- आपदा के बाद बंद की गई 24 जलविद्युत परियोजनाओं में से छह का निर्माण दोबारा शुरू होने की उम्मीद बढ़ी

- 31 अक्टूबर को केंद्र सरकार की विशेषज्ञ कमेटी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करेगी अपनी रिपोर्ट

- ये छह परियोजनाएं शुरू हुई तो मिलेगा 822 मेगावाट बिजली उत्पादन

ष्ठश्व॥क्त्रन्ष्ठहृ(छ्वहृहृ, 13 ह्रष्ह्ल): एकसमय अपनी ऊर्जा परियोजनाओं के चलते 'ऊर्जा प्रदेश' का तमगा हासिल करने वाले उत्तराखंड को भले ही आज की तारीख में बिजली के भारी संकट से जूझना पड़ रहा हो, लेकिन जल्द ही उसका यह तमगा दोबारा चमचमाता दिखाई देगा। यहां की जिन जलविद्युत परियोजनाओं पर 2013 की आपदा ने रोके जाने का ग्रहण लगा दिया था, अब इनमें से छह के शुरू होने का रास्ता साफ होता दिखाई दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बंद हुई इन परियोजनाओं को दोबारा चालू करने के लिए केंद्र सरकार की विशेषज्ञ कमेटी 31 अक्टूबर को अपनी रिपोर्ट देने जा रही है। ये परियोजनाएं बनीं तो इन परियोजनाओं से ग्रिड में जाने वाली 822.3 मेगावाट बिजली से जहां स्टेट के ऊर्जा प्रदेश होने की झलक फिर से मिलेगी, वहीं बतौर रॉयल्टी मिलने वाली 102.78 मेगावाट बिजली से स्टेट का बिजली संकट भी खत्म हो जाएगा।

24 जलविद्युत परियोजनाएं थीं कतार में

जून 2013 की प्राकृतिक आपदा के चलते यहां की नदियों में आए भयंकर जलबहाव से हुए नुकसान के लिए जगह-जगह निर्मित और निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं को जिम्मेदार माना गया था। भारतीय वन्यजीव संस्थान की तरफ से इस संबंध में तैयार की गई एक रिपोर्ट के चलते सुप्रीम कोर्ट ने यहां निर्माणाधीन 24 जलविद्युत परियोजनाओं पर रोक लगा दी थी। ये सभी परियोजनाएं आपदा में सबसे ज्यादा तबाही मचाने वाली अलकनंदा व भागीरथी घाटी में बन रही थीं। इनमें से छह परियोजनाओं पर काफी काम भी पूरा हो चुका है।

डिमांड हो रही थी रोक हटाने की

स्टेट गवर्नमेंट के बार-बार अनुरोध के बाद केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भी उक्त छह परियोजनाओं पर रोक हटाने की पैरवी कर चुका है। इस पर कोर्ट ने इन छह परियोजनाओं का एक विशेषज्ञ समिति के जरिए दोबारा आंकलन करने के निर्देश दिए थे।

31 अक्टूबर को पेश होगी रिपोर्ट

बीते रोज सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 31 अक्टूबर को विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए। ऐसे में केंद्र को अब इन छह परियोजनाओं के संबंध में 31 अक्टूबर तक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल करनी है। सुप्रीम कोर्ट मामले में 23 नवंबर को अगली सुनवाई करेगा और यह माना जा रहा है कि उस दिन 822.3 मेगावाट की इन छह परियोजनाओं को दोबारा शुरू करने की हरी झंडी मिल सकती है। हालांकि, ये सभी छह परियोजनाएं सार्वजनिक या निजी क्षेत्र की कंपनियों को आवंटित की गई हैं, मगर यदि सुप्रीम कोर्ट से इन परियोजनाओं को हरी झंडी मिली, तो प्रदेश को 12.5 परसेंट रॉयल्टी के रूप में इन परियोजनाओं से निकट भविष्य में करीब 102.78 मेगावाट बिजली मिलने का रास्ता भी साफ हो जाएगा।

इनसेट

इन परियोजनाओं पर होगा फैसला

परियोजना क्षमता नदी

अलकनंदा 300 अलकनंदा

जल्द ही फिर 'ऊर्जा प्रदेश' बनेगा उत्तरा?ांड

लाता तपोवन 171 धौलीगंगा

झेलम तमक 128 धौलीगंगा

कोटलीभेल-1ए 195 भागीरथी

भ्यूंडार गंगा 24.3 भ्यूंडारगंगा

खिराव गंगा 04 खिराव गंगा

कुल क्षमता 822.3

चीड़ की पत्तियों से रोशन होगा उत्तराखंड

- चीड़ के पीरुल को ऊर्जा के रुप में करेंगे उपयोग

- आसपास के ग्रामीणों को भी मिलेगा रोजगार

- उत्तराखंड में 3,94,383 हेक्टेयर में है चीड़ का जंगल

ह्मड्डद्भठ्ठद्गद्गह्यद्ध.द्मह्वद्वड्डह्म@द्बठ्ठद्ग3ह्ल.ष्श्र.द्बठ्ठ

ष्ठश्व॥क्त्रन्ष्ठहृ(13 ह्रष्ह्ल):

