तीन हजार से ऊपर मूर्तियां विसर्जित

यमुना में तीन दिन में लगभग तीन हजार से ऊपर देवी मां की मूर्तियां हाथी घाट और कैलाश घाट पर विसर्जित की गईं। अकेले कैलाश घाट पर लगभग 1,600 मूर्तियां विसर्जित की गईं, जबकि हाथी घाट पर 1,400 के करीब मूर्तियां विसर्जित की गईं।

सरकारी आंकड़ा 850 मूर्तियां

प्रशासन की माने तो दोनों कुंडों में टोटल 850 मूर्तियां ही विसर्जित की गई हैं। नेक्स्ट ईयर अपनी इस कमी को पूरा करने के लिए निगम के आला अधिकारियों ने कमर कस ली है।

प्रशासन ने नहीं की परवाह

इस साल खोदे गए कुंड की कितनी गहराई करनी है, प्रशासन को इसका आंकलन नहीं किया। आनन-फानन में कुंड तो खुदवा दिया लेकिन इससे श्रद्धालुओं की भावनाएं कितनी आहत होंगी यह नहीं सोचा।

रजसा शुद्धते नारी, नदी वेगेन शुद्धते

भागवत भूषण पंडित विष्णु प्रसाद शास्त्री ने बताया कि वेग से बहती हुई नदी ही पवित्र मानी जाती है। रुके हुए पानी में मूर्ति विसर्जन करना शुद्ध नहीं माना जाता। मां तो पवित्र जल में स्नान करने के बाद ही प्रसन्न होती हैं और श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देती हैं।

एक इलाके से एक मूर्ति जाए

यमुना को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए एक इलाके से एक मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करने से पॉल्यूशन काफी कम हो सकता है। निगम के आला अधिकारियों को लोगों को इस ओर लोगों को अवेयर करने के प्रयास करना चाहिए ताकि मूतियां कम बन सकें।

राकेश वर्मा, हाथरस

मूर्ति विसर्जन के लिए आगरा से उपर्युक्त कोई स्थान नहीं है। यहां प्रशासन को मूर्ति विसर्जन के लिए उत्तम कुंड की व्यवस्था कराई जानी चाहिए ताकि श्रद्धालुओं की भावना आहत न हो और मूर्ति विसर्जन करने का लाभ भी प्राप्त हो।

राजेश कुमार, हाथरस

यमुना मैय्या में मूर्ति डालने से यमुना दूषित हो रही हैं, यह सब जानते हैं लेकिन क्या करें बिना विसर्जन किए उसका पुण्य भी प्राप्त तो नहीं होता। मजबूरी में यमुना मैय्या में मूर्तियों को विसर्जित किया गया है, यदि अच्छे कुंड की व्यवस्था होती तो यमुना में मूर्तियों को विसर्जित नहीं करते।

अमित कुमार प्रभाकर, आगरा

हाथी घाट पर बनाए गए कुंड की स्थिति देखकर मन में खिन्नता पैदा हो गई। नौ दिन तक जिस मां की स्तुति की उसकी बेकदरी होते देखा नहीं गया।

रमेश चन्द, कैलाश आगरा

प्रशासन को मूर्ति विसर्जन के लिए विशेष इंतजाम करने चाहिए थे। यमुना को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए प्रशासन द्वारा उठाया गया कदम प्रशंसनीय है लेकिन जो आकार कुंड को दिया गया, वह ठीक नहीं था।

पं। मनीष मोहन शर्मा

पहले पूजा पाठ समुद्र के किनारे बैठकर किया जाता था, ऐसा मानना है कि देवी सात समुद्र पार करके अपने भक्तों पर कृपा करने के लिए आती हैं। जब देवी जाएंगी ही नहीं तो अगले साल उनको बुलाया कैसे जाएगा। इसलिए जिसको बुलाया गया है उसे वापस भेजने के लिए बहती हुई नदी में मूर्ति विसर्जित करनी चाहिए।

पं। हरीशंकर शर्मा

एक स्थान पर मूर्ति डालने से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी नहीं होती। पूजन करने के बाद माता को बहती हुई नदियों में विसर्जित करना चाहिए। गंगा और यमुना को पवित्र नदी के रूप में जाना जाता है। यमुना को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए सभी श्रद्धालुओं को एकजुट होकर कड़े कदम उठाने होंगे।

केपी त्रिपाठी, अपर नगर आयुक्त

निगम इस बात का ख्याल रखेगा कि किसी भी श्रद्धालु की भावना आहत न हो, यह पहली बार कुंड बनाने का प्रयास किया गया जो भी कमी रह गई उसे नेक्स्ट इयर पूरा किया जाएगा।

राजीव कुमार राठी, अधिशासी अभियंता पर्यावरण

यह निगम की पहल थी, पहली बार मूर्ति विसर्जन के लिए ऐसा कुंड बनाया गया था। जानकारी नहीं थी कि इतनी भारी तादाद में मूर्तियां विसर्जन के लिए आएंगी। नेक्स्ट ईयर ऐसे स्थान जहां मूर्तियां विसर्जित की जाएंगी वहां गहरे और चाक चौबंद कुंड की व्यवस्था होगी। जिसमें तकरीबन 4 फीट तक पानी भरा हुआ होगा.