तीने महीने से खराब पड़ा फोन

साकेत नगर में रहने वाले गौरव ने ईयर स्टार्टिंग में एक ब्रांडेड कंपनी का एंड्रॉयड फोन खरीदा था। जरूरत के अकॉर्डिंग उन्होंने उसमें नेट फैसिलिटी भी ले ली। 24 ऑवर ऑन लाइन रहना, चैटिंग और मैसेजिंग दिन का हिस्सा बन गया था। गौरव ने बताया कि इसी दौरान दिन में उनके पास अननोन नंबर से मैसेज आए। जिसे खोलने के बाद उनका फोन बंद हो गया। कंपनी के सर्विस सेंटर में कई महीनों से फोन पड़ा है। लेकिन फोन नहीं मिला है। मूलगंज निवासी राकेश शर्मा तो मोबाइल वॉयरस से काफी परेशान हैं। उनके स्मार्टफोन में वायरस के अटैक से फोनबुक के नंबर ही गायब हो गए हैं। कई बार फोन के आपरेटिंग सिस्टम में भी दिक्कत आ रही थी जिसके बाद उन्हें फोन को सर्विस सेंटर में नए साफ्टवेयर को इंस्टाल करने के लिए डालना पड़ा।

‘बैकडोर’ से ट्रांसफर हो रहा डाटा

तमाम ऐसे डेवलपर हैं, जिनका काम जासूसी या फिर दूसरों की गतिविधि पर नजर रखना होता है। कई प्रमुख वेबसाइट्स पर पब्लिश आर्टिकल्स और रिसर्च से भी इन बातों की पुष्टि हुई है। ‘सीनेट’ पर पब्लिश एक आर्टिकल के मुताबिक एंड्रॉयड फोन के सिक्योरिटी प्रोटोकाल जिसे सिक्योर सॉकेट लेयर्स (एसएसएल) और ट्रांसपोर्ट लेयर सिक्योरिटी (टीएसएल) के नाम से भी जाना जाता है, को तमाम एप्स ब्रेक कर देते हैं। इससे मोबाइल का सिक्योर्ड डाटा भी हैकर्स के लिए खुल जाता है। आईटी एक्सपर्ट अनुज त्रिवेदी बताते हैं कि कई तरह के नए ‘ट्रोजन’ वायरस एंड्रॉयड सिस्टम के लिए बना दिए गए हैं। इस वक्त स्मार्ट फोंस पर ‘मेलवेयर’ और ‘बैकडोर’ वायरस के अटैक सबसे ज्यादा हो रहे हैं। मेलवेयर के अन्तर्गत ही स्पाईवेयर और कई अन्य वायरस शामिल हैं, जो मोबाइल पर अटैक करके उसका डाटा चोरी कर लेते हैं और बहुत हद तक डाटा को ऑटोमैटिकली डिलीट भी कर देते हैं।

चुकानी पड़ेगी ‘आजादी’ की कीमत !

एंड्रॉइड सॉफ्टवेयर के ‘ओपन सोर्स’ होने की वजह से इस वायरस के जरिए हैकर्स आपका पर्सनल डाटा जैसे फोटो, वीडियो, कान्टेक्ट्स और तमाम कान्फीडेंशियल डाटा एक्सेस करके चुरा सकते हैं। इसपर पेड या फ्री एप्लीकेशन डाउनलोडिंग की फैसेलिटी के चलते यह ऑपरेटिंग सिस्टम बहुत पसंद भी किए जा रहे हैं। क्योंकि इसमें जबर्दस्त फ्लेग्जिबिलिटी और आजादी मिलती है। लेकिन तकनीकि जानकारों और तमाम वेबसाइट्स की मानें तो गूगल द्वारा लांच इस प्रोडक्ट में कुछ खामियां भी हैं, जिनमें प्राइवेसी इश्यू सबसे बड़ा है।

‘ओपन सोर्स’ होने से मुसीबत

आईटी एक्सपर्ट मनीष अरोड़ा ने बताया कि गूगल के इस प्रोडक्ट के ‘ओपन सोर्स’ होने से एप्लीकेशन को डेवलप करके ऑनलाइन मार्केट ‘प्ले स्टोर’ में डाला जा सकता है। हर डेवलपर के एप्स को स्मार्ट फोंस में इंस्टॉल करने के लिए वह यूजर से कई तरह की परमीशन मांगता है। एप्स के यूज करने के लिए यूजर आमतौर पर परमिशन में लिखी बातों को नजरअंदाज करके ओके कर देते हैं। जिसके बाद परेशानी शुरू हो जाती है।

