- वाईवैक्स पैरासाइड के प्रभाव को कम करने के लिए दी जाने वाली क्लोरोक्वीन दवा हुई बेअसर

-पैल्सीफेरम पैरासाइड का असर कम, पी वाईवैक्स पैरासाइड हुआ म्यूटेट, पैथोलॉजी डिपार्टमेंट ने चेताया

KANPUR: बारिश के साथ मच्छरों का प्रकोप शहर में बढ़ने लगा है। वेक्टर बार्न डिसीज में बेहद खतरनाक माने जाने वाला वाईवैक्स पैरासाइड इस बार म्यूटेट हो गया है। जिसकी वजह से इसके इलाज में दी जाने वाली कई जरूरी दवाइयां मरीजों पर बेअसर हो रही हैं। जिन मच्छरों के जरिए यह पैरासाइड फैलता है। उन पर मॉस्कीटो क्वाइल भी असर नहीं कर रही। क्योंकि मच्छरों ने इनके प्रति रजिस्टेंस पॉवर डेवलप कर ली है। एलएलआर हॉस्पिटल की ही ओपीडी में रोज इससे पीडि़त 20 से 25 पेशेंट्स पहुंच रहे हैं। जिनके इलाज के लिए डॉक्टर्स को बिल्कुल नई लाइन ऑफ ट्रीटमेंट प्रयोग करनी पड़ रही है।

कई सालों बाद असर बढ़ा

दरअसल मलेरिया फैलाने में पैल्सीफेरम और वाईवैक्स पैरासाइड सबसे अहम होते हैं। पैल्सीफेरम जिसे खूनी मलेरिया भी कहते हैं। इसका असर तीन चार साल पहले तक था। और इससे पीडि़त पेशेंट्स ज्यादा आते थे, लेकिन अब वाईवैक्स पैरासाइड का असर काफी ज्यादा है। जिला महामारी वैज्ञानिक डॉ.देव सिंह की मानें तो कई सालों बाद वाईवैक्स पैरासाइड का इतना असर दिख रहा है। इस पैरासाइड के ज्यादा असरदार होने की एक वजह एंटीबायोटिक दवाओं का अंधाधुंध प्रयोग भी है। जिसकी वजह से मरीजों को इलाज के दौरान दी जाने वाली कई दवाएं बेअसर साबित हो रही हैं।

मच्छरों से फैला रहे पैरासाइड

वाईवैक्स पैरासाइड मच्छरों से ही फैलता है। बारिश रुकने के साथ ही जलभराव की वजह से मच्छरों का प्रकोप लगातार बढ़ा है। ऐसे में मादा एनोफिलीज मच्छर भी तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके लार्वा पानी में 30 से 35 दिन तक जिंदा रहते हैं। ऐसे में इनमें ज्यादा प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है। क्वायल इत्यादि का असर नहीं होने से मच्छरदानी का प्रयोग करना ज्यादा असरदार होगा। मालूम हो कि इस साल अभी तक 86 मरीजों को मलेरिया की पुष्टि हुई है। इनमें से ज्यादातर वाईवैक्स पैरासाइड से पीडि़त ही हैं।

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86 मरीजों को मलेरिया की पुष्टि इस साल अभी तक

20 से 25 पेशेंट्स रोजाना पहुंच रहे हैं हैलट ओपीडी

30 से 35 दिन जिंदा रहते हैं मादा एनाफिलीज के लावार्

वर्जन-

पैरसाइड और वायरस समय समय पर म्यूटेट होते रहते हैं। साथ ही इनमें प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। जांचों में यह साफ होता है। इसी के मुताबिक जनरल प्रैक्सिनर्स को लाइन ऑफ ट्रीटमेंट तय करनी होती है।

- प्रो। महेंद्र सिंह, एचओडी,पैथोलॉजी डिपार्टमेंट,जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज