छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र: लौहनगरी के साथ ही देश भर में पानी की कमी से जूझ रहे लोगों के सामने वाटर हार्वेस्टिंग ही एक मात्र विकल्प है। आज चेते तो भविष्य में पानी के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। साउथ अफ्रीका के केपटाउन में पानी की कमी के चलते लोगों को बाल्टी लेकर सड़क पर आना पड़ा था। अगर आप चाहते हैं कि शहर को इस इस क्राइसिस से नहीं जूझना पड़े तो हमें अभी से ही चेतना होगा।

नई बिल्डिंग में होगा आसान

वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के जानकारों का मानना है कि बने घरों तो इस विकसित करना मुश्किल है लेकिन नये बिल्डिंग और मकानों में इस आसानी से विकसित किया जा सकता है। शहर में नगर निकाय द्वारा दिए जाने वाले घर के नक्शों में यह शर्त होती है कि बिल्डिंग में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया जाएगा। इसके लिए अप्लीकेंट से कुछ राशि जमा कराई जाती है। जो रिफंडेबल होती है। यह पैसा तभी वापस होता है जब भू स्वामी सभी प्रक्रिया पूरी करने के बाद एनओसी लेने आता है। इसमें बहुत से भवन स्वामी इस सिस्टम को नहीं लगाते।

पुरानी बिल्डिंग में थोड़ी मुश्किल

पुरानी बिल्डिंग में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम डेवलप करने में थोड़ा मुश्किल जरूर होता है, लेकिन यहां भी इस सिस्टम को डेवलप किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि अपने पास जगह मौजूद हो। प्रॉपर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को बनवाने में 10 से 50 हजार रुपए के करीब खर्च आता है।

ऐसे लगता है सिस्टम

1. छत पर पानी के लिए टैंक बनाया जाता है।

2. होल कर पाइप को जमीन तक लाया जाता है।

3. बीच में पिट (फिल्टर) बनाई जाती है।

4. पीट में जाली, गिट्टी, मोरंग, बालू भरा जाता है।

5. पाइप को जमीन में बोरिंग कर डाला जाता है।

6. पाइप छत से जमीन के अंदर तक होता है।

यहां होता है पानी का इस्तेमाल

1. बर्तनों की साफ-सफाई।

2. नहाना व कपड़ा धोना।

3. टॉयलेट आदि कार्य।

4. सिंचाई के लिए।

5. नहाने आदि के साथ प्यूरिफाई कर खाना बनाने के लिए।

ये हैं फायदे

1. रेन वाटर क्राइसिस में काम आ जाता है।

2. भू-गर्भ जल स्तर संतुलित रहता है।

3. पेयजल की समस्या नहीं होती।