- लोकसभा चुनाव के लिए शुरू हो गई वाहनों की अधिग्रहण प्रक्रिया

- पैदल हो गए विभाग, ऑफिसर्स तक की गाड़ी प्रशासन ने खींची

- प्राइवेट ट्रांसपोर्टर्स और ट्रेवल एजेंसीज पर भी जमी है नजर

<- लोकसभा चुनाव के लिए शुरू हो गई वाहनों की अधिग्रहण प्रक्रिया

- पैदल हो गए विभाग, ऑफिसर्स तक की गाड़ी प्रशासन ने खींची

- प्राइवेट ट्रांसपोर्टर्स और ट्रेवल एजेंसीज पर भी जमी है नजर

ALLAHABAD: allahabad@inext.co.in

ALLAHABAD: मैडम की शॉपिंग, बच्चों को स्कूल छोड़ना और साहब का पर्सनल कम ऑफिशियल टूर, और भी न जाने कितने काम सरकारी गाडि़यों से निपटाए जाते हैं। इनमें न तो टूट-फूट की मेंटनेंस देनी होती है और न ही डीजल भराने की चकचक। ये तमाम सुविधाएं सरकारी खाते से ही मुहैया हो जाती हैं। ऐसे में अगर गाड़ी छिन जाए तो साहब पर क्या बीतेगी। रौब तो जाएगा ही, पर्सनल गाड़ी यूज करने में पैसे भी खर्च होंगे। फिलहाल लोकसभा चुनाव के चलते कुछ ऐसे ही हालात पैदा हो गए हैं। डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन ने जरूरत के मुताबिक सरकारी गाडि़यों का अधिग्रहण करना शुरू कर दिया। जिससे ऑफिसर्स में हाहाकार मचा हुआ है।

एक अनार, सौ बीमार

लोकसभा चुनाव से पहले डिस्ट्रिक्ट के सभी सरकारी विभागों के पास मौजूद फोर व्हीलर्स की डिटेल मांगी गई थी। अब उनका अधिग्रहण शुरू कर दिया गया है। आंकड़ों के मुताबिक अलग-अलग विभागों के पास मौजूद कुल गाडि़यों की संख्या ख्क्भ् के आसपास है। जबकि, चुनाव के लिए भ्भ्0 गाडि़यों की जरूरत है। ऐसे में गिनती के विभागों में इमरजेंसी के लिए ही व्हीकल छोड़े गए हैं, बाकी को अधिग्रहीत कर लिया गया है। हालात यह हैं कि जिस विभाग में पहले चार से पांच फोर व्हीलर होते थे वहां अब एक ही बचा है। ऐसे में ऑफिसर्स को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। जिसको लेकर आपस में खींचातानी भी मची हुई है।

सरकारी गाड़ी का क्रेज तो है

कुछ भी कहिए लेकिन सरकारी गाड़ी का अपना क्रेज होता है। ऊपर नीली बत्ती और पीछे नंबर प्लेट पर 'उत्तर प्रदेश सरकार' लिखा होना अलग ही रुतबा बढ़ाता है। यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि कई विभागों के ऑफिसर्स इनका यूज पर्सनल और परिवार के कामों के लिए भी धड़ल्ले से करते हैं। चुनाव में इन गाडि़यों का यूज सेक्टर मजिस्ट्रेट, फ्लाइंग स्क्वॉड, स्टेटिक मजिस्ट्रेट, वीडियो निगरानी टीम आदि कर रही हैं। हालांकि गाडि़यों के अधिग्रहण किए जाने का एक फायदा पब्लिक को पहुंचा है, ऑफिसर्स आसानी से उन्हें ऑफिस में ही मिल जाते हैं, बशर्ते उन्हें चुनाव में इंगेज नहीं किया गया हो।

ट्रांसपोर्टर्स और ट्रेवल एजेंसीज की सांस फूली

केवल सरकारी विभाग ही नहीं, वाहन अधिग्रहण से प्राइवेट ट्रांसपोर्टर्स और ट्रेवल एजेंसीज के भी हाथ-पांव फूल गए हैं। मैरिज सीजन होने के बावजूद उनकी गाडि़यां खींचे जाने का डर उन्हें सता रहा है। डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन ने यह जिम्मेदारी आरटीओ को सौंपी है। बता दें कि चुनाव में हल्के वाहनों के अलावा 9क्0 भारी वाहनों की भी जरूरत है। इनमें मिनी बस, रोडवेज बस, ट्रक सहित कई और गाडि़यां अधिग्रहण की जानी है। हल्के वाहन जहां लिए जा चुके हैं वहीं भारी वाहनों की डिमांड जरूरत के हिसाब से की जाएगी। हालांकि प्राइवेट कंसर्न अपने वाहन नहीं देना चाहता लेकिन चुनाव आयोग के आगे उनकी एक नहीं चलने वाली है।

निर्धारित दरें और पेमेंट देरी से

अधिग्रहीत की जाने वाली गाडि़यों को डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन फ्री में नहीं लेगा। बकायदा इनका पेमेंट दिया जाएगा। जिसकी दरें चुनाव आयोग ने पहले से निर्धारित कर रखी हैं। बावजूद इसके प्राइवेट कंसर्न पीछे हट जाते हैं। उनका कहना है कि इनका पेमेंट काफी लेट होता है, जिसकी वजह से काफी घाटा होता है। इसके मुकाबले प्राइवेट बुकिंग में कहीं ज्यादा पैसा मिलता है। पुलिस बल और मतदान कर्मियों को ले जाने के लिए रोडवेज बसें भी अधिग्रहीत की जानी हैं।

-चुनाव की जरूरत के चलते सभी सरकारी विभाग के वाहन अधिग्रहीत कर लिए गए हैं। जहां इमरजेंसी सुविधाएं हैं, वहां कुछ वाहन छोड़ दिए गए हैं। फिलहाल चुनाव ज्यादा इम्पार्टेट है और इसके लिए प्राइवेट सेक्टर के वाहन भी लिए जा रहे हैं।

मानवेंद्र सिंह, सिटी मजिस्ट्रेट