उत्तराखंड के जंगलों के लिए अभी तक अभिशाप मानी जाने वाली चीड़ के पेड़ की पत्तियां यानि पीरुल जल्द ही यहां के लिए वरदान साबित हो सकती हैं। पीरुल को थर्मल पॉवरप्लांट्स में कोयले के विकल्प के रूप में इस्तेमाल कर बिजली बनाने की तैयारी की जा रही है। सबकुछ ठीक रहा तो बिजली संकट से जूझ रहे उत्तराखंड के दुर्गम क्षेत्रों के गांव चीड़ की पीरुल से बनने वाली बिजली से रोशन होंगे और पीरुल के कारण हर साल जंगलों में लगने वाली आग से होने वाले नुकसान पर भी रोक लगेगी।

ऊर्जा का स्रोत है चीड़ की पीरुल

चीड़ के वृक्ष से गिरने वाली पत्तियां यानि पीरुल बहुत ही ज्वलनशील होती हैं। इस कारण यह ऊर्जा का बहुत अच्छा श्रोत है। हर साल चीड़ की पीरुल की ज्वलनशीलता के कारण ही उत्तराखंड के वनों में भयंकर आग लगती है। पिछले वर्ष गढ़वाल क्षेत्र में इसी कारण भयंकर आग लगी थी। टिहरी क्षेत्र में 579 हेक्टेयर जंगल इस आग से बुरी तरह प्रभावित हुआ था। साथ ही करीब 36 हेक्टेयर पौधारोपण भी जलकर राख हो गया था। पूरे उत्तराखंड की बात करें तो आंकडे़ इससे कहीं अधिक हैं। इसलिए वन विभाग में तैनात विशेषज्ञ अधिकारी इस ऊर्जा को बिजली उत्पादन में प्रयोग करने की तैयारी कर रहे हैं।

स्टेट में 3,94,383 हेक्टेयर में चीड़

उत्तराखंड में चीड़ का क्षेत्रफल लगातार बढ़ा है। उत्तराखंड वन सांख्यिकी 2010-2011 की रिपोर्ट के अनुसार वन विभाग के अधीन चीड़ का 3,94,383 हेक्टेयर जंगल है। परसेंटेज में बात करें तो अन्य प्रजाति के वृक्षों के मुकाबले करीब 17 परसेंट क्षेत्रफल पर चीड़ का ही जंगल है।

निशुल्क होगा पीरुल का उठान

वन विभाग पहले चीड़ के जंगलों से पीरुल उठाने के लिए दाम वसूलता था, इस कारण इसे जंगलों से उठाने में कोई रुचि नहीं ले रहा था। हाल ही में वन विभाग के उच्चाधिकारियों ने पीरुल को निशुल्क करने का निर्णय लिया है, ताकि इसे जंगलों से हटाया जा सके और आग लगने के कारण को दूर किया जा सके।

स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार भी

पीरुल का निशुल्क उठान करवाने के लिए वन विभाग की योजना स्थानीय ग्रामीणों को इसके उठान से जोड़ने की है। इसके तहत ग्रामीण पीरुल को जंगलों से एकत्र कर कंपनियों को बेचेंगे, जिससे कंपनी का खर्च भी कम होगा और स्थानीय स्तर पर रोजगार भी डेवलप होगा।

ऐसे बनाई जाएगी पीरुल से बिजली

- अभी तक थर्मल पॉवर प्लांट को चलाने के लिए कोयले का उपयोग किया जाता है।

- पीरुल की ज्वलनशीलता के कारण प्लांट में इसे कोयले के स्थान पर बायोऊर्जा के रुप में प्रयोग किया जाएगा।

- इसके लिए विभिन्न राज्यों के थर्मल पॉवर प्लांट्स से टाईअप की तैयारी की जा रही है।

इन नुकसान से छुटकारा भी

- चीड़ की पत्तियों की ज्वलनशीलता के कारण जंगलों में लगती में है हर साल भयंकर आग।

- आग में खाक हो जाती हैं कई प्रकार की कीमती वनस्पतियां और जड़ी-बूटी।

- पीरुल के फैले होने से बारिश का पानी जमीन तक नहीं पहुंचता और वाटर लेवल गिर जाता है।

- वाटर लेवल लगातार गिरने के कारण ही उत्तराखंड के सैकड़ों प्राकृतिक जलस्रोत हो चुके हैं बंद

