- गोरखपुर में होता गया निर्माण लेकिन नहीं की गई वाटर रिचार्ज की व्यवस्था

- लगातार गिर रहा वाटर लेवल वहीं कई जगहों पर पीने योग्य नहीं है पानी

GORAKHPUR: पानी बिना जिंदगानी नहीं है लेकिन इस पानी के लिए कहीं कोई संवेदनशील नहीं है। गोरखपुर में ड्रिंकिंग वाटर सोर्स की बात की जाए, तो यहां जो भी नदियां और जलाशय हैं, वह इतने पॉल्युटेड हो चुके हैं। इससे इनका इस्तेमाल ड्रिंकिंग वॉटर के लिए नहीं किया जा सकता। यहां की पूरी आबादी ग्राउंड वॉटर पर ही निर्भर करती है, लेकिन प्रॉपर रीचार्ज न होने और लगातार ग्राउंड वॉटर का इस्तेमाल होने की वजह से यहां पानी की क्राइसिस लोगों को जल्द ही झेलनी पड़ेगी। इसकी वजह यह है कि गोरखपुर में 70 परसेंट डेवलपमेंट हो चुका है और यहां वॉटर रीचार्ज की कोई व्यवस्था भी नहीं की गई है, जिसकी वजह से वॉटर रीचार्ज में काफी प्रॉब्लम आ रही है और लगातार वॉटर लेवल गिरता ही जा रहा है।

प्योर वॉटर की जबरदस्त कमी

शहर में शुद्ध पानी की भीषण कमी है। जलकल विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो एक आदमी को रोजाना 3.50 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। ऐसे में शहर की 13 लाख की आबादी को रोजाना 45.5 लाख लीटर प्योर वाटर की जरूरत पड़ेगी, जबकि जलकल विभाग डेली 30 लाख लीटर पानी की सप्लाई कर रहा है। इस तरह शहर में डेली 15 लाख लीटर पानी की कमी हो रही है। इसकी पूर्ति लोग खरीदकर या अशुद्ध पानी से पूरा कर रहे हैं। जलकल विभाग का यह भी कहना है कि हम लोगों के 30 प्रतिशत पाइप लाइन 1990 के लगभग बिछाई गई है। जो अक्सर टूट जाती है। जिसके प्रति दिन 25 से 30 प्रतिशत पानी सड़कों और नालियों में बहकर बर्बाद हो जाता है।

कुछ जगह पीने लायक नहीं है पानी

जिले में पानी में आर्सेनिक फ्लोराइड की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे पानी दूषित हो रहा है। एमएमएमयूटी के स्टूडेंट अंकित शर्मा ने जिले के सभी ब्लॉक्स से पानी के सैंपल लेकर वॉटर क्वालिटी जांच की तो इस दौरान 12.9 फीसद सैंपल में फ्लोराइड और 6.45 फीसद सैंपल में आरसेनिक की मात्रा अधिक पाई गई। वहीं टोटल सैंपल में 14.1 फीसद फ्लोराइड और 29.84 फीसद आरसेनिक मानक के बराबर पाए गए हैं। इससे साफ है कि करीब 25 फीसद सैंपल में फ्लोराइड और 35 फीसद सैंपल में आर्सेनिक खतरे के निशान या उससे ऊपर है। यह पानी पीने लायक नहीं कहा जा सकता है।

कुछ इस तरह से गिरा वाटर लेवल

एरिया वाटर लेवल (2010) वाटर लेवल (2015)

