार, ज्वाइंट कमिश्नर और सहायक निबंधक सहकारिता वीर विक्रम सिंह, तहसीलदार व नायब तहसीलदार की ज्वाइंट टीम ने जांच कराई, जिसके बाद घोटाले की सारी परतें सामने आ गई। डीएम के आदेश पर प्रेमनगर थाना में पीसीएफ मैनेजर आलोक कुमार, समेत 6 लोगों पर एफआईआर दर्ज कराई गई है। पीसीएफ के मैनेजर को सस्पेंड कर दिया गया है और विभागीय जांच की जा रही है।


किसानों ने बेचा ही नहीं अनाज

समिति ने 18 जनवरी से 31 जनवरी तक दोनों सेंटर पर खरीद दिखाई और सहकारिता डिपार्टमेंट में 30 जनवरी को उड़द खरीद की रिपोर्ट तैयार कराकर पेमेंट के लिए असिस्टेंट कमिश्नर व असिस्टेंट मैनेजर वीर विक्रम सिंह से साइन करने के लिए कहा। खरीद समाप्त होने से एक दिन पहले सभी दिनों के पेमेंट पर साइन से अधिकारियों का माथा ठनक गया, जबकि इसकी डेली रिपोर्ट जानी थी। जिसके बाद डीएम को मामले में की जानकारी देकर टीमें गठित की गई। जब टीमों ने उड़द खरीद सेंटर्स पर जाकर जांच की तो वहां पर कई गड़बडि़यां मिलीं और रिकार्ड्स भी सही से मेंटेन नहीं थी। इस पर टीमों ने रिकार्ड में दर्ज किसानों के मोबाइल नंबर से संपर्क किया तो अधिकांश के नंबर नॉट रीचेबल गए। यही नहीं जिन किसानों से बात हुई तो उनमें से कई ने बताया कि उन्होंने तो इस बार उड़द पैदा ही नहीं की थी। कुछ किसानों ने बताया कि उनके सिर्फ एक क्विंटल ही उड़द पैदा हुई। जबकि उससे 20 से 25 क्विंटल तक की उड़द खरीद दिखायी गई थी, जिसके बाद बैंक अकाउंट की जांच की गई तो पता चला कि अधिकतर बैंक अकाउंट भी फर्जी हैं।

 

एमएसपी 5400 लेकिन खरीद 3600 में

1800 रुपए प्रति क्विंटल हड़पने की थी तैयारी

सैकड़ों किसानों को नहीं मिल सका फायदा

 

उड़द खरीद में एमएसपी के नाम पर बड़ा खेल किया गया। सरकार ने दलहन के किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए उड़द की एमएसपी 5400 रुपए प्रति क्विंटल रखी थी, जिसका मार्केट रेट 3500 से 4000 रुपए क्विंटल चल रहा था। मार्केट का औसत रेट 3600 रुपए क्विंटल था। इसी के चलते बिचौलिए सक्रिय हो गए। बिचौलियों ने समिति के जरिए अधिकारियों से सांठ गांठ कर मार्केट से 3600 रुपए क्विंटल के रेट में 12,261 क्विंटल उड़द खरीद ली और 5400 रुपए प्रति क्विंटल एमसीपी पर खरीद दिखा दी। सभी 1800 रुपए प्रति क्विंटल सरकार से एक्स्ट्रा पेमेंट लेकर हड़पने वाले थे और किसानों को एक पाई भी नहीं मिलनी थी, क्योंकि किसान सभी फर्जी तैयार कराए गए थे।

 

ऐसे होनी थी दाल की खरीद

कलेक्ट्रेट सभागार में डीएम आर विक्रम सिंह को प्रेस कांफ्रेंस करनी थी, लेकिन उनकी जगह पर सीडीओ सत्येंद्र कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। प्रेस कांफ्रेंस में एडीएम फाइनेंस भी शामिल रहे। सीडीओ ने बताया कि पीसीएफ के मैनेजिंग डायरेक्टर ने डीएम बरेली, बदायूं समेत 8 जिलों के उड़द खरीद के लिए लेटर भेजा था। न्यूतनम समर्थन मूल्य पर उड़द दाल खरीद के लिए पीसीएफ को अधिकृत किया गया था। दाल खरीद 31 जनवरी तक की जानी थी। दाल खरीद के लिए सहकारिता विभाग के पीएसीएस पीसीएफ के द्वारा स्वंय या रजिस्टर्ड सहकारी समिति के सेंटर खोले जाने थे। प्रत्येक सेंटर पर विभाग के अलावा डीएम द्वारा नोडल ऑफिसर लगाया जाना था।


