-प्योर वॉटर पिलाने के लिए शहर में करीब 250 मशीनें लगीं, दो साल में दोगुनी हो गई तादाद

- रोजाना हजारों लीटर पानी हो जा रहा है बर्बाद, दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है पानी का कारोबार

GORAKHPUR: नल का पानी पीने से इंसेफेलाइटिस होता है। ग्राउंड वॉटर डायरेक्ट पीने से इंफेक्शन हो जाएगा, फ्लां जगह का पानी जहरीला है, तो फ्लां जगह का पानी पीने से कैंसर हो सकता है। गोरखपुर में कुछ सर्वे रिपोर्ट और सोशल मीडिया पर वायरल ऐसे मैसेजेस ने लोगों में इतना खौफ पैदा कर दिया है कि घर-घर आरओ लग गए हैं, वहीं जो इस कंडीशन में नहीं हैं, उन्होंने भी किराए के जार लगवा लिए हैं। यह पानी से पैदा हो रही बीमारी का ही खौफ है कि पानी का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा है और इस फिल्टरेशन प्रॉसेस में 60 फीसदी पानी बर्बाद होकर यूं ही बह जा रहा है।

पांव पसार रहा है बिजनेस

अलग-अलग रिपो‌र्ट्स में पानी के दूषित होने के सबूत मिल रहे हैं। लगातार लोग पानी की वजह से अस्पताल पहुंच रहे हैं। इसकी वजह से गोरखपुर में पानी के कारोबार को भी पांव पसारने का मौका मिल गया है। लोगों को प्यास बुझाने की कीमत अदा करनी पड़ रही है। होटल, रेस्टोरेंट, घर में तो बिना जार के गुजारा नहीं हो रहा है, वहीं चाट और मोमो के ठेले लगाने वाले भी कस्टमर्स को रोकने के लिए जार का पानी रखने को मजबूर हैं।

दोगुने हो गए वाॅटर प्लांट

गोरखपुर में पानी के कारोबारियों की बात करें तो हर मोहल्ले में एक-दो वॉटर सप्लायर मिल जाएंगे। वहीं इन्हें सप्लाई करने के लिए लच्छीपुर, मेडिकल कॉलेज और गीडा के आसपास करीब 250 से ज्यादा आरओ वॉटर प्लांट स्टेब्लिश हो चुके हैं। इनसे पानी सप्लाई लेने वाले छोटे कारोबारियों की तादाद भी करीब डेढ़ हजार के आसपास पहुंच गई है। जहां हर प्लांट से करीब 400-500 गैलन वॉटर की सप्लाई की जा रही है। पानी का कारोबार पांच साल पहले जहां सिर्फ दुकानों तक ही सीमित था, वहीं इन दिनों करीब हर दूसरे घर में वॉटर जार की सप्लाई हाे रही है।

मैरेज सीजन में ख्ापत दोगुनी

आरओ वॉटर की डिमांड यूं तो लगातार बढ़ रही है, लेकिन मैरेज सीजन में इसकी खपत तीन गुनी हो जा रही है। आम दिनों में जहां कारोबारी 25 हजार गैलन सप्लाई करते हैं, वहीं मैरेज सीजन में बढ़ कर करीब 50 हजार गैलन के आसपास पहुंच जाती है। ठंड आने पर भी इसकी डिमांड में कोई खास कमी नहीं आती। ऐसे जहां डेली 15 हजार गैलन की डिमांड रहती है, वहीं ठंड में घट कर करीब 12 हजार के आसपास पहुंच जाती है। जबकि, पांच साल पहले पानी की डिमांड नॉर्मली 100 से 150 गैलन रहती थी।

कुछ यूं बढ़ता गया बिजनेस -

साल - प्लांट डेली डिमांड (गैलन)

2009 - 1 से 2 50 से 60

2010 - 5 से 10 100 से 150

2011 - 20 से 25 250 से 300

2012 - 40 से 50 2 से 3 हजार

2013 - 70 से 80 8 से 10 हजार

2014 - 100-105 12 से 15 हजार

2015 - 125-140 15 हजार से अधिक

2017 - 250 से ज्यादा 25 हजार से अधिक

बॉक्स -

ऐसे वेस्ट होता है पानी

एमएमएमयूटी के प्रोफेसर डॉ। गोविंद पांडेय की मानें तो आरो सिस्टम के जरिए पानी शुद्ध करने के लिए रिवर्स ऑस्मोसिस प्रॉसेस अपनाई जाती है। इसके तहत पानी शुद्ध करने पर 100 लीटर पानी में सिर्फ 40 लीटर पानी ही प्योर हो पाता है। जबकि, 60 लीटर पानी वेस्ट हो जाता है। इस तरह अगर शहर में डेली एक लाख लीटर पानी की खपत हो रही है, तो उस हिसाब से डेढ़ लाख लीटर पानी बर्बाद हो जा रहा है। इतनी बड़ी मात्रा में शहर में डेली हो रही पानी की बर्बादी को रोकने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया गया, तो पानी की जबरदस्त किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।

बचा सकते हैं वेस्टेज

आरो प्लांट में रोजाना 60 प्रतिशत पानी बर्बाद होता है। अगर हम थोड़ा अवेयर हों, तो इस बड़े वेस्टेज को कम किया जा सकता है। इसके लिए आम लोगों के साथ आरो प्लांट ओनर्स को भी अवेयर होने की जरूरत है। डॉ। गोविंद पांडेय की मानें तो जो 60 प्रतिशत पानी वेस्ट हो रहा है, उसे किसी जगह इकट्ठा कर री-साइकिल करें तो 24 प्रतिशत और तीसरी बार रिसाइकल कर 16 प्रतिशत वेस्टेज पर लाया जा सकता है। उसके बाद बचे 16 प्रतिशत पानी को घर की सफाई, कार धोने, पौधों की सिंचाई, नहाने या दूसरे डेली यूज के लिए इस्तेमाल में लाया जा सकता है।