सर्विस सेंटर्स में ऐसे फोन की भरमार

सिटी में कम्पनी के सर्विस सेंटर हों या प्राइवेट सर्विस सेंटर सभी जगह साफ्टवेयर के डिस्ट्रॉव होने के बाद बनने आए फोन की भरमार है। गोविंद नगर के एक मोबाइल रिपेयरिंग सेंटर के ओनर्स मनीष लखोटिया ने बताया कि मेरे पास कई ऐसे हैंडसेट बनने आए हैं जिसमें लोग ये शिकायत लेकर आए हैं कि मैसेज आने के बाद फोन हैंग हुआ और फिर बंद हो गया। वारंटी निकलने के बाद अब लोगों को बाहर पैसे खर्च कर साफ्टवेयर चेंज कराना पड़ रहा है। इसी तरह कई और सर्विस सेंटर में वायरस के अटैक से खराब हो रहे फोन की भरमार है।

ऐसे करें वायरस अटैक से प्रोटेक्शन

- अपने फोन में एंटीवायरस डाउनलोड करें

- आप हमेशा ब्रांडेड मोबाइल को ही चूज करें जिसका आईएमईआई नंबर हो।

 - मोबाइल फोन में एंटी वायरस को डाउनलोड करें उसके बाद मोबाइल को स्कैन जरूर करें। जिससे वायरस की प्रॉब्लम दूर हो सकेगी।

- मोबाइल फोन में ब्लूटूथ अननोन अप्लीकेशन के साथ वॉयरस को अब्जर्व करता है। इसलिए जरूरत पडऩे पर ही जब ब्लूट्यूथ को यूज करें। बिना जरूरत के उसे टर्नऑफ ही रखें।

कैसे बचें-

-ऑथराइज्ड प्ले स्टोर से ही एप्लीकेशन डाउनलोड करें।

-एप्लीकेशन डाउनलोड करते वक्त टर्म एंड कंडीशन व प्राइवेसी को ध्यान से पढ़ लेना चाहिए।

-एप्लीकेशन को इंस्टॉल करते वक्त फोन बुक और लोकेशन एक्सेस करने के लिए एक मैसेज आता है, इसमें दो ऑप्शन होते हैं, एलॉउ और डोंट एलॉउ। आपको डोंट एलॉउ पर क्लिक करना चाहिए।

-स्मार्ट फोंस की सिक्योरिटी सेटिंग्स में एक ऐसी सेटिंग होती है, जिसे एक्टीवेट करने के बाद वो आपके फोन को अनट्रस्टेड सोर्सेज से एप्लीकेशन को इंस्टॉल नहीं करने देती है।

-अपने स्मार्ट फोन में हमेशा लॉक कोड इनेबिल्ड करके रखें।

-अपने एंड्रॉयड फोन का रूट ब्रेक या जेल ब्रेक न कराएं

- एंटीवायरस को समय से अपडेट कर लें।

ये हैं खतरे-

-मोबाइल में सेव डॉक्यूमेंट एक्सेस होने की संभावना

-ऑनलाइन फंड ट्रांजेक्शन में सिक्योरिटी का खतरा

-आपकी लोकेशन की जानकारी किसी दूसरे को हो सकती है

-ब्लू-टूथ ऑन होने पर नजदीकी फोन यूजर्स तक आपके फोन की जानकारी पहुंच सकती है

ये वॉयरस करते हैं अटैक

Cabir ये मोबाइल के ऑपरेटिंग सिस्टम पर इफेक्ट करता है। ये सबसे पहले जून 2004 में आइडेंटीफाइ हुआ था जब एक फोन के मैसेज पर इफेक्ट हुआ था और उस फोन की डिस्प्ले में 'ष्Caribe' शो हो रहा था।

DUTS: ये वायरस पैरासिटिक फाइल पर इफेक्ट करता है। खास बात ये है कि 4096 बाइट तक की ईएक्सई फाइल को ये इफेक्ट कर सकता है।

SKULLS: ये वायरस अटैक करने के बाद आपके फोन के डेस्कटॉप के आईकॉन और इमेजेस को कंकाल हड्डी के आइकन में बदल देता है। इसके साथ सभी फाइल, एमएमएस और एमएमएस को भी यूजलेस कर देता है।

Commworrior: ये सबसे पहले 2005 में फाउंड हुआ था। एमएमएस और ब्लूटूथ के थ्रू ये मोबाइल के ऑपरेटिंग सिस्टम में एंट्री कर फाइल को इफेक्ट करता है।

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इस बॉक्स को चार्ट के साथ लगा सकते हैं।

कैसपर्सकी की हैकर्स टीम के मुताबिक मोबाइल पर जिन प्लेटफाम्र्स का सबसे ज्यादा यूज हो रहा है, उन्हीं पर वायरस का अटैक सबसे ज्यादा है। इन प्लेटफाम्र्स का यूज करने वालों के लिए ये वायरस बहुत खतरनाक है। मोबाइल डिवाइस पर इंस्टॉल डाटा बिना जानकारी के ही किसी अननोन नंबर पर एसएमएस के माध्यम से पहुंचने लगते हैं। इसके अलावा ब्लूटूथ के माध्यम से भी इम्पार्टेंट डाटा नजदीकी मोबाइलों पर पहुंच जाता है।