आईबीएम के नए सुपरकंप्यूटर ने जापान के फूजित्सु कंपनी द्वारा निर्मित सुपरकंप्यूटर ‘के कंप्यूटर’ को पछाड़कर द्वितीय स्थान पर पटक दिया है.

दो साल पहले चीन के एक सुपरकंप्यूटर से पिछड़ने के बाद ये पहली बार है जब अमरीका इस सूची में पहले स्थान पर पहुंचा है.

सिक्वोया का इस्तेमाल परमाणु हथियारों के संरक्षण से जुड़े प्रयोगों में किया जाएगा. उम्मीद की जा रही है कि इसकी मदद से असली परमाणु हथियारों पर असली प्रयोग करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

इसे कैलिफॉर्निया के एक सरकारी लैब में स्थापित किया गया है.

सबसे तेज

अमरीका के राष्ट्रीय परमाणु सुरक्षा प्रशासन के अधिकारी थॉमस डी ऑगस्टीन ने कहा, “सिक्वोया सबसे तेज तो है ही लेकिन, इसकी क्षमताएं परमाणु हथियारों की सुरक्षा के क्षेत्र में हमारा मनोबल और मजबूत करती है. उच्च तकनीक के क्षेत्र में सिक्वोया अमरीकी नेतृत्व का परचम लहराती है.”

अगर इस सुपरकंप्यूटर के गति की बात करें तो, ये इतना तेज है कि जितनी गिनती ये एक घंटे में कर लेता है उतना 6.7 अरब लोग हाथ में कैलकुलेटर लेकर 320 वर्षो तक पूरा नहीं कर सकते.

दूसरे देशों की बात करे तो चीन और जर्मनी के पास दो-दो सुपरकंप्यूटर है जबकि जापान, फ्रांस और इटली के पास एक-एक है.

आईबीएम का बोलबाला

हालांकि दस सबसे तेज कंप्यूटरों की सूची में आईबीएम के पांच कंप्यूटर है.

अमरीकी सुपरकंप्यूटर सिक्वोया जापान की के कंप्यूटर के मुकाबले बिजली की भी कम खपत करती है. जहां के कंप्यूटर को 12.6 मेगावॉट बिजली की जरूरत होती है वहीं, सिक्वोया सिर्फ 7.9 मेगावॉट में चलती है.

सबसे तेज कंप्यूटरों की सूची हर छह महीने में जर्मनी के प्रोफेसर हांस म्यूर और अमरीकी प्रोफेसर जैक डॉंगेरा संयुक्त रूप से जारी करते है.

बीबीसी से बात करते हुए प्रोफेसर जैक डॉंगेरा ने कहा की आईबीएम के सिक्वोया को अगले एक साल तक पछाड़ पाना नामुमकिन जैसा है.