गुरुवार को हुई थी मुठभेड़

झंगहा एरिया के गोपलापुर निवासी रामाज्ञा यादव के छह बेटों में तीसरे नंबर के श्याम नारायण आर्मी में थे। उनकी तैनाती श्रीनगर के कुशामों में थी। गुरुवार की सुबह वह पेट्रोलिंग पार्टी के साथ गश्त पर निकले। आतंकवादियों से मुठभेड़ में गोली लगने से श्याम नारायण घायल हो गए। सेना के बेस हॉस्पिटल में उनको भर्ती कराया। वहां जवान की मौत हो गई। जवान के शहीद होने की सूचना गांव के लोगों को मिली तो पूरे इलाके में मातम पसर गया। शनिवार की सुबह जवान का शव गांव पहुंचा। सूबेदार अजय कुमार के नेतृत्व में जीआरडी गोरखपुर के जवानों ने मातमी धुन पर शस्त्र उल्टा करके शहीद को सलामी दी। राष्ट्रीय झंडे में लिपटे में शहीद की शव यात्रा में क्षेत्र के लोग उमड़ पड़े।

भतीजे से दी मुखाग्नि

शहीद का अंतिम संस्कार सिंहोड़वा गांव के पास राप्ती नदी के तट पर कराया गया। उनके भतीजे दीपक ने चिता को मुखाग्नि दी। शव यात्रा और अंत्येष्टि में किसी प्रशासनिक अफसर के न पहुंचने से लोगों में आक्रोश फैल गया। थोड़ी देर बाद चौरीचौरा के एसडीएम मोतीलाल सिंह और सीओ राजेश भारती पहुंचे। गोपलापुर बंधे के पास खड़े होकर अधिकारियों ने एसओ झंगहा को रामशीष यादव को अंत्येष्टि स्थल पर भेजा। लोगों की नाराजगी देखकर एसओ ने अफसरों को लौटने की सलाह दी। बाद में सपा प्रत्याशी केशवनाथ यादव ने डीएम को मामले की जानकारी दी।

चिता जलने पर पहुंचे डीएम-एसएसपी

पब्लिक के खफा होने की जानकारी मिलने पर डीएम और एसएसपी शहीद के गांव रवाना हो गए। अंत्येष्टि के दो घंटे अफसर, जवान के घर पहुंचे। प्रशासन की ओर से किसी के न शामिल होने पर खेद जताया। कहा कि गांव की लोकेशन का पता लगाने में देरी की वजह से इस तरह की गड़बड़ी हुई। शहीद की तीनों बेटियों निधि, खुशबू और नीतू से बात करके हर संभव मदद का आश्वासन दिया। शहीद के बड़े भाई प्रधान नागेंद्र यादव ने प्रशासन की संवेदनहीनता पर कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि शहादत की खबर दो दिन पहले मिल गई थी। बावजूद इसके बरही चौकी के प्रभारी के अलावा कोई झांकने नहीं आया। अंत्येष्टि में इस कदर लापरवाही की गई। इस दौरान सपा नेता मुन्नी लाल यादव, दयानंद विद्रोही, मानवेंद्र यादव, लाल साहब, उपेंद्र सहित कई सैकड़ों लोग मौजूद रहे।  

पत्नी बेसुध, बेटियां गुमशुम

जवान श्याम नारायण की शादी वर्ष 2004 में हुई थी। शादी के कुछ दिनों के बाद ही उनका सेलेक्शन बीएसएफ में हो गया। पत्नी सुनीता को घर पर छोड़कर वह तैनाती पर पहुंचे। समय के साथ वह तीन बेटियों के पिता भी बन गए। 10 साल की बेटी निधि, आठ साल की खुशबू और छह साल की नीतू के पालन-पोषण की जिम्मेदारी भी जवान के कंधे पर आ गई। पिता के शहादत की सूचना से पत्नी बेसुध हो गई थी। बचपन में पिता को खोने वाली तीनों बेटियां गुमशुम हो गई थी। बमुश्किल ही वह किसी से कोई बात कर रही थी। भाई की शहादत पर प्रशासनिक रवैये से दुखी बड़े भाई नागेंद्र यादव ने कहा कि यही हाल रहा तो कोई सेना में भर्ती नहीं होगा। राजनीति में यह देश दोबारा गुलाम हो जाएगा।