रुस्तमपुर 40 80

रेती 30 100

सूरजकुंड 30 100

गोरखनाथ 35 120

राप्तीनगर 40 150

पादरी बाजार 45 60

बिछिया 25 25

मोहद्दीपुर 20 20

कूड़ाघाट 25 25

बक्शीपुर 30 40

पिछले दस साल में लगातार गिरा है जल स्तर

वर्ष जल स्तर

बडे़ ट्यूबवेल मिनी ट्यूबवेल इंडियामार्का हैंडपंप

2007 400 फीट 350 फीट 110 फीट

2008 400 फीट 360 फीट 110 फीट

2009 410 फीट 370 फीट 110 फीट

2010 420 फीट 380 फीट 110 फीट

2011 450 फीट 380 फीट 110 फीट

2012 480 फीट 380 फीट 110 फीट

2013 500 फीट 390 फीट 110 फीट

2014 550 फीट 400 फीट 110 फीट

2015 600 फीट 450 फीट 110 फीट

2016 620 फीट 480 फीट 110 फीट

नोट- यह आंकड़ें शहर में पानी सप्लाई व्यवस्था को देखने वाली संस्था जलकल की है। 2017 में अभी तक एक भी ट्यूबवेल लगा तो नहीं है, लेकिन जिन ट्यूबवेलों को स्वीकृत मिली है, उनका लेवल 650 फीट से अधिक का है।

स्टैटिक्स -

इयर पॉप्युलेशन ग्रोथ परसेंट

2011 - 4,440895 17.81

2001 - 3769456 22.94

पाप्युलेशन शेयर व‌र्ल्ड - 16 परसेंट

वॉटर्स सोर्स शेयर व‌र्ल्ड - 4 परसेंट

वॉटर नीड पर कैपिटा - 135 लीटर (अर्बन)

वॉटर नीड पर कैपिटा - 70 लीटर (रूरल)

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यहां बर्बाद हो रहा है पानी -

- ब्रशिंग

- शेविंग

- टॉयलेट

- नहाने

- कपड़े धोने

- गार्डनिंग

- लीकेज

- आरओ

- धुलाई

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ऐसे भी हो सकता है बचाव

- वॉटर की वेस्टेज को कम करने के लिए अवेयरनेस प्रोग्राम चलाए जाएं

- घर-घर जाकर, नुक्कड़ नाटक, एड, पोस्टर और बैनर के थ्रू पानी के वेस्टेज को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

- पानी को री-साइकिल कर इसके वेस्टेज को और कम किया जा सकता है।

- प्लांटेशन से भी ग्राउंड वॉटर रीचार्ज करने में मदद मिलती है।

- रीसाइकिल पानी का इस्तेमाल गार्डन में पौधों को पानी देने के लिए इसका यूज कर सकते हैं। ग्रे वॉटर, जिसमें टॉयलेट वॉटर नहीं आता, उनको दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। टॉयलेट वॉटर में ऑर्गेनिक पॉल्युशन होता है, इसलिए इसको रीसाइकिल कर यूज नहीं किया जा सकता।

- घर में पानी के लिए जगह-जगह टैप और फिटिंग्स लगी रहती हैं। इनसे पहले काफी पानी वेस्ट होता था, लेकिन इन दिनों कंपनीज ने इनकी डिजाइन काफी चेंज कर दी है, जिससे कि 25 परसेंट तक पानी के वेस्टेज को कम किया जा सकता है।

- पानी वेस्टेज का एक बड़ा रीजन लीकेज भी होता है। अगर एक सेकेंड में एक ड्रॉप भी वेस्ट हो रही है, तो 2700 गैलन वॉटर पर इयर वेस्ट हो रहा है। टैप के वॉशर को रिपेयर कराकर इसे बचाया जा सकता है।

- खेतों की मेढ़ को ऊंचा करके रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की जा सकती है।

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वर्जन

गोरखपुर के लोग पूरी तरह से ग्राउंड वॉटर पर डिपेंड हैं, लेकिन क्रॉन्क्रीट के जंगल और लगातार हो रहे डेलवपमेंट की वजह से वॉटर रीचार्ज नहीं हो पाता। वहीं जो अन्य वॉटर सोर्स मौजूद हैं, वह इस लायक नहीं है कि इसका इस्तेमाल पीने के लिए किया जा सके।

- डॉ। गोविंद पांडेय, एनवॉयर्नमेंटलिस्ट