नुमाइंदगी की परवाह

देश में हर चुनाव टाइम पर होते हैं। इस प्रक्रिया को पूरा कराने के लिए बाकायदा एक सिस्टम भी वर्क करता है। डेमोक्रेसी की निचली इकाई यानी ग्राम पंचायत से लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत के इलेक्शन कराए जाते हैं। इनका कार्यकाल पूरा होने से पहले ही अगले की प्रक्रिया पूरी कराने का सिलसिला शुरू हो जाता है। उपचुनाव से लेकर खाली हुई सीट्स पर भी तीन महीने के अंदर इलेक्शन कराने की कवायद की जाती है, ताकि लोगों की नुमाइंदगी हर जगह मुमकिन हो सके.  

और चुनावों पर रोक क्यों नहीं

 लोकतंत्र में कभी चुनावों पर रोक नहीं लगी, लेकिन यूपी 2005 से स्टूडेंट यूनियन के इलेक्शंस पर रोक है। सवाल यह उठता है कि क्या डेमोक्रेसी में यूनिवर्सिटी और कॉलेज शामिल नहीं हैं? जबकि विधानसभा चुनाव को अभी पांच साल पूरे नहीं हुए हैं और चुनाव होने का शंख बज चुका है। स्टूडेंट यूनियन के ऑफिस पर ताले लगे हुए हैं। ऐसा सौतेला व्यवहार स्टूडेंट राजनीति से क्यों किया जा रहा है? स्टूडेंट यूनियन के इलेक्शंस के लिए कहा जाता है कि गुंडागर्दी बहुत होती है, वहीं देश का ऐसा कौन सा इलेक्शन है जो गुंडागर्दी से अछूता है। चाहे वो एमपी से लेकर प्रधान तक इलेक्शन हो। क्या इन इलेक्शंस के दौरान वॉयलेंस, बूथ कैपचरिंग, रुपया और बाहुबल का इस्तेमाल कम होता है? मर्डर से लेकर किडनैपिंग तक इन चुनावों में होती है। लेकिन, छात्र अपना निर्वाचित संगठन नहीं बना सकते। जबकि इसी एजूकेशनल एनवॉयरनमेंट में रहने वाले टीचर्स को इलेक्शन लडऩे की छूट है। कॉलेजों से लेकर स्टेट लेवल तक शिक्षक संघ हैं।

खुले आम भेद-भाव

विडंबना ये कि एक तरफ तो स्टेट गवर्नमेंट में सभी कॉलेजेज और यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट यूनियन के इलेक्शंस पर रोक लगा रखी है। वहीं, दूसरी ओर यूपी में ही सेंट्रल यूनिवर्सिटी में शामिल अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी में हर साल स्टूडेंट यूनियन के इलेक्शंस हो रहे हैं.  

माहौल खराब होता है

मौजूदा गवर्नमेंट दलील दी है कि स्टूडेंट यूनियन के इलेक्शंस से माहौल खराब होता है। इस बात पर सवाल ये उठता है कि ऐसा कौन सा इलेक्शन है जो सुरक्षा इंतजाम के बगैर होता हो। जब माहौल की मामला है तो सभी कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में शिक्षक चुनाव क्यों होता है? शिक्षकों की तो डिग्री कॉलेज, यूनिवर्सिटी ही नहीं इंटर कॉलेज तक के शिक्षकों की यूनियन बनी हुई है।

छात्र नेताओं की भी अनदेखी

देशी की राजनीतिक पार्टियों भी भेद भाव करने से बाज नहीं आती हैं। ऐसे कई छात्र नेता हैं शहर में जो खासे वजूद वाले हैं। उसके बाद भी राजनीतिक पार्टियों में उनको वो स्थान नहीं मिलता जो दिया जाना चाहिए।

नहीं दिखाई दमदारी

डॉ। अंबेडकर यूनिवर्सिटी में देखा जाए तो यहां के नेताओं ने कहां-कहां अपनी छाप नहीं छोड़ी, सांसद राज बब्बर, पूर्व सांसद रामजीलाल सुमन, विधायक धर्मपाल सिंह, अचल शर्मा एडवोकेट और रनबीर शर्मा, ये एक ऐसा नाम है जो किसी के परिचय के मोहताज नहीं हैं ये सभी स्टूडेंट लीडर रहे, शायद पढ़े लिखे नेताओं से गवर्नमेंट को एलर्जी है इसलिए छात्र संघ चुनाव पर लगा रखी है। वहीं एक दूसरा पहलू ये भी है कि यूनिवर्सिटी के किसी नेता और पार्टी ने छात्र संघ चुनाव के लिए दमदारी से आंदोलन नहीं चलाया।

चुनाव हो मगर कायदे से

लिंगदोह कमेटी की सिफारिश ऐसी हैं कि अगर प्रशासनिक मशीनें ठीक से काम करें तो छात्रसंघ चुनाव में किसी भी तरह की गड़बड़ी की गुंजाइश न के बराबर रह जाती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दो दिसंबर को 2005 को पूर्व इलेक्शन कमिश्नर जेएम लिंगदोह की अध्यक्षता में लिंगदोह कमेटी बनाई गई थी। इसके अनुसार ही देश में यूनिवर्सिटी में छात्र संघ चुनाव हो रहे हैं।

