-पहाड़ से उतरते ही सिमट गया गंगा का दायरा

-बिजनौर तक पहुंचते-पहुंचते रह गया मात्र एक हजार क्यूसेक पानी

-सबसे ज्यादा घडि़याल, डॉल्फिन पर मंडरा रहा खतरा

-पहाड़ों में सूखा बना बड़ा कारण

>DEHRADUN:

पहाड़ों में सूखे का असर गंगा पर भी पड़ रहा है। गंगा में जहां जलस्तर पिछले पांच साल के स्तर से नीचे चला गया है, वहीं इस सूखे से गंगा की जैव विविधता पर संकट गहरा रहा है। सबसे ज्यादा संकट पहाड़ी क्षेत्र से नीचे मैदान में घडि़याल, डॉल्फिन को है। जिसे लेकर उनके संरक्षण पर काम कर रही संस्थाएं चिंता जाहिर कर चुकी हैं।

पहाड़ों पर सूख हो चुका घोषित

इस साल उत्तराखंड में पहाड़ी जिलों में सूखा घोषित हो चुका है। चमोली, टिहरी, रुद्रप्रयाग, पौड़ी, उत्तरकाशी में पहले ही सूखे के हालात हैं। यह वहीं जिले हैं, जिनसे होकर गंगा मैदानी इलाकों तक पहुंचती है। ऐसे में इन जिलों में सूखा होने से गंगा में पानी की कमी हाे गई है।

जलस्तर कम होने से अाई समस्याएं

गंगा में जलस्तर कम होने से सबसे बड़ा खतरा जैव विविधता को है। गंगा के जल में सैकड़ों, हजारों किस्म के जलीय जीव रहते हैं, जो गंगा को स्वच्छ रखने में मदद करते हैं। इन्हें गंगा का प्राकृतिक सफाईकर्मी भी कहा गया है। वहीं दूसरी ओर जल स्तर कम होने से सबसे पहले मछलियों की संख्या घटेगी। इससे कछुओं की प्रजातियों पर बुरा असर पडे़गा।

घडि़याल संरक्षण प्रोजेक्ट को लग सकता है ग्रहण

गंगा में जलस्तर पिछले छह सालों के निचले स्तर पर है। गंगा को साफ-स्वच्छ रखने के लिए डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने बिजनौर बैराज से नीचे करीब भ्00 घडि़याल छोडे़ हैं। इनमें से कुछ घडि़याल पांच साल से ज्यादा की उम्र के हो चुके हैं, वहीं कुछ अभी छोटे हैं। जलस्तर घटने से गंगा में इनके लिए भोजन भी घट जाएगा, जिससे इनके संरक्षण और संख्या पर बुरा असर पड़ सकता है। इस पर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने चिंता जाहिर कर चुका है। वहीं दूसरी ओर गंगा में फ्00 डॉल्फिन हैं, जो इस समय खतरे में हैं।

गंगा पर निर्भर हजारों किसान

गंगा के आसपास खेती करने वाले किसानों की संख्या हजारों में है। वहीं गंगा से निकलने वाली सहायक नदियों के सहारे खेतों की सिंचाई करते हैं। ऐसे में गंगा में जल कम होने से खेती भी सूखे की चपेट में अा रही है।

मैदान में डुबकी लगाने तक नहीं जलस्तर

ऋषिकेश से गंगा में एक हजार क्यूसेक से कम ही पानी छोड़ा जा रहा है। जिससे हरिद्वार में तो थोड़ा स्तर नजर आता है, लेकिन मैदान तक पहुंचते-पहुंचते यह डुबकी लगाने लायक भी नहीं है। सहायक नदियों से मिलकर बिजनौर बैराज पर मात्र क्ख्00 क्यूसेक पानी रह गया है। वहीं पिछले साल की बात करें तो क्7 अप्रैलक्भ् को गंगा का जलस्तर बिजनौर बैराज पर क्ब् हजार क्यूसेक था।

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पूरे साल गंगा में जलस्तर बनाए रखने के लिए गंगा वाटिका लगाने, पौधारोपण कराने सहित कई प्रयास चल रहे हैं, लेकिन इसका असर कुछ समय बाद आएगा। इस वर्ष की बात करें तो पहाड़ों में सूखे के कारण जलस्तर कम होने की स्थिति बन रही है।

--एसपी सुबुद्धि, वन संरक्षक, भगीरथी वृत, उत्तराखंड