स्कूल्स में बच्चों को सब्जेक्ट तो पढ़ाया जा रहा है लेकिन उनका इंडिवीज्युल डेवलपमेंट नहीं किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर पेरेंट्स भी छोटी सी एज में बच्चों से उनकी केपेबिलिटी से ज्यादा एक्सपेक्ट करने लगे हैं। अगर पेरेंट्स द्वारा बच्चों को प्रॉपर अटेंशन नहीं दिया गया तो बाघेश जैसे केस आए दिन सुनने को मिलेंगे। कुछ ऐसी ही बातों पर फ्राइडे को आई नेक्स्ट में एक ओपन टेबिल डिस्कशन आर्गनाइज किया गया। इसमें एजूकेशन, मेडिकल और कई फील्ड में रिनाउंड लोगों ने पार्टिसिपेट करके अपने व्यूज सामने रखे।

जुटे एक्सपर्ट्स
बता दें कि थर्सडे मॉर्निंग में स्कूल जाने की तैयारी के दौरान सेंट पीटर्स के स्टूडेंट बाघेश ने बाथरूम में सुसाइट अटेंप्ट किया था। उसने शॉवर से पैराशूट की रस्सी से फांसी लगाने की नाकाम कोशिश की थी। सुसाइट अटेंप्ट करने से पहले बाघेश ने एक सुसाइट नोट भी लिख छोड़ा था जिसमें उसने अपनी क्लास टीचर के ऊपर अपने साथ पार्शियल बिहेवियर करने की बात कही थी। फैमिली की तत्परता से बाघेश को समय रहते बचा लिया गया। मगर, 11 साल की छोटी सी उम्र में बाघेश के द्वारा उठाए इस कदम ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। जिनके जवाब ढूंढने के लिए ऑर्गनाइज की गई पैनल डिस्कशन में होली पब्लिक स्कूल के डायरेक्टर संजय तोमर, वेकअप आगरा के शिशिर भगत, चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ। शरद गुप्ता और डॉ। रवींद्र भदौरिया, रेनबो पब्लिक स्कूल की प्रिंसीपल रीता भट्टाचार्य, साइकोलॉजिस्ट डॉ। यूसी गर्ग, टीचर डॉ। यूसी जैन और मुकेश चौहान ने पार्टिसिपेट किया।
होने लगे हैं मेच्योर
बच्चों की बदलती मानसिकता पर सभी एक्सपर्ट ने अपने-अपने विचार रखे। डिस्कशन में सभी ने यह माना कि बच्चे अब कम एज में ही मेच्योर होने लगे हैं। इसके लिए जिम्मेदार आसपास का वातावरण और आदते हैं। जहां पहले डिप्रेशन एडल्ट एज में होता था वह अब 10 से 15 साल तक के बच्चों में भी होने लगा है। जब बाघेश अपनी परेशानी पेरेंट्स को नहीं बता पाया तो उसने इंटेंशनली सुसाइड अटेम्प्ट किया। एक्सपट्र्स के अनुसार, बच्चे खुद को अटेंशन देने के लिए भी ऐसे काम करने लगे हैं।
हो सकते हैं टीचर गलत
एक्सपट्र्स ने इस बात पर जोर दिया कि बच्चे की पूरी जिम्मेदारी सिर्फ स्कूल या स्कूल टीचर की ही नहीं होती है। सबसे अहम रोल तो पेरेंट्स का होता है। मगर, स्कूल में बच्चे को एडमिट करने के लिए पेरेंट्स अपनी यह जिम्मेदारी लगभग भूल ही जाते हैं और बच्चों का पूरा डेवलपमेंट पूरी तरह से टीचर्स के ऊपर डाल देते हैं। वहीं, कुछ टीचर्स भी इंटेलीजेंट स्टूडेंट्स को ज्यादा अटेंशन देकर एवरेज स्टूडेंट्स को निग्लेक्ट करते हैं, इससे भी दूसरे बच्चों पर निगेटिव मैसेज जाता है। कई दफा कमजोर बच्चे की गलतियों को पूरी क्लास के सामने उजागर करने से भी बच्चा गिल्टी फील करने लगता है।

Parent's teachers meeting
आजकल स्कूल्स में पेरेंट्स मीटिंग केवल एक फॉरमल्टी बनकर रह गई है। इसमें टीचर्स केवल बच्चे की गलतियां पेरेंट्स के सामने रखने लगे हैं और उनकी एक भी अच्छाई को पेरेंट्स को नहीं बताते हैं। पैनल ने माना कि  बाघेश ने जैसा कदम उठाया है उसके लिए कहीं न कहीं टीचर्स के साथ टीचर्स भी जिम्मेदार हैं। बच्चों और टीचर्स के बीच की खाई को पाटने के लिए स्कूल में होने वाली पेरेंट्स मीटिंग को स्ट्रांग करना होगा। इसमें केवल बच्चे की एजूकेशन से रिलेटड ही नहीं बल्कि उसके बिहेवियर से रिलेटड भी बातें टीचर्स को पेरेंट्स के साथ शेयर करनी होंगी।