72 घंटे में किसानों के अकाउंट में पेमेंट

डिस्ट्रिक्ट लेवल पर सहायक आयुक्त और सहायक निबंधक सहकारिता और मैनेजर पीसीएफ को खरीद की निगरानी करनी थी। यही नहीं प्रत्येक बुधवार को डीएम की अध्यक्षता में मीटिंग कर खरीद की समीक्षा की जानी थी और दाल की डिलीवरी नैफेड को होनी थी। सीडीओ ने बताया कि जिन किसानों से दाल खरीदी जानी थी, उन सभी किसानों के आधार कार्ड नैफेड द्वारा वेबसाइट में फीडिंग करनी थी। दाल खरीदने के बाद सोसायटी को 72 घंटे में आरटीजीएस के जरिए किसानों को भुगतान किया जाना था।

 

यहां से शुरू हुआ खेल

दाल खरीद में खेल पीसीएफ के लेटर से ही शुरू कर दिया गया। पीसीएफ बरेली के मैनेजर के द्वारा दाल खरीद का लेटर जनरल डाक के जरिए 17 जनवरी को कलेक्ट्रेट भेजा गया, जिसके बाद इसे सहकारी समितियों को भेजा गया। प्रशासन का कहना है कि इस मामले में पीसीएफ ने अधिकारियों को अंधकार में रखा और मैनेजर ने शासन के आदेशों व निर्देशों का कोई पालन नहीं किया। सहायक आयुक्त और सहायक निबंधक सहकारिता ने 30 जनवरी को उड़द क्रय केंद्र भोलापुर और साकरपुर नगला में निरीक्षण किया गया तो काफी गड़बड़ी मिली। मामला डीएम के पास पहुंचा तो उन्होंने तुरंत इस पर संज्ञान लिया और एडीएम फाइनेंस मनोज कुमार के अलावा 4 अन्य टीमों को जांच के लिए लगा दिया गया।


समिति ने नहीं दिया कोई जवाब

एडीएम फाइनेंस ने इस मामले में एडीएम प्रशासन, सहायक आयुक्त, सहायक निबंधक सहकारिता, रीजनल मैनेजर पीसीएफ, डिस्ट्रिक्ट मैनेजर पीसीएफ, सचिव प्रभारी जन उत्थान बहुउद्देशीय सहकारी समिति लिमिटेड खेड़ा, सेंटर इंचार्ज साकरपुर नगला को नोटिस जारी कर पूरे मामले में जवाब मांगा। जिसपर एडीएम प्रशासन, सहायक आयुक्त एवं सहायक निबंधक सहकारिता की रिपोर्ट प्राप्त हुई। सेंटर इंचार्ज साकरपुर नगला का बयान हुआ और इसकी वीडियो रिकार्डिग भी हुई लेकिन अन्य किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।

 

ऐसे पकड़ा गया पूरा खेल

सेंटर इंचार्ज के बयान के बाद किसानों के बैंक खातों का वेरीफिकेशन कराया गया तो पता चला कि पीसीएफ ने उड़द खरीद का कोई सेंटर न खोलकर अनुभवहीन जन उत्थान बहुउद्देशीय सहकारी समिति लिमिटेड खेड़ा को खरीद की परमिशन दे दी गई। यह समिति रजिस्टर्ड तो थी लेकिन इसने कभी किसी भी फसल की खरीद ही नहीं की थी। यही नहीं उड़द खरीद के लिए बने सेंटर साकरपुर नगला और भोलापुर में कोई खरीद ही नहीं की गई। यह खरीद मंडी व मार्केट से कर ली गई। बताया जा रहा है कि सारी उड़द कुछ चुनिंदा लोगों से ही खरीदी गई।

 

ये हैं उड़द घोटाले के लोग

समिति ने उड़द खरीद कर नैफेड को दे दी। नैफेड से पेंमेंट किया जाना था, लेकिन पेमेंट से पहले ही खेल पकड़ा गया, जिसके चलते पेमेंट रोक दिया गया। इससे सरकार को 2 करोड़ 20 लाख रुपए की चपत लगने से बच गई। यह खेल पीसीएफ के डिस्ट्रिक्ट मैनेजर आलोक कुमार, समिति के सचिव राहुल गुप्ता, बिचौलिये मनोज और राजीव, सेंटर इंचार्च साकरपुर नगला हरीशंकर गुप्ता और भोलापुर सेंटर इंचार्ज सचिन गुप्ता ने पूरा खेल किया। इन सभी को जांच में प्रथम दृष्टयता दोषी पाया गया है। इन सभी के खिलाफ प्रेमनगर थाना में एफआईआर दर्ज कराइर्1 गई है।

 

नहीं किया गया प्रचार प्रसार

जब भी फसल की खरीद होती है तो इसका प्रचार प्रसार किया जाता है। उड़द दाल की खरीद का प्रचार प्रसार पीएसएफ को ही करना था लेकिन नहीं किया गया। जिसकी वजह से किसानों को पता ही नहीं चला कि उड़द खरीद के सेंटर भी ओपन हुए हैं। जबकि प्रचार प्रसार होता तो कुछ किसानों को इसका लाभ मिलता।