RANCHI: राजधानी की आधी आबादी पानी के लिए परेशान है। शहर की बात की जाए तो पिछले एक दशक से पानी की समस्या जस की तस बनी हुई है। आधी से ज्यादा आबादी को एक दिन में मुश्किल से एक बार ही पानी मिल पा रहा है। सिटी के लोग बदबूदार और लाल रंग के पानी को पीने के लिए मजबूर हैं। आधी रांची ड्राई जोन हो चुकी है। लेकिन इस समस्या का अब तक कोई हल नहीं निकला है। सरकार लोगों को शुद्ध पानी पिलाने के लिए पाइपलाइन बिछाने की योजना पर पांच साल पहले काम शुरू की थी, जो अब तक पूरी नहीं हो सकी है।

45 परसेंट लोगों को पानी नहीं

राजधानी रांची को हर दिन करीब 87 एमजीडी पानी की जरूरत है जबकि सप्लाई मात्र 51 एमजीडी की हो पाती है। रूक्का डैम से एक दिन में 30 एमजीडी , गोन्दा डैम से 4 एमजीडी तो हटिया डैम से 10 एमजीडी पानी की आपूर्ति की जाती है। मतलब साफ है कि करीब 45 पर्सेट लोगों को विभिन्न स्रोतों से पानी की व्यवस्था करनी होती है।

4 मीटर गिरा ग्राउंड वाटर लेबल

पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के आंकड़े बताते हैं कि राजधानी रांची के शहरी क्षेत्र का ग्राउंड वाटर लेबल चार मीटर तक गिरा है। जिनके यहां बोरिंग है उन्हें हर गर्मी में बोरिंग फेल होने का डर बना रहता है। किशोरगंज, न्यू मधुकम, मधुकम, सुखदेव नगर, मोरहाबादी, आनंद नगर सहित कई ऐसे इलाके हैं, जहां वाटर लेबल 300 फीट के पार चला गया है। वहीं हार्वेस्टिंग के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है। निगम में रजिस्टर्ड कुल 1 लाख 58 हजार घरों में से मात्र 11 हजार 200 घरों में ही हार्वेस्टिंग सिस्टम डेवलप किया गया है।

शहर की प्यास बुझाने को चाहिए 61 जलमीनार

नगर विकास विभाग ने शहर में पानी सप्लाई की कार्ययोजना बनाने के लिए जुडको को अधिकृत किया था। जुडको ने जो डीपीआर तैयार की थी उसके हिसाब से शहर को कम से कम 4 लाख 51 हजार 470 किलोलीटर पानी की जरूरत है। इसके लिए शहर में कम से कम 61 जलमीनारों की जरूरत है। लेकिन वर्तमान में सिर्फ 24 जलमीनारें ही हैं, जिनसे शहर की 40 फीसदी आबादी को ही करीब 1 लाख 71 हजार किलोलीटर वाटर की सप्लाई हो पा रही है।

इन इलाकों में नहीं मिल रहा समय पर पानी

पानी की समस्या से जूझ रहे क्षेत्रों में बूटी, बरियातू, विकास, दीपा टोली, कोकर, मोरहाबादी, करमटोली, मेन रोड, हिंदपीढ़ी, चुटिया, डोरंडा, हरमू, विद्यानगर और रातू रोड के तमाम क्षेत्र शामिल हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र हिंदपीढ़ी और रातू रोड हैं। इन इलाकों के लोग पूरी तरह सप्लाई पानी पर ही निर्भर हैं। चापाकल और नगर निगम की टंकियों के ना होने से स्थिति और भी गंभीर हो गई। खासकर गर्मियों के मौसम में पानी की किल्लत से ये इलाके बुरी तरह से प्रभावित हो जाते हैं।

रिचार्ज जोन एरिया में कंस्ट्रक्शन से बढ़ी परेशानी- नीतीश प्रियदर्शी

प्रसिद्ध भू-गर्भ शास्त्री नीतीश प्रियदर्शी का कहना है कि शहर में अंधाधुंध कंस्ट्रक्शन जिस प्रकार हो रहा है, उससे पानी की समस्या और ज्यादा उत्पन्न होगी। सिटी के रिचार्ज जोन एरिया में इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। तालाबों और नदियों के किनारे बन रही इमारतों से बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। कई तालाब खत्म हो गए, नदियों का अस्तित्व खतरे में हैं। वहीं बारिश भी समय पर नहीं होती है। पहले जहां मई महीने से वाटर लेबल नीचे जाता था वहीं अब जनवरी-फरवरी माह से ही वाटर लेबल नीचे की ओर खिसकने लगा है। चूंकि रांची हार्ड रॉक जोन है, पानी पत्थरों की दरारों के बीच मिलता है, लोग जहां-तहां बोरिंग कर देते हैं और वाटर लेबल कहीं दूसरी स्थान पर चला जाता है। प्रियदर्शी का कहना है कि दो चापानलों के बीच कम से कम 200 फीट की दूरी होनी चाहिए। लेकिन सिटी में 20-20 फीट की दूरी पर बोरिंग हो रही हैं, जो घातक हैं। लोग खुली जगहों को कंक्रीट से ढक रहे हैं और हर बारिश में करीब 60 फीसदी पानी बह जाता है। जल संचयन की व्यवस्था नहीं है।

वर्जन

अभी तो पानी की किल्लत नहीं है, लेकिन आगे गर्मी के मौसम में पानी की किल्लत न हो, इसके लिए पहले से ही इंतजाम किए जाएंगे। वाटर सप्लाई की अगर बात करें, तो पाइपलाइन से अगले साल गर्मियों के पहले शुरू होने की उम्मीद है।

-संजीव विजयवर्गीय, डिप्टी मेयर, आरएमसी

निगम के पास अपना मैकेनिज्म सिस्टम नहीं है, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग का ही मैकेनिज्म काम करता है। लोगों द्वारा वाटर हार्वेंिस्टंग सिस्टम डेवलप करने का काम किया जा रहा है और इसमें लोगों ने दिलचस्पी भी दिखाई है। चुनौतियां कठिन हैं लेकिन नामुमकिन नहीं है। लोगों का सहयोग मिले तो इस परेशानी से निजात मिल सकती है।

- संजय कुमार, उप नगर आयुक्त, रांची नगर निगम

क्या कहती है पब्लिक

पानी की स्थिति बहुत खराब है, वाटर लेबल नीचे जाने से यह समस्या और भी विकराल रूप ले चुकी है।

- राहुल शर्मा

लोगों की प्यास बुझाने के लिए नगर निगम की ओर से प्रयास गर्मियों में नाकाफी साबित होते रहे हैं। पहले से गर्मियों को लेकर तैयारी करने की जरूरत है।

- श्रवण पाठक

हर दो साल में बोरिंग सूख रही है, वाटर हार्वेस्टिंग की घरों में व्यवस्था नहीं है। नगर निगम की ओर से किए गए प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं।

-अनूप राज