कानपुर। 18 जनवरी 1972 को मुंबई में जन्में विनोद कांबली ने जब क्रिकेट खेलना शुरु किया तो उनकी तुलना सचिन तेंदुलकर से होती थी। सचिन और कांबली के गुरु एक ही थे, आचरेकर सर। कोच आचरेकर ने जितने गुर सचिन को दिए उतने ही कांबली को, मगर तेंदुलकर क्रिकेट के भगवान बन गए वहीं कांबली गुमनामी में खो गए। कांबली ने अपने इंटरनेशनल करियर का आगाज काफी शानदार तरीके से किया था, मगर विवादों के चलते उनका करियर लंबा नहीं खिंच सका। खैर कांबली और सचिन की बचपन में कई खट्टी-मीठी यादें रही हैं। आइए उन यादों का याद करते हैं।

हैप्पी बर्थडे विनोद कांबली : मैदान में बैटिंग के दौरान उडा़या करते थे पंतग,नहीं मानते थे सचिन की बात

बल्ला छोड़ उड़ाने लगे पतंग

सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली मुंबई में रहा करते थे। दोनों ने यहीं से क्रिकेट की एबीसीडी सीखनी शुरु की। आचरेकर सर के पास ये दोनों सुबह-सुबह ट्रेनिंग लेने जाया करते थे। फिर दिनभर मैच खेलना और शरारत करना इनकी आदतों में शुमार हो गया। सचिन तेंदुलकर ने अपनी किताब 'प्लेइंब इट माॅय वे' में कांबली की कई शरारतों का जिक्र किया है। सचिन लिखते हैं, कांबली हमेशा से फनी रहे हैं। वह किस पल क्या कर देंगे किसी को नहीं पता होता था। एक बार कांबली और मैं घरेलू मैच में बैटिंग कर रहे थे। तभी अचानक एक पतंग उड़ती हुई मैदान में आ गई जब तक उस पंतग को बाहर निकाला जाता वह कांबली के हाथों में आ चुकी थी। फिर क्या कांबली बैटिंग छोड़ पतंग उड़ाने में मशगूल हो गए। कांबली क्रीज से लगभग 20 मीटर दूर चले गए, डोर उनके हाथ में थी और पारी बीच में रुक गई। यह कांबली के जीने का तरीका था जिसे मैं भी नहीं बदल सका।'

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कोच आचरेकर ने लगाई क्लाॅस

सचिन आगे लिखते हैं, 'कांबली ने उस दिन मैदान पर ऐसा इसलिए किया क्योंकि आचरेकर सर आसपास कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। मगर मुझे अंदर से महसूस हो रहा था कि विनोद की यह हरकत आचरेकर सर ने कहीं न कहीं से देख ली होगी और दिन का खेल खत्म होने के बाद शाम को डांट जरूर पड़ेगी।' तेंदुलकर की मानें तो, आचरेकर सर उनके एक भी मैच मिस नहीं करते थे। उस दिन भी वह पेड़ के पीछे छुपकर हमारा मैच देख रहे थे और उन्होंने कांबली की शरारत भी पकड़ ली। शाम को सर ने हमारी क्लाॅस लगाई। ये क्लाॅस इसलिए होती थी कि, हमने मैच में क्या गलती की और इसमें कितना सुधार चाहिए। आचरेकर सर ने मुझे एक चिट पकड़ाई और जोर से पढ़ने को कहा। उस चिट में पहला वाक्य था 'विनोद की पतंग', सर कांबली के बीच मैच में पतंग उड़ाने से काफी नाराज थे। उन्होंने कांबली को हिदायत दी कि वह दोबारा ऐसा न करें।

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664 रन की पार्टनरशिप से खुश नहीं थे कांबली

सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली की हैरिस शील्ड ट्राॅफी के सेमीफाइनल में 664 रन की रिकाॅर्ड पार्टनरिशप के बारे में सभी जानते हैं। मगर आपको पता है कांबली इस साझेदारी को और बड़ा करना चाहते थे। सचिन ने अपनी किताब में इसका जिक्र भी किया। तेंदुलकर लिखते हैं, 'उस मैच में मैं और कांबली जब बैटिंग करने आए तब स्कोर 2 विकेट पर 84 रन था। इसके बाद हमने पूरा दिन बल्लेबाजी की। विनोद ने 182 रन बनाए और मैंने 192, अगली सुबह हम दोनों अपना-अपना दोहरा शतक लगा चुके थे। उस वक्त आचरेकर सर चाहते थे कि हम पारी घोषित कर दें। इसके लिए उन्होंने असिस्टेंट कोच को बाउंड्री लाइन पर भेजा ताकि वो हमें इशारा करके पारी घोषित करने के लिए कहे। मगर मैंने और कांबली ने सोच लिया था कि असिस्टेंट कोच की तरफ नहीं देखेंगे और हम लगातार बैटिंग करते रहे।

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सचिन से हुए थे नाराज

लंच तक हमारी टीम ने 748 रन बना लिए थे। उस वक्त मैं 326 रन पर था और कांबली 349 रन पर। अब पारी घोषित करने की बारी आ चुकी थी। आचरेकर सर ने भी आदेश दे दिया था मगर कांबली चाहते थे कि उन्हें एक गेंद और खेलने को मिल जाए ताकि वह 350 रन बना सकें। इसके बाद सचिन ने पब्लिक फोन बूथ से आचरेकर सर को फोन लगाकर पारी को आगे बढ़ाने के लिए पूछा, मगर कोच ने साफ मना कर दिया। सचिन लिखते हैं, इस बात से कांबली मुझसे काफी नाराज भी हुए।

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24 साल की उम्र में खेला आखिरी टेस्ट

स्कूल क्रिकेट के बाद सचिन और कांबली ने पहले रणजी फिर इंटरनेशनल क्रिकेट में कदम रखा। हालांकि कांबली को सचिन जितनी कामयाबी नहीं मिल पाई। क्रिकइन्फो पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, कांबली ने भारत के लिए 17 टेस्ट मैच खेले जिसमें 54.20 की औसत से 1084 रन बनाए। इस दौरान उन्होंने दो बार दोहरा शतक भी लगाया। कांबली ने अपना आखिरी टेस्ट 1995 में खेला था तब उनकी उम्र सिर्फ 24 साल थी। अब वनडे की बात करें तो कांबली के नाम 104 मैचों में 2477 रन दर्ज हैं।

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