इंट्रो। शादियों के सीजन में पांच सौ और हजार के नोटों ने आम लोगों को मुश्किलों में डाल दिया है। शादी बारात के घरों में स्थिति और भी मुश्किल हो गई है। शगुन देने के लिए अकाउंट नंबर का सहारा लिया जा रहा है। बैंड बाजा भी नोटों के बैन से परेशान है। यकीनन, मोदी सरकार के सबसे बड़े फैसले की कहानी बैन.बाजा और बाजार में सिमट गई है।

- कैश में मिल रहे है पांच सौ और एक हजार के नोटों को लेकर परेशानी

- मजदूरों और बुग्गी वालों तक का बैंक अकाउंट मांग रहे बैंड संचालक

Meerut । कालेधन पर केंद्र सरकार के सबसे बड़े फैसले के बाद बाजार उथल पुथल मची है। तो वहीं शादियों का सीजन शुरू होने से आम लोगों को भी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। हालत यह है कि शादियों में बैंड और ढोल वाले भी सबसे बड़ी मुश्किल से गुजर रहे हैं। शादियों से सीजन में बैंड संचालकों की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि वे पांच सौ और एक हजार के नोट लेकर बैंक के चक्कर कैसे लगाएंगे। क्योंकि सहालग के दिनों में उन्हें समय नहीं मिल पाता है।

अफरा-तफरी का माहौल

पांच सौ और एक हजार के नोटों पर प्रतिबंध से सबसे बड़ी मुश्किल बैंड संचालकों पर भी खड़ी कर दी है। आमतौर पर बैंड संचालक कैश में ही पैसे लेते हैं। लेकिन इन दिनों उनकी मुश्किलें बढ़ गई है। अब उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि आखिर वे पांच सौ और हजार के नोट कैसे लें। और अगर नोट ले भी लें तो बैंकों की लाइन में कौन खड़ा होगा।

बैंड बजाएं या लाइन लगाएं

शहर में शादियों का सीजन शुरू हो गया है। इससे बैंड संचालकों की चांदी हो गई है। लेकिन मोदी सरकार के सख्त फैसले ने मुश्किलें बढ़ा दी है। हालत यह है कि बैंड संचालक चेक से पैसे लेने में परहेज करते हैं। अमूमन में उन्हें कैश में ही पैसे मिलते हैं। ऐसे में उन्हें मजदूरों और बुग्गी चलाने वालों को भी तुरंत ही पेमेंट करना होता है। अब इस फैसले से हजार और पांच सौ के नोट गले की हड्डी बन गए हैं। जो ना उगलते बन रहे हैं और ना निगलते।

मजदूरों को समस्या

बैंड संचालक नदीम बताते हैं कि कालेधन पर मोदी सरकार का फैसला सही जरूर है लेकिन आम लोगों के लिए मुश्किलें बढ़ा दी है। लोग हमें चेक से पैसे देने को तैयार है। लेकिन हमें अपने मजदूरों को कैश में पैसे देने पड़ते हैं। मजदूरों के बैंक खाते नहीं हैं उन्हें तुरंत ही पैसे देने पड़ते हैं। इसलिए बहुत दिक्कत हो रही है। अब हमारे पास भी इतना समय नही है कि शादी बारात में जाए या फिर बैंकों में लाइन लगाकर नोट बदलें।

हमारा बैंड बज गया

शहर के अधिकतर बैंड संचालक यही कह रहे हैं कि सरकार ने हमारा भी बैंड बजा दिया है। अब जब सीजन का दौर शुरू हुआ तो सरकार ने पांच सौ और हजार के नोट बंद कर दिए। जिससे हमारी मुश्किलें बढ़ गई। रोजाना दिहाड़ी मजदूरों की मुश्किलें और भी बढ़ गई हैं।

वर्जन

हमारी मुश्किलें बढ़ गई हैं.पार्टियां हमें हजार और पांच सौ नोट में पेमेंट कर रही हैं। अब हम इन्हें कहां लेकर जाएं। अब हम शादियों के सीजन में बैंड बजाएं या फिर बैंकों में लाइन लगाएं।

लिंबो मार्शल, बैंड संचालक

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कुछ पार्टियां चेक से पेमेंट कर रही हैं.लेकिन हमारे पास तो दिहाड़ी मजदूर काम करते हैं। जिन्हें रोजाना के हिसाब से पेमेंट करना होता है। ऐसे में अब उन्हें पर्चियों में हिसाब देना पड़ रहा है।

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