मोबाइल पर बयां किया दर्द
'सर, हम लोग बच नहीं पाएंगे, तीन दिन से गौरी गांव में फंसे हैं। खाने के लिए न खाना मिल रहा है न पीने के लिए पानी। गड्ढों में भरा पानी पीकर जान बचा रहे हैं। रात में बारिश होती है तो ठंड बढ़ जाती है। जो भीगता है बीमार हो जाता है और दवा नहीं मिलने से बच नहीं पाता' आपदा आए काफी वक्त बीत चुका है लेकिन आज भी उत्तराखंड में फंसे लोगों का दर्द कम नहीं हो रहा है। उनकी दर्द भरी दास्तां हमें बताने वाला तो कोई नहीं लेकिन मौजूदा वक्त में सभी का साथी 'फेसबुक' उनके दर्द को बयां कर रहा है। रुद्रप्रयाग में फंसे सिटी के सिद्धार्थ पांडेय ने 20 जून को डीआईजी गोरखपुर की प्रोफाइल पर अपने मोबाइल से जो पोस्ट किया वह किसी के भी रोंगटे खड़े करने के लिए काफी है।

छोड़ी जिंदा रहने की आस
रुद्रप्रयाग में फंसे सिद्धार्थ पांडेय ने डीआईजी गोरखपुर की टाइमलाइन पर कमेंट पोस्ट किया है। इसमें उन्होंने लिखा है कि रुद्रप्रयाग के गौरीगांव में सिटी के काफी लोग फंसे हुए हैं। इन सभी ने अपनी जान बचने की आस छोड़ दी है। गौरीकुंड से किसी तरह अपनी जान बचाकर गौरीगांव पहुंचे 5000 से ज्यादा लोगों का दर्द सुनने वाला कोई नहीं है और न ही शासन कोई मदद कर रहा है। उन्हीं में से एक यात्री ने सिद्धार्थ से बताया कि जिस तरह से राहत और बचाव का काम चल रहा है तो उससे नहीं लगता कि हम बच सकेंगे।

रुद्र प्रयाग में फंसे हैं सिटी के 15 से ज्यादा लोग
सिटी के 30 से ज्यादा लोग आज भी उत्तराखंड में फंसे हुए हैं। इसमें से 15 से ज्यादा लोग रुद्रप्रयाग जिले के गौरीगांव में फंसे हुए हैं। पोस्ट के हिसाब से यह सभी लोग जब आपदा आई तो उस रात गौरीकुंड में थे। कुदरत के इस कहर के बाद यह किसी तरह से पैदल चलकर गौरीगांव पहुंचे हैं। रास्ते में उन्हें इतनी लाशें दिखाई दीं कि उन्हें पैदल चलने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ी।

आंखों के सामने हो रही मौत
आपदा में फंसे लोगों को मौत का यह दर्दनाक मंजर रोज देखना पड़ रहा है। रोज 6 से 8 लोग दम तोड़ रहे हैं लेकिन उनके साथ मौजूद लोग उन्हें पल पल मरते देखने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते। सिद्धार्थ के मुताबिक दिल्ली से आए 14 लोगों के ग्रुप में से अब सिर्फ एक लड़का बचा हुआ है, उसकी भी तबीयत काफी बिगड़ चुकी है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उनका सारा सामान भी बह चुका है और बस सिर्फ बदन पर जो कपड़े हैं वहीं बचे हैं।

बचाव कार्य में भी 'जुगाड़'
एक तरफ जहां सरकार राहत कार्य का ढिंढोरा पीट रही है, जबकि हकीकत इससे काफी परे है। सिद्धार्थ की पोस्ट पर अगर नजर डालें तो इसमें साफ तौर पर यह बात लिखी हुई है कि प्रशासन ने हैलीपैड तो बनाया था, लेकिन हेलीकॉप्टर ने महज 8 चक्कर ही लगाए जिसमें सिर्फ 40 लोगों को ही वहां से शिफ्ट किया जा सका। सिर्फ इतना ही नहीं, बचाव कार्य में भी जुगाड़ का बोलबाला है। पहले उन्हीं लोगों को वहां से शिफ्ट किया जा रहा है जिनके लिए 'बड़े लोगोंÓ ने सिफारिश कर रखी है। हेलीकॉप्टर देखकर लोगों में  भगदड़ मच रही है। अभी भी काफी तादाद में लोग उसी जगह पर फंसे हुए हैं।

मोबाइल भी ले रहे 'आखिरी सांस'
आपदा में फंसे लोगों में ज्यादातर लोगों के पास मोबाइल फोन थे, लेकिन सिद्धार्थ की पोस्ट के मुताबिक अब महज 8-10 हैंडसेट्स ही वर्किंग कंडीशन में बचे हुए हैं। उनमें से भी कुछ की बैटरी अपनी आखिरी सांसे ले रही है और कभी भी धोखा दे सकती है। पूरा इलाका तबाह हो जाने की वजह से बिजली भी नहीं आ रही है, जिसकी वजह से मोबाइल चार्ज होने का भी कोई चांस नहीं हैं। यही नहीं वहां पर बीएसएनएल के अलावा किसी अदर कंपनी का नेटवर्क भी वर्क नहीं कर रहा है। जिसके पास बीएसएनएल सिम है वह ही अपनी खबर अपने फैमिली मेंबर्स और रिलेटिव्स को दे पा रहे हैं।

सिर ढकने को छत भी नहीं
गौरी गांव में शरण लिए गए लोग भूखे-प्यासे तो हैं ही, साथ ही उन्हें रहने की भी जगह नहीं मिल रही है। गांव वालों के पास इतने कमरे नहीं है कि सभी को छत मिल जाए। बहुत सारे लोग खुले में ही रहकर अपने दिन काट रहे हैं। सिद्धार्थ के मुताबिक दिन में तो धूप निकलने से किसी तरह काम चल जाता है लेकिन रात में बारिश होती है तो ठंड बढ़ जाती है, जिससे बचने के लिए लोग घरों के छज्जे के नीचे बैठकर रात गुजार रहे हैं। भीग कर जो बीमार पड़ता है उसे मौत अपने आगोश में ले लेती है।

 

report by : syedsaim.rauf@inext.co.in