- कमजोर मानसून के चलते बेहद कम बारिश के आसार, 2009 में भी हुई थी बहुत कम बारिश

- मौसम विभाग ने दिए भयंकर परिणाम के संकेत, क्योंकि दिल्ली से ज्यादा मेरठ में है पॉल्यूशन

Meerut : अरे दिल्ली में बारिश हो गई, मेरठ में कब होने वाली है? आखिर मेघ कब बरसेगा, सिटी में यह चिंता का विषय बन गया है। सिटी में इस साल इंद्रदेव की मेहरबानी कम नजर आ रही है। मौसम विभाग व पर्यावरणविद भी मानसून लेट होने के साथ ही बरसात के कम होने का अनुमान लगा रहे हैं। अनुमान तो यह भी लगाया जा रहा है, कि दिल्ली की अकार्डिग मेरठ में पॉल्यूशन ज्यादा है। यही कारण है कि मेरठ में बारिश होने का नाम नही ले रही है।

तो क्या पॉल्यूशन है कारण

पर्यावरणविद तो यही अनुमान लगा रहे हैं, दिल्ली जैसे भीड़भाड़ वाले इलाकों से अधिक मेरठ में पॉल्यूशन हो गया है। अगर मोटे तौर पर ही अनुमान लगाया जाए तो मेरठ में दिल्ली से फ्0 प्रतिशत अधिक पॉल्यूशन हो गया है। नीर फाउंडेशन के अध्यक्ष रमन त्यागी के अनुसार मेरठ में पानी की अधिक वेस्टेज होना भी एक बड़ा कारण है। वहीं सीएफसी, कार्बन डाई ऑक्साइड, मिथेन गैस वातावरण में अधिक घुलने के कारण भी पॉल्यूशन पर असर हो रहा है, जिसके कारण संतुलन बिगड़ने से ही बारिश कम होती है।

इन गैसों से बढ़ता है पॉल्यूशन

एसी और फ्रिज से निकलने वाली क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस ओजोन परत को नुकसान पहुंचाती है, जिससे अधिकतर स्किन कैंसर होने की संभावना बढ़ती है। सिटी में दौड़ने वाले वाहनों से निकलने वाली कार्बन गैस जो सिटी में भ्0 प्रतिशत पॉल्यूशन फैलाती है। वहीं मिथेन गैस जो पुराने कूड़े-करकट, सड़े हुए सामान से बनती है। यह फ्0 प्रतिशत पॉल्यूशन फैलाती है।

पॉपुलेशन मेन रीजन है

ग्रीन केयर सोसाइटी के अध्यक्ष विजय पंडित के अनुसार तो सिटी में बढ़ती पॉपुलेशन भी मेन रीजन है। बढ़ती पॉपुलेशन के कारण ख्0 प्रतिशत पॉल्यूशन की होती है और पॉपुलेशन बढ़ने के साथ ही शहर में बिल्डिंग बढ़ना, इंडस्ट्रियल एरिया बढ़ना, लोगों के रहन-सहन के तौर तरीकों में आते बदलाव व नेचर के साथ छेड़छाड़ के कारण ही ब्0 प्रतिशत पॉल्यूशन होता है। वहीं शहर में ख्भ् प्रतिशत पॉल्यूशन वनों के कटाव के कारण होता है, क्योंकि ग्रीनरी कम होती जा रही है।

पांच साल पहले हुआ था सूखा

कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर के मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार ख्009 में मेरठ में सूखे के हालात थे। ख्009 उस वर्ष में मानसून की शुरुआत ख्0 जून को हुई थी। साल भर में टोटल ख्7ब् मिलीमीटर ही बरसात हो पाई थी। पांच सालों बाद आज एक बार फिर से मौसम विभाग मानसून के डेढ़ सप्ताह लेट होने की बात कर रहा है।

तो ऐसे हुई पांच साल बारिश

साल पहली बरसात

ख्009 ख्0 जून

ख्0क्0 क्8 जून

ख्0क्क् क्7 जून

ख्0क्ख् क्8 जून

ख्0क्फ् क्म् जून

और ख्0क्ब् यानि इस बार डेढ़ हफ्ता लेट यानि मौसम विभाग तो ख्9 जून से एक जुलाई के तक ही बरसात होने की उम्मीद लगा रहा है।

मानसून के हाई डे

साल डेट बारिश

ख्009 फ्0जून - फ्0मिमी

ख्0क्0 भ् जुलाई - 77मिमी

ख्0क्क् ख्म् जून -म्भ्मि.मी।

ख्0क्ख् ख्0अगस्त क्म्क्मिली

ख्0क्फ् 7अगस्त 70मिली

क्या कहता है मौसम विभाग

इसबार डेढ़ हफ्ते देर से यानि ख्म् से प्री मानसून और और ख्9 जून से एक जुलाई के बीच मानसून शुरु होने की संभावना है। देरी होने के साथ ही बरसात कम होने की भी संभावना जताई जा रही है, जिसका मुख्य कारण प्रकृति के साथ होती हमारी छेड़छाड़ व ग्लोबल वार्मिग को बढ़ावा देना, नदी नालों में होने वाली गंदगी है।

डॉ। अशोक कुमार, प्रोफेसर, सोशल डिपार्टमेंट ऑफ साइंस, एग्रीकल्चर कॉलेज

भयंकर परिणाम मिलेंगे

अगर इसी तरह बारिश कम हुई तो इसके बहुत भयंकर परिणाम देखने को मिलेंगे। सिंचाई में कमी आनी, लोगों पानी की कमी को तरसेंगे। कृषि करने के लिए म्0 प्रतिशत बारिश के पानी का यूज किया जाता है। वहीं बरसात की कमी के कारण हैजा, मलेरिया, उल्टी दस्त, त्वचा संबंधित रोगों का बढ़ना। और स्किन कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ना जैसी समस्याएं आ सकती है। इसलिए बरसात का ठीक से होना जरुरी है।

डॉ। विजय पंडित, ग्रीन केयर सोसाइटी

पुराने वाहन भी हैं एक कारण

शहर में पॉल्यूशन बढ़ने का एक मुख्य कारण शहर में पुराने वाहनों की अधिक संख्या है। दिल्ली के पुराने वाहनों को कम कर दिया गया है और वो वाहन मेरठ व गाजियाबाद में दौड़ रहे हैं। पुराने वाहनों को यूज करने में नए के से डबल पेट्रोल व डीजल का यूज होता है और धुआं भी ज्यादा निकलता है। इसी धुएं के जरिए शहर में कार्बन डाई ऑक्साइड पॉल्यूशन फैलाती है। शायद ये भी एक बड़ा कारण है बरसात कम होने का।

-रमन त्यागी, नीर फाउंडेशन

तो ये करें उपाय

- पानी की बचत करनी होगी, बारिश के पानी को सेव करना होगा, जिसके लिए जरूरी है कि पानी की छोटी छोटी बचत करें।

- आरओ से छनने के बाद बचे पानी को पोछा लगाने में यूज करें, या फिर वॉश वेसिन या वॉश रुम की सफाई कर सकते है।

- घरों में कम से कम पांच तरह के पौधे जरुर लगाए।

- प्लास्टिक का यूज कम से कम करें, जैसे प्लास्टिक पॉलीथिन की जगह कागज या कपड़े के बैग का यूज करें।

- घर के यूजलेस कूड़े को अलग रखें। ऐसे कूड़े जैसे फल या सब्जियों के छिलकों को अलग रखें। क्योंकि कुछ दिनों बाद वह कूड़ा खाद में बदल जाता है। यानि पौधे में खाद के रुप में डाल सकते है।