ये समझौता 2014 में विदेशी सेनाओं की वापसी के बाद भी अफ़गानिस्तान में अमरीकी सैनिकों की मौजूदगी की शर्तों से जुड़ा है.

जॉन कैरी के अनुसार अब इस समझौते को अफ़ग़ान प्रतिनिधियों की बैठक लोया जिरगा से मंज़ूर कराना होगा जो गुरुवार से शुरू हो रही है.

समझौते के मुताबिक अफ़ग़ान सरकार ने इस बात को मान लिया है कि अगर अमरीकी बल किसी तरह की आपराधिक गतिविधियों में लिप्त पाए गए तो उनके ख़िलाफ़ मामला स्थानीय अदालत की बजाय अमरीकी अदालतों में चलेगा.

अफ़ग़ान राष्ट्रपति हामिद करज़ई और अमरीकी विदेश मंत्री जॉन कैरी के बीच बातचीत में इस मुद्दे पर गतिरोध था.

'माफ़ी पर चर्चा नहीं'

बुधवार को अफ़ग़ान विदेश मंत्रालय ने सुरक्षा समझौता का मसौदा जारी किया.

अमरीकी विदेश मंत्री कैरी ने कहा, “हम दोतरफ़ा सुरक्षा समझौते के अंतिम प्रारूप पर सहमत हो गए हैं जिसे कल लोया जिरगा में रखा जाएगा.”

ये अभी साफ़ नहीं है कि कैरी का इशारा उसी समझौते के मसौदे की तरफ़ है जिसे अफ़ग़ान विदेश मंत्रालय ने जारी किया है.

"मैं साफ़ करना चाहता हूं, राष्ट्रपति करज़ई ने किसी तरह की माफ़ी की मांग नहीं की है. माफ़ी पर कोई चर्चा नहीं हुई."

-जॉन कैरी, अमरीकी विदेश मंत्री

कैरी ने इन रिपोर्टों से भी इनकार किया कि अफ़ग़ानिस्तान ने उससे पिछले 12 वर्षों के दौरान अफ़ग़ानिस्तान में की गई ग़लतियों के लिए माफ़ी मांगने को कहा है.

उन्होंने कहा, “मैं साफ़ करना चाहता हूं, राष्ट्रपति करज़ई ने किसी तरह की माफ़ी की मांग नहीं की है. माफ़ी पर कोई चर्चा नहीं हुई.”

उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में 2014 के बाद रहने वाली अमरीकी सेना की बहुत ही सीमित भूमिका होगी.

उन्होंने कहा, “उसकी भूमिका पूरी तरह प्रशिक्षण, सक्षम बनाने और मदद करने से जुड़ी रहेगी. अमरीकी बल किसी तरह की युद्धक भूमिका में नहीं होंगे.”

'गद्दारों को सज़ा देंगे'

इससे पहले दोनों ही पक्ष कुछ मुद्दों पर अपना रुख नरम करने को तैयार नहीं थे.

अफ़ग़ान प्रतिनिधि लंबे समय से अफ़ग़ान घरों पर अमरीकी छापों का विरोध करते रहे हैं, ख़ासकर रात के समय मारे जाने वाले छापों का, क्योंकि उन्हें घर में मौजूद महिलाओं की गरिमा के खि़लाफ़ माना जाता है.

अमरीका और अफ़ग़ानिस्तान सुरक्षा समझौते पर रज़ामंद

वहीं अमरीका चाहता था कि साल 2014 के बाद अफ़ग़ानिस्तान में रहने वाले अमरीकी सैनिकों पर स्थानीय अदालतों में मुकदमे न चलाए जाएं.

इस तरह के मुद्दों पर इराक में सहमति न होने के कारण अमरीका को वहां से पूरी तरह हटना पड़ा था.

अमरीकी अधिकारियों के अनुसार फ़रवरी मे हुए नैटो विदेश मंत्रियों की बैठक में 2014 के बाद अफ़ग़ानिस्तान में आठ हज़ार से लेकर 12 हजार पश्चिमी सैनिकों को रखने पर विचार किया गया.

अमरीकी राष्ट्रपति इस योजना के तहत तीन हज़ार से लेकर नौ हज़ार तक अमरीकी सैनिक अफ़ग़ानिस्तान में रखने पर विचार कर रहे हैं.

अगर लोया जिरगा में समझौते को मंज़ूरी मिल जाती है तो फिर इसे अफ़ग़ान संसद से पारित कराना होगा.

उधर तालिबान ने लोया जिरगा को अमरीका प्रायोजित षड्यंत्र बताया है और उसने इस समझौते को मंजूरी किया तो इसके सदस्यों को ग़द्दार मान कर उन्हें इसकी सजा दी जाएगी.

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