अत्यंत ज्ञानी
रावण काफी विद्वान था। उसने अपने पिता ऋषि विश्रवा से काफी शिक्षा ग्रहण की थी। रावण वेद और ज्योतिष का जानकार था। वो संगीत और दूसरी कलाओं का ज्ञाता भी था। यही वजह है कि उसे पराजित करने के बाद राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण से उसके चरणों में बैठ कर नीतिशास्त्र और कूटनीति का ज्ञान लेने को कहा था।

ईश्वर भक्त
रावण जिसे दशानन भी कहा जाता है। भगवान शिव का परम भक्त था। उसी ने शिव तांडव स्तोत्रम की रचना की थी। वो ब्रह्मा काभी उपासक था और उन्होने ही उसकी मृत्यु को नाभि में केंद्रित करके लगभग अमरत्व का वरदान दिया था।

दशानन से सीख सकते हैं यह बातें

ब्राहमण रावण
रावण का जन्म पुलत्स्य ऋषि के वंश में हुआ था। वो उनके पुत्र विश्रवा का बेटा था इस नाते उनका पोता हुआ। अत रावण जन्म से आधा ब्राह्मण था अौर दानवी मां कैकेसी के चलते आधा दानव। इसके बाद राक्षस धर्म स्वीकार कर वो राक्षस बना।

सच्चा मित्र
रावण अपनी बात का पक्का था और इसीलिए उसने किश्किंधा नरेश बाली से एक बार मित्रता की तो अंत तक उसे निभाया।

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कुशल राजनीतिज्ञ
यदि सीता का अपहरण कर राम और अपने भाई विभीषण के विरोध का शिकार होने के अपवाद को छोड़ दिया जाए तो रावण राजनीति का कुशल ज्ञाता था और इसीलिए उसके सभी भाई उसके आदेश मानते थे और सभी शक्तिशाली राज्य या तो उसके मित्र थे या उसके आधीन थे।

विकट तपस्वी
रावण बड़ा कठोर तपस्वी था। उसने अपने तप के बल से शंकर, ब्रह्मा और सूर्य चंद्र जैसे देवताओं को प्रसन्न कर लिया था।

कुशाग्र बुद्धि
रावण काफी तेज दिमाग का था इसीलिए अवसर मिलने पर ऐसा वरदान मांगा था जो उसे अमर बना गया था। उसने मनुष्य, पशु, देवता, दैत्य, असुर, गंधर्व या किन्नर के हाथों ना मरने का वरदान ले लिया था। अगर विभीषण उसकी नाभि के विषकुंड का भेद ना खोलता तो उसको मारना संभव नहीं था।

विलक्षण योद्धा
रावण उच्च कोटि का योद्धा था। उसने अपने पराक्रम से सिर्फ लंका ही नहीं, बल्कि बालीद्वीप, मलयद्वीप, अंगद्वीप, वरहद्वीप, शंखद्वीप, यवदद्वीप और कुशाद्वीप तक अपना राज्य फैला लिया था।

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कैसे पराजित हुआ इतना अदभुद रावण
इतने सारे अनोखे और श्रेष्ठ गुणों के होते हुए भी रावण युद्ध में ना सिर्फ मारा गया बल्कि पराजयका अपमान भी उसे सहना पड़ा। इसका र्सिफ एक ही कारण था और वो था रावण का श्रेष्ठ होने का अहंकार।

 

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