-बरेली में दो संवासिनी हो चुकी हैं प्रेगनेंट

- सिद्धार्थनगर में अत्याचार से परेशान किशोरी कर चुकी है सुसाइड की कोशिश

- सरकारी अनदेखी से हालात बद से बदतर

pankaj.awasthi@inext.co.in
LUCKNOW : प्रदेश की बेसहारा महिलाओं व बालिकाओं के लिये सरकार व तमाम एनजीओ संरक्षण गृह संचालित करती हैं। दावा किया जाता है कि इन संरक्षण गृहों में रहने वाली महिलाओं व बच्चियों को घर जैसा माहौल व रहन-सहन दिया जाता है, ताकि उन्हें परिवार की कमी का एहसास न हो। हालांकि, समय-समय पर होते खुलासे इन दावों की कलई खुद-ब-खुद खोलते रहे हैं। देवरिया में एक एनजीओ द्वारा संचालित बालिका गृह में रहने वाली बच्चियों से देहव्यापार की सनसनीखेज घटना ने प्रदेश के सियासी हलके में तूफान मचा दिया है। लेकिन, यह संरक्षण गृह में होने वाला कोई पहला मामला नहीं जब मासूम बच्चियों का शोषण होने की बात सामने आई हो। इससे पहले भी ऐसे संरक्षण गृहों में दिल दहलाने वाली घटनाएं सामने आ चुकी हैं। पर, सरकारी अनदेखी की वजह से हालात सुधरने के बजाय बद से बदतर होते गए। नतीजतन, देवरिया कांड जैसी शर्मनाक घटना सबके सामने है।

बालिकाएं हो चुकी हैं पे्रगनेंट
अप्रैल 2016 में बरेली महिला संरक्षण गृह से राजधानी के मोतीनगर स्थित राजकीय बालगृह (बालिका) में शिफ्ट की गई दो संवासिनियों के प्रेगनेंट होने के सनसनीखेज खुलासे से हड़कंप मच गया था। दरअसल, किसी भी संवासिनी को दूसरे बालगृह में शिफ्ट करने से पहले मेडिकल जांच कराई जाती है। शिफ्ट की गई पांच संवासिनियों को मेडिकल जांच के लिये डफरिन हॉस्पिटल ले जाया गया था, जहां उनमें से दो के प्रेगनेंट होने की पुष्टि हुई थी। वहीं, रायबरेली भेजी गई दो संवासिनी के भी प्रेगनेंट होने की खबर आई। हालांकि, उस वक्त मचे हो-हल्ले के बीच बिना कोई कड़ी कार्रवाई किये मामले को रफा-दफा कर दिया गया।

चिट्ठी ने मचा दिया था बवाल
मोतीनगर स्थित राजकीय बालगृह (बालिका) की एक संवासिनी ने उत्तर प्रदेश बाल आयोग की तत्कालीन अध्यक्ष जूही सिंह को पत्र लिखकर बालगृह में होने वाले अत्याचारों की शिकायत की थी। संवासिनी ने बताया था कि किस तरह बालगृह की तत्कालीन अधीक्षिका रुपेंदर कौर व अन्य स्टाफ उन पर अत्याचार करता है। होली-दीवाली में आने वाला सामान भी स्टाफ अपने घर उठा ले जाता है। यहां तक कि उन्हें सड़ा-गला सामान खाने को दिया जाता है। इस पत्र के बाद अध्यक्ष जूही सिंह ने बालगृह का औचक निरीक्षण किया था और पत्र में लगाए गए आरोप सही पाये थे। जिसके बाद तत्कालीन अधीक्षिका रूपेंदर कौर को सस्पेंड कर दिया गया था।

अत्याचार से तंग बालिका ने खाया था जहर
सिद्धार्थनगर के डुमरियागंज में एनजीओ द्वारा संचालित बालगृह (बालिका) है। जिसे सरकार अनुदान देती है। अक्टूबर 2017 में इस बालगृह की एक संवासिनी ने जहर पीकर खुदकुशी की कोशिश की। पीडि़ता ने बताया था कि उसे बालगृह के प्रबंधक व स्टाफ द्वारा पीटा जाता है और उनसे जबरन खाना बनवाया जाता है। इसी से नाराज होकर उसने अपनी जान देने की कोशिश की। हालांकि, यह मामला भी समय के साथा फाइलों में दब गया और कोई सख्त कार्रवाई न हो सकी।

- 12 जिलों में ही सरकारी संरक्षण गृह

- 725 स्वीकृत संरक्षण गृह की क्षमता

- 588 महिलाएं व बालिकाएं फिलहाल कर रही है

इन जिलों में हैं संरक्षण गृह

वाराणसी, आगरा, मेरठ, मुरादाबाद, गोरखपुर, इलाहाबाद, कानपुर नगर, मथुरा, इटावा, फैजाबाद, लखनऊ और बरेली