- केयर नहीं तो होगी कम्प्लीकेशंस, गंदे पानी के कारण हो रही है गंभीर बीमारियां

- हर एक बुखार के लक्षण को जानना है जरूरी, बढ़ते-बढ़ते बन जाता है मेनिनजाइटिस

PATNA: इन दिनों बुखार तो जैसे घर-घर की बात हो गई है, लेकिन ये कॉमन कोल्ड से लेकर इंसेफलाइटिस(एईएस)तक हो सकते हैं। इन सभी के लक्षण अलग-अलग या कुछ केस में मिलते-जुलते भी हो सकते हैं। यह बातें यहां इसलिए इम्पॉर्टेट है कि इस सीजन में ऐसे पेशेंट की संख्या बहुत अधिक है। पीएमसीएच के आउटडोर में ही ख्0 से अधिक पेशेंट हर दिन आते हैं। इनमें कुछ को तो कुछ घंटों में ही छुट्टी दे दी जाती है तो ऐसे पेशेंट भी होते हैं, जिनकी कम्पलीकेशन बनी रहती है। ऐसे पेशेंट मेनिनजाइटिस के भी हो सकते हैं। सामान्य बुखार ही आगे बढ़कर मेनिनजाइटिस के रूप में सामने आता है।

हर फीवर इंसेफलाइटिस नहीं

हर बुखार इंसेफलाइटिस नहीं होता है। इन दिनों इसके पेशेंट हॉस्पीटलों में आ रहे हैं, इसलिए यह जानना जरूरी है कि इसके बारे में जानकारी होनी चाहिए। इस बारे में पीएमसीएच के पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट में प्रोफेसर डॉ निगम प्रकाश नारायण ने बताया कि यह वायरल का सीजन है और ऑब्जरबेशन में अधिकांश फीवर वायरल होते हैं। इसमें ज्यादा परेशानी की कोई बात नहीं है।

कई वायरल डिजीज हैं इस सीजन में

इन सीजन में वायरल डिजीजेज की भरमार है और इनके बेहतर केयर के बारे में जानकारी जरूरी है। ऐसा नहीं होने पर पेशेंट बहुत कमजोर पड़ सकता है या उसकी बीमारी बढ़ने से हालत और बिगड़ सकती है। इस बारे में पीएमसीएच के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ राजीव कुमार सिंह ने बताया कि जेनरल फ्लू, चिकेन पॉक्स, मिजिल्स और हरपीजोस्टर जैसे वायल से यहां पेशेंट आ रहे हैं। इसके लिए समय पर ट्रीटमेंट कराने से इसकी काम्प्लीकेशन से बचा जा सकता है। लापरवाही होने पर यह डायरिया, निमोनिया और मेनिनजाइटिस आदि के रूप में प्रॉब्लम कर सकता है। मिजिल्स और चिकेन पॉक्स में वैक्सीनेशन से ही इलाज हो जाता है, जबकि जेनरल फ्लू टेम्परेचर के फ्लक्चुएशन के समय अधिक होता है। इसमें हाई फीवर, सिर दर्द और उलटी हो सकती है। ऐसे केस में पेशेंट को लिक्विड डायट जैसे दाल, मट्ठा आदि दें।

तेज जलन-खुजली हो, तो

इस बीमारी में फेसियल नर्व के आस-पास जैसे फेस, गर्दन आदि पर यह फैलता है। इसमें तेज जलन महसूस होती है और खुजली भी। यह बच्चे और बड़े दोनों को होता है। इसे मेडिसिन से क्योर किया जाता है।

पानी ही है प्रॉब्लम

इन दिनों गंदे पानी के कारण हॉस्पीटलों में टायफाइड, गैस्ट्रोएंट्राइटिस, कोलरा और पेट की अन्य बीमारियों से दो-चार होना पड़ रहा है, इसलिए पीने का पानी बिल्कुल क्लीन हो यह तय कर लेना चाहिए।

वायरल है, तो क्या करें

वारयल के केस प्राय: अधिक समय तक नहीं रहते। अधिक से अधिक तीन-चार दिन तक रह सकता है। इन खास बातों का ध्यान देना चाहिए, तो पेशेंट जल्दी ठीक हो सकता है।

-बार-बार बॉडी को गीले कपडे़ से पोछें।

-फीवर में पारासीटामोल दिया जा सकता है।

-बच्चे को पंखे के नीचे रखें।

-इसमें एंटीबायोटिक का कोई खास रोल नहीं है।

-अगर तीन दिन तक हालत में सुधार न हो, तो डॉक्टर से तुरंत कान्टैक्ट करें।