इंप्लांट प्राइस कैपिंग के बाद मरीजों से अलग से वसूले जा रहे हैं पैसे

कम नहीं हुआ है नी रिप्लेसमेंट का प्राइज, एक दाम में बिक रहे देशी और विदेशी इम्प्लांट

ALLAHABAD: केंद्र सरकार द्वारा नी रिप्लेसमेंट की प्राइस कैपिंग किए जाने के बावजूद लूट जारी है। हॉस्पिटल्स ने पैकेज का रेट से पहले से अधिक कर दिया है। मरीजों से दूसरी चीजों के नाम पर भी पैसे लिए जा रहे हैं। कुल मिलाकर नी रिप्लेसमेंट के दाम कम किए जाने के बाद भी मरीजों को बहुत अधिक फायदा नही पहुंच रहा है। ले-देकर उनको पहले जैसी कीमत ही चुकानी पड़ रही है।

कमीशन कम होने से बदला रुख

ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि प्राइस कैपिंग के बाद इम्प्लांट सप्लाई करने वाली कंपनियों ने डॉक्टरों का कमीशन कम कर दिया है। ऐसे में अपना प्रॉफिट बरकरार रखने के लिए जहां नी रिप्लेसमेंट का पैकेज 20 हजार तक बढ़ा दिया है। बताया तो यह भी जा रहा है कि यहां देशी और विदेशी इम्प्लांट के रेट भी लगभग बराबर कर दिए हैं। अगर मरीज देशी इम्प्लांट लगवाता है तो डॉक्टर को अधिक फायदा होता है।

25 से 50 हजार का फायदा

शहर में कई आर्थोपेडिक सर्जन हैं जो नी रिप्लेसमेंट कर रहे हैं। ऐसे ही एक सर्जन ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि सरकार द्वारा दाम पर लगाम लगाने के बाद भी मरीजों को अधिक फायदा नहीं हुआ है। महज 25 से 50 हजार रुपए का फर्क पड़ा है। जबकि, उनको इससे अधिक का मार्जिन नी रिप्लेसमेंट में मिलना चाहिए था। पहले जहां एक घुटने का रिप्लेसमेंट दो से ढाई लाख में होता था, वह अब इससे 20 से 30 हजार कम में हो रहा है। इंप्लांट का खर्च कम होने पर बाकी खर्च वसूले जाते हैं। कंपनियां भी पहले की अपेक्षा अब क्वॉलिटी सहित सपोर्टिग चीजों में कटौती कर रही हैं।

यहां पर भी हो रहा है खेल

सोर्सेज बताते हैं कि कंपनियां इंप्लांट के साथ-साथ कोन, सीमेंट, स्क्रू आदि फ्री में देती थीं, लेकिन अब इनका दाम बढ़ गया है। कंपनियों ने दूसरे सामान और प्रॉडक्ट्स के रेट भी बढ़ा दिए हैं। पहले सीमेंट के 3 हजार लगते थे। अब कंपनियां सीमेंट नहीं देना चाहती हैं। ऐसा होने से क्वॉलिटी पर असर पड़ने का खतरा बढ़ने लगा है। इससे डॉक्टर भी डरे हुए हैं। उधर डॉक्टर्स का कहना है कि मरीजों का कंफ्यूजन बना हुआ है। उन्हें इससे मतलब नहीं कि अलग-अलग पार्ट में इंप्लांट होता है और तीनों का रेट अलग है। मरीज कहते हैं कि सरकार ने प्राइस कैपिंग की है तो इसका फायदा देना होगा।

फैक्ट फाइल

-अगस्त में केंद्र सरकार ने नी रिप्लेसमेंट इम्प्लांट के दाम 70 फीसदी कम करने के आदेश दिए थे।

-बावजूद इसके रिप्लेसमेंट के दाम नहरीं हुए हैं कम।

-देशी और विदेशी इम्प्लांट को एक ही दाम में बेचा जा रहा।

-डॉक्टर्स प्राइस कैपिंग से सहमत नहीं हैं, वह इसे कई स्लैब में चाहते हैं।

-प्राइस कैपिंग के बाद देशी इम्प्लांट के दाम 40 से 50 फीसदी तक बढ़ गए हैं।

प्राइस कैपिंग से समस्या दूर नहीं होने वाली है। अगर इम्प्लांट को आम जनता के लिए फायदेमंद बनाना है तो इनके दाम फिक्स कर देने चाहिए। यह कदम जनता के दृष्टिकोण से बेहतर होगा।

-डॉ। जितेंद्र जैन, आर्थोपेडिक सर्जन

कंपनियों पर लगाम लगाना इतना आसान नही है। अगर इंप्लांट में होने वाली मनमानी को रोकना है तो जनता को भी जागरुक होना होगा। उन्हें भी इंप्लांट की कीमत और क्वालिटी की जानकारी रखनी होगी।

-डॉ। एपी सिंह, आर्थोपेडिक सर्जन