मुझे इस प्रोजेक्ट का नोडल अधिकारी बनाया गया है। इसमें गढ़वाल सीसीएफ को भी शामिल किया गया है। चीड़ के पीरुल का प्रयोग ऊर्जा के रुप में करके बिजली उत्पादन के लिए होगा। अभी तक पीरुल के दाम वसूले जाते थे, लेकिन पिछले दिनों इसके उठान को निशुल्क कर दिया गया है।

--एनवी सिंह, सीसीएफ, हल्द्वानी- आपदा के बाद बंद की गई 24 जलविद्युत परियोजनाओं में से छह का निर्माण दोबारा शुरू होने की उम्मीद बढ़ी

- 31 अक्टूबर को केंद्र सरकार की विशेषज्ञ कमेटी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करेगी अपनी रिपोर्ट

- ये छह परियोजनाएं शुरू हुई तो मिलेगा 822 मेगावाट बिजली उत्पादन

ष्ठश्व॥क्त्रन्ष्ठहृ(छ्वहृहृ, 13 ह्रष्ह्ल): एकसमय अपनी ऊर्जा परियोजनाओं के चलते 'ऊर्जा प्रदेश' का तमगा हासिल करने वाले उत्तराखंड को भले ही आज की तारीख में बिजली के भारी संकट से जूझना पड़ रहा हो, लेकिन जल्द ही उसका यह तमगा दोबारा चमचमाता दिखाई देगा। यहां की जिन जलविद्युत परियोजनाओं पर 2013 की आपदा ने रोके जाने का ग्रहण लगा दिया था, अब इनमें से छह के शुरू होने का रास्ता साफ होता दिखाई दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बंद हुई इन परियोजनाओं को दोबारा चालू करने के लिए केंद्र सरकार की विशेषज्ञ कमेटी 31 अक्टूबर को अपनी रिपोर्ट देने जा रही है। ये परियोजनाएं बनीं तो इन परियोजनाओं से ग्रिड में जाने वाली 822.3 मेगावाट बिजली से जहां स्टेट के ऊर्जा प्रदेश होने की झलक फिर से मिलेगी, वहीं बतौर रॉयल्टी मिलने वाली 102.78 मेगावाट बिजली से स्टेट का बिजली संकट भी खत्म हो जाएगा।

24 जलविद्युत परियोजनाएं थीं कतार में

जून 2013 की प्राकृतिक आपदा के चलते यहां की नदियों में आए भयंकर जलबहाव से हुए नुकसान के लिए जगह-जगह निर्मित और निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं को जिम्मेदार माना गया था। भारतीय वन्यजीव संस्थान की तरफ से इस संबंध में तैयार की गई एक रिपोर्ट के चलते सुप्रीम कोर्ट ने यहां निर्माणाधीन 24 जलविद्युत परियोजनाओं पर रोक लगा दी थी। ये सभी परियोजनाएं आपदा में सबसे ज्यादा तबाही मचाने वाली अलकनंदा व भागीरथी घाटी में बन रही थीं। इनमें से छह परियोजनाओं पर काफी काम भी पूरा हो चुका है।

डिमांड हो रही थी रोक हटाने की

स्टेट गवर्नमेंट के बार-बार अनुरोध के बाद केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भी उक्त छह परियोजनाओं पर रोक हटाने की पैरवी कर चुका है। इस पर कोर्ट ने इन छह परियोजनाओं का एक विशेषज्ञ समिति के जरिए दोबारा आंकलन करने के निर्देश दिए थे।

31 अक्टूबर को पेश होगी रिपोर्ट

बीते रोज सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 31 अक्टूबर को विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए। ऐसे में केंद्र को अब इन छह परियोजनाओं के संबंध में 31 अक्टूबर तक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल करनी है। सुप्रीम कोर्ट मामले में 23 नवंबर को अगली सुनवाई करेगा और यह माना जा रहा है कि उस दिन 822.3 मेगावाट की इन छह परियोजनाओं को दोबारा शुरू करने की हरी झंडी मिल सकती है। हालांकि, ये सभी छह परियोजनाएं सार्वजनिक या निजी क्षेत्र की कंपनियों को आवंटित की गई हैं, मगर यदि सुप्रीम कोर्ट से इन परियोजनाओं को हरी झंडी मिली, तो प्रदेश को 12.5 परसेंट रॉयल्टी के रूप में इन परियोजनाओं से निकट भविष्य में करीब 102.78 मेगावाट बिजली मिलने का रास्ता भी साफ हो जाएगा।

इनसेट

इन परियोजनाओं पर होगा फैसला

परियोजना क्षमता नदी

अलकनंदा 300 अलकनंदा

जल्द ही फिर 'ऊर्जा प्रदेश' बनेगा उत्तरा?ांड

लाता तपोवन 171 धौलीगंगा

झेलम तमक 128 धौलीगंगा

कोटलीभेल-1ए 195 भागीरथी

भ्यूंडार गंगा 24.3 भ्यूंडारगंगा

खिराव गंगा 04 खिराव गंगा

कुल क्षमता 822.3