इन बातों पर करना होगा अमल-
 
- बच्चों की केपेबिलिटी के मुताबिक ही उनसे कॅरियर में उम्मीद करनी होगी
- दूसरे बच्चों के माक्र्स से कभी भी अपने बच्चे को कम्पेयर न करें
- स्कूल के बाद डिनर के समय पेरेंट्स को बच्चे से उसके पूरे दिन का शिड्युल डिस्कश करना होगा।
- बच्चे की सहनशक्ति बढ़ानी होगी
- स्टडी के लिए कभी भी बच्चे के ऊपर प्रेशर न डालें
- पूरी तरह के बच्चे को टीचर्स के ऊपर डिपेंड न होने दें
- बच्चे के सेंसिटिव प्वाइंट को पेरेंट्स जानने की कोशिश करें
- टीवी और वीडियो गेम्स में हमेशा हिंसा वाले सीरियल और गेम न खेलने दें
- बच्चे के हावभाव पर पेरेंट्स को अपनी नजर रखनी होगी
- बच्चे को कभी भी टीचर या दूसरे बच्चों के सामने उसकी कमियों के बारे में न बताएं
- बच्चे को मोरली एनकरेज करते रहें
- प्रिंसीपल को भी टीचर्स और बच्चे के बीच के रिलेशन पर नजर रखनी चाहिए
- स्कूल में होने वाली पेरेंट्स मीटिंग में एजूकेशन के साथ-साथ उनके बिहेवियर पर भी बात करनी होगी।

वर्जन

आज की जेनरेशन के बच्चे कम एज में मेच्योर होने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि इस बाघेश ने रातों रात सुसाइड करने का प्लान किया होगा। कई दिनों से उसके दिमाग में यह बात चल रही होगी। अब डेली इस एज के बच्चे हमारे पास आ रहे हैं, जिनको डिप्रेशन की शिकायत है। अगर बच्चों में आने वाले चेंजेज को पेरेंट्स सही तरीके से नहीं समझेंगे तो यह प्रॉब्लम बढऩे लगेगी।
- डॉ। यूसी गर्ग, साइकोलॉजिस्ट

कुछ बच्चे अपनी गलतियों को छिपाने के लिए इस तरह की हरकतें करते पाए जाते हैं। वहीं टीवी और मूवीज से भी बच्चे ज्यादा अग्रेसिव भी होने लगे हैं। बच्चों के इस बिहेवियर के लिए टीचर्स के साथ-साथ पेरेंट्स भी उतने ही जिम्मेदार हैं।
- रीता भट्टाचार्य, प्रिंसीपल

इतने कम एज के बच्चों के अंदर इस तरह की फीलिंग आना हर पेरेंट्स के लिए चिंता का विषय है। इस घटना के बाद सभी को अपने बच्चों को ज्यादा करीब से समझना होगा। लोगों को यह भी समझना होगा कि बच्चों का पूरा डेवलपमेंट टीचर्स के हाथ में नहीं होता बल्कि पेरेंट्स के हाथ में भी होता है।
- संजय तोमर, डायरेक्टर, होली पब्लिक स्कूल

आज के एवरेज स्टूडेंट्स के साथ टीचर्स का बिहेवियर अच्छा नहीं रह गया है। बदलते जमाने के साथ-साथ बच्चों की टॉलरेंस पॉवर भी कम होती जा रही है। क्लासेज में बच्चों की स्ट्रेंथ भी इतनी ज्यादा है कि एक टीचर हर बच्चे को प्रॉपर अटेंशन नहीं दे पाता।
- शिशिर भगत, सोशल एक्टिविस्ट, वेकअप आगरा

क्लास में वीक स्टूडेंट्स को टीचर्स क्लास के अन्य स्टूडेंट्स के सामने नीचा दिखाने में लगे हैं। इससे बच्चों के अंदर हीन भावना पैदा हो जाती है। ऐसी स्थिति में बच्चा निगेटिव सोचने लगता है। बच्चे के हर बिहेवियर के बारे में पेरेंट्स को टीचर्स से बात करनी चाहिए।
- डॉ। शरद गुप्ता, चाइल्ड स्पेशलिस्ट

कई बार ऐसा भी होता है कि टीचर्स, पेरेंट्स को बच्चों के बारे में बताने के लिए फोन करते हैं और पेरेंट्स नहीं जाते हैं। अगर कमजोर बच्चों को क्लास में सबके सामने डांटा जाएगा तो इससे उनका मोरल सपोर्ट गिरता है।
- मुकेश चौहान, एमबीडी कॉलेज ओनर

टीवी और मूवीज ने समय से पहले ही बच्चों का विकास कर दिया है। वहीं, पेरेंट्स भी बच्चों को अपना क्वालिटी टाइम नहीं दे पा रहे हैं। ऐसे में बच्चे स्कूल से रिलेटेड प्रॉब्लम किसी से शेयर नहीं कर पाते। शायद ऐसा ही कुछ बाघेश के साथ हुआ होगा।
- डॉ। रविंद्र भदौरिया, चाइल्ड स्पेशलिस्ट

आजकल पेरेंट्स बच्चों के डेवलपमेंट के लिए पूरी तरह से टीचर्स के ऊपर डिपेंड हैं। इससे बच्चों का पूरा विकास नहीं हो पा रहा है। बच्चों की प्रॉब्लम सुनने के लिए उनके पास कोई ऑप्शन नहीं रह गया है।
- डॉ। यूसी जैन, टीचर

Report by- Aparna sharma acharya