कुछ जख्म भी मिले हैं

यूनिवर्सिटी के पहले प्रेसीडेंट शिवराज चौधरी एक जाना माना नाम रहा। इसकी कुछ साल पहले दिन दहाड़े हत्या कर दी गई। छात्र संघ चुनाव लडऩे से पहले शिवराज एक सीधे साधे स्टूडेंट की इमेज वाला था, लेकिन इलेक्शन जीतने के बाद शुरू हुआ उसका एक नया सफर जो उसको उसके अंजाम तक भी ले गया। छात्रसंघ को दूसरा अध्यक्ष मिला विनय जादौन के रूप में। सूत्रों से पता चला कि वो किसी मल्टीनेशनल कंपनी में दिल्ली में जॉब कर रहा है. 

ये हैं मुख्य प्वॉइंट

- चुनाव लडऩे के लिए उम्र 17 से 22 वर्ष होनी चाहिए। स्टूडेंट अंडर ग्रेजुएट भी होना चाहिए. 

- पीजी स्टूडेंट की ऐज 24 से 25 साल की हो।

- पीएचडी स्टूडेंट के लिए एज 28 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

- इलेक्शन लडऩे वाले स्टूडेंट की बैक या री नहीं आई होनी चाहिए।

- चुनाव लडऩे के लिए 75 परसेंट अटेंडेंस होनी चाहिए।

- संघ के चुनाव के लिए किसी भी पद के लिए स्टूडेंट सिर्फ एक बार किसी भी पद पर इलेक्शन लड़ सकता है। एग्जीक्यिूटिव मेंबर बनने के लिए दूसरी बार मौका मिल सकता है।

- इलेक्शन लडऩे वाले का क्रिमिनल रिकार्ड नहीं होना चाहिए।

- चुनावी खर्चा पांच हजार रुपये से कम नहीं होना चाहिए।

- रेगुलर ही स्टूडेंट चुनाव लड़ सकता है।

- इलेक्शन की प्रक्रिया दस दिन में निपटाई जाएं।

- सेशन शुरू होने के छह से आठ हफ्ते में छात्र संघ गठित हो जानी चाहिए।

वर्जन

छात्रसंघ चुनाव छात्रों का लोकतांत्रिक अधिकार है। देशी की राजनीति गवाह है कि जो भी अच्छा नेता देश को मिला है वो छात्रसंघ से मिला है। पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह और बसपा मंत्री किरन पाल भी आगरा कॉलेज के लॉ के स्टूडेंट रहे हैं।

रामजीलाल सुमन, पूर्व सांसद

वर्जन 

छात्र संघ होना चाहिए, अगर देश से करप्शन हटाना है तो युवाओं को आगे लाना ही होगा, इसका ताजा उदाहरण है इलाहाबाद में पांच दिसंबर से लेकर 22 दिसंबर एनएसयूआई के मेंबर्स ने जेल में डाल दिया गया। क्योंकि ये लोग छात्र संघ चुनाव के लिए प्रदर्शन कर रहे थे। कामयाबी मिली इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में चुनाव बहाल हुए। हाईकोर्ट ने छात्रसंघ चुनाव कराने के आदेश दे रखे हैं, लेकिन प्रदेश सरकार ने इस पर रोक लगा रखी है, यह गलत है। जल्दी ही आंदोलन किया जाएगा. 

अमित यादव, नेशनल डेलिगेट एनएसयूआई

वर्जन

2005 के बाद से ही छात्र संघ चुनाव पर रोक लगा दी गई। सपा की गवर्नमेंट में दो बार इलेक्शन हुआ। छात्रसंघ चुनाव छात्रों का लोकतांत्रिक अधिकार है। किसी भी सरकार को छात्रसंघ चुनाव नहीं रोकने चाहिए। अगर छात्रसंघ चुनाव होंगे तो पढ़े लिखे नेताओं राजनीति में आने का मौका मिलेगा. 

केवीएस परमार, स्टूडेंट लीडर

वर्जन

 छात्र संघ चुनाव समाज और देश की राजनीति को नेतृत्व देता है। ऐसे मैं नहीं बोल रहा ऐसा देश की राजनीति का इतिहास बोल रहा है। सामाजिक और राजनीतिक नेतृत्व की पाठशाला जो है वो छात्रसंघ चुनाव है। छात्रसंघ चुनाव होंगे तो नेतृत्व खड़ा होगा जो समाज और राजनीति कर सकेगा। छात्रसंघ चुनाव पर रोक नेतृत्व क्षमताओं कुंद करना है। इसे रोका जाना देश के हित में नहीं है।

प्रो। रामशंकर कठेरिया, एमपी

छात्र संघ चुनाव हितकारी हैं, बस चुनाव होने के बाद नेता को अपने रास्ते में भटकना नहीं चाहिए। दिशा सही होनी चाहिए। गवर्नमेंट ने चुनावों में रोक लगा रखी है वो एक अलग मुद्दा है। छात्रसंघ चुनाव से राजनीति में निश्चित पढ़े लिखे लोग नेतृत्व के लिए आगे आएंगे।

डॉ। धर्मपाल, विधायक बीएसपी

Report by- Piyush sharma

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