इटावा में हुआ था जन्म

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AGRA : गोपालदास सक्सेना 'नीरज' का जन्म चार जनवरी 1925 को इटावा जिले के पुरावली गांव में बाबू ब्रज किशोर सक्सेना के यहां हुआ था। छह वर्ष की आयु में पिता उनका साथ छोड़ गए। पिता की मौत के बाद 1942 में एटा से हाईस्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। इसके बाद इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया। फिर सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। यहां से दिल्ली जाकर एक विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। वहां से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डीएवी कॉलेज में क्लर्की की। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पांच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया। नौकरी के साथ प्राइवेट परीक्षाएं देकर 1949 में इंटरमीडिएट, 1951 में बीए और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एमए किया। मेरठ कॉलेज में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया। बाद में उन्होंने स्वयं ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गए। मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे।

मुम्बई की ओर किया रुख

कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को मुम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में 'नई उमर की नई फसल' के गीत लिखने का निमंत्रण दिया। पहली ही फिल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे 'कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे, देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूर्त निकल जाएगा बेहद लोकप्रिय हुए, जिसका परिणाम यह हुआ कि वे मुम्बई में रहकर फिल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वषरें तक जारी रहा। मायानगरी मुम्बई की जिन्दगी से भी उनका मन बहुत जल्द उचट गया